प्रियंका गांधी वाड्रा को शिमला में जमीन खरीदने की इजाजत देने के मामले में हिमाचल की कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही सरकारों ने मेहरबानी दिखाई है. अपने-अपने समय में दोनों ही सरकारों ने प्रियंका की फाइल को बिना किसी ऐतराज के हाथों-हाथ मंजूरी दे दी.
जमीन की खरीदारी से जुड़े जिन अहम दस्तावेजों को आरटीआई के तहत दिए जाने का विरोध प्रियंका गांधी करती रही हैं, उन दस्तावेजों को देखकर साफ हो जाता है कि प्रियंका ने दो बार जमीन खरीदी और दोनों ही बार सरकार ने उन्हें उनकी इच्छा के हिसाब से जमीन खरीदने की इजाजत दे दी.
गैर हिमाचली को नहीं है जमीन खरीदने की इजाजत
पहली बार प्रियंका को 10 अगस्त 2007 को तत्कालीन वीरभद्र सरकार ने जमीन खरीदने की इजाजत दी. यह अनुमति जमीन में रिहायशी मकान बनाने और बागवानी के लिए दी गई. इसके आधार पर प्रियंका ने शिमला के पास छरावड़ा में खसरा संख्या 68, 691, 79, 801 रकबा तादादी 0-81-84 को खरीदा. 0-31-84 हेक्टेयर के क्षेत्र वाली इस जमीन में एक दो मंजिला भवन और पानी का टैंक भी था. इस खरीदारी के बारे में हिमाचल भू-राजस्व कानून 1972 की धारा 118 में प्रदेश सरकार की ओर से दी गई छूट में कुल 7 शर्तें लगायी गई थीं.
BJP सरकार भी हुई मेहरबान
प्रियंका गांधी ने इसके बाद गैर हिमाचली लोगों पर हिमाचल में कृषि भूमि खरीदने पर लगी पाबंदी में एक बार फिर छूट हासिल की और 29 जुलाई, 2011 को साथ सटी जमीन को भी खरीदने की इजाजत राज्य सरकार से हासिल कर ली. दिलचस्प बात यह है इस समय राज्य में बीजेपी की सरकार थी. इस बार उन्होंने खसरा न. 26473 और 26573 में से 26573 वाले हिस्से को खरीद लिया जो 0-04-25 हेक्टेयर में फैली थी. यह खरीदारी सेल डीड न. 1290 के तहत 22 सितंबर, 2011 को शिमला के एसडीएम ग्रामीण के कार्यालय में रजिस्टर की गई.
इस खरीदारी के लिए प्रियंका गांधी ने 20 रुपये के स्टांप पेपर पर बाकायदा एक शपथ पत्र भी दिया. प्रियंका गांधी अभी तक ‘सूचना के अधिकार’ के तहत अपनी जमीन से जुड़े कागजातों को सुरक्षा के आधार पर सार्वजनिक न किए जाने का स्टैंड लेती रही हैं. लेकिन अब जबकि हिमाचल सूचना आयोग ने इस सारी जानकारी को दस दिनों के भीतर जारी करने के आदेश दे दिए हैं तो प्रशासन के पास इस जानकारी को जारी करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है.
मकान और बागवानी के लिये दी गई थी मंजूरी
प्रियंका गांधी को हिमाचल में जमीन खरीदने की इजाजत रिहायशी मकान बनाने और बागवानी के मकसद से दी गई है. हिमाचल प्रदेश भू-राजस्व कानून की धारा 118 के तहत किसी गैर कृषक को राज्य में जब जमीन खरीदने की इजाजत दी जाती है तो उसके साथ जमीन खरीदने के मकसद का जिक्र करना जरूरी होता है. इसी इजाजत के साथ ही यह शर्त भी लगा दी जाती है कि जिस मकसद के लिए जमीन खरीदी गई है, उसे दो सालों के भीतर पूरा कर लिया जाए. ऐसा न करने की स्थिति में खरीदी गई जमीन को सरकारी कब्जे में ले लिए जाने का प्रावधान है.
खड़ा हो सकता है नया विवाद
जानकारों का कहना है कि आरटीआई के तहत प्रियंका की जमीन की जानकारी के सार्वजनिक होने के बाद इस मामले से जुड़े तमाम पहलू सामने आ जाएंगे. ऐसे में इस बात की संभावना भी रहेगी कि सरकार द्वारा जमीन खरीदने के लिए दी गई अनुमतियों में खामियां निकाल कर इस मामले को लेकर कोई नया विवाद खड़ा हो जाए. खास तौर पर यह बात तो उठ ही सकती है कि जब आम आदमी को गैर हिमाचली व गैर कृषक होने की स्थिति में राज्य में जमीन खरीदने की अनुमति लेने से पहले कई सरकारी आपत्तियों का जवाब देना पड़ता है तो इस मामले में दोनों सरकारों के समय में कोई आपत्ति क्यों नहीं जताई गई.