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बीजेपी से टिकट की आस में मोदी के पक्ष में बोले बीएसपी से निकाले गए सांसद विजय बहादुर सिंह

नरेंद्र मोदी की तारीफ करने के चलते बुधवार को बीएसपी से निकाले गए हमीरपुर के सांसद विजय बहादुर सिंह ने वह बयान किसी भावुकता में नहीं दिया था. यह दरअसल बीजेपी के गेम प्लान का हिस्सा था. पार्टी अपने सवर्ण मतदाताओं में एक और ढंग से संदेश भेजना चाहती थी कि कैसे मोदी के नाम पर सब उसकी तरफ आ रहे हैं.

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विजय बहादुर सिंह
विजय बहादुर सिंह

गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करने के चलते बुधवार को बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) से निकाले गए हमीरपुर के सांसद विजय बहादुर सिंह ने वह बयान किसी भावुकता में नहीं दिया था. यह दरअसल बीजेपी के गेम प्लान का हिस्सा था. पार्टी अपने सवर्ण मतदाताओं में एक और ढंग से संदेश भेजना चाहती थी कि कैसे मोदी के नाम पर सब उसकी तरफ आ रहे हैं. विजय बहादुर को हमीरपुर से बीजेपी टिकट की आस ने ऐसा करने के लिए उकसाया. इसकी फौरी वजह थी बीएसपी का उन्हें अगले चुनाव के लिए टिकट न देना.
क्या कहा सांसद जी ने निष्कासन के बाद

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वाया मिश्रा जी हुई थी बीएसपी में एंट्री
हमीरपुर से बीएसपी के टिकट पर 2009 में सांसद बनने से पहले विजय बहादुर सिंह राजनीति के गलियारों में जाना पहचाना नाम नहीं थे. रीवा मध्यप्रदेश की पैदाइश वाले यह वकील साहब इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में पढ़े थे और वहीं हाई कोर्ट में वकालत जमा ली थी. यहीं उनकी बीएसपी के नंबर टू सतीश चंद्र मिश्र से जान-पहचान हुई और फिर उसी के दम पर वह हमीरपुर का टिकट ले आए. उन्होंने समाजवादी पार्टी (सपा) के सिटिंग एमपी राजनरायण बुधौलिया उर्फ रज्जू महाराज को 25 हजार वोटों से शिकस्त दी. दरअसल बीएसपी ने अपनी पुरानी रणनीति को ही इस सीट पर नए सिरे से आजमाया था. साल 2009 में बीएसपी ने एक और बाहुबली ठाकुर नेता अशोक चंदेल को चुनाव लड़वाया था और पार्टी ने बीजेपी से यह सीट छीन ली थी. बीएसपी जानती थी कि ठाकुर और परंपरागत दलित वोट यहां का विनिंग कॉम्बिनेशन है.

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मगर विजय बहादुर को बीएसपी की संस्कृति बहुत ज्यादा रास नहीं आई. बताया जाता है कि वह क्षेत्र में ज्यादा सक्रिय भी नहीं रहे. फिर अगले लोकसभा चुनावों के लिए जब पार्टी ने आंतरिक सर्वे करवाया तो विजय बहादुर की निगेटिव रिपोर्ट आई. उसी दिन तय कर लिया गया कि अब बीएसपी रणनीति बदलेगी. 10 जून को ऐलान कर दिया गया कि पार्टी अपने सिटिंग एमपी का टिकट काटेगी और पूर्व विधायक राकेश गोस्वामी यहां से चुनाव लड़ेंगे. गोस्वामी हमीरपुर लोकसभा में आने वाली महोबा विधानसभा से 2007 में बीएसपी के टिकट पर विधायक चुने गए थे. मगर 2012 में उन्हें टिकट नहीं दिया गया था. गोस्वामी पार्टी के ब्राह्मण कैंडिडेट के पैमाने पर खरे उतरने वाले 21वें प्रत्याशी थे.

तब तक विजय बहादुर को भी इस दांव की भनक लग चुकी थी. हमीरपुर से बीजेपी विधायक साध्वी निरंजन ज्योती थीं. उनके सहारे बीजेपी को टटोलने की कोशिश की गई. तार राजनाथ सिंह तक पहुंचे. फिर ये दांव तैयार हुआ कि बीएसपी सांसद सही समय पर बीजेपी के पक्ष में बोलें, अपनी निष्ठा सार्वजनिक करें, तब उनके टिकट पर विचार किया जाएगा.

बीएसपी ने डंप किया था संगठन में
इसी योजना के तहत चार रोज पहले विजय बहादुर सिंह ने कहा कि मोदी जी का 'पपी' वाला बयान सिर्फ यही बताता है कि वह संवेदनशील प्राणी हैं और अंहिसा को मानते हैं. इस बयान के बाद बीएसपी ने भी अपने घोड़े खोल दिए. पार्टी ने विजय बहादुर को टिकट नहीं दिया था. मगर यह कहा था कि वह बुंदेलखंड में संगठन का काम देखें. मगर विजय बहादुर ने जब अपना अलग रास्ता चुना, तो उन्हें बुधवार को रुखसती का परवाना थमा दिया गया. वैसे जून से ही जब-तब वकील साहब कहने लगे थे कि क्षेत्रीय दलों का छोटी सोच के चलते इस देश में कोई भविष्य नहीं है. मगर कहने को तो वह यह भी कह रहे थे कि मेरा चुनाव लड़ने का मन नहीं है.

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मन बना क्योंकि उन्हें संसद में वापसी का नया रास्ता दिखा. बीजेपी हमीरपुर कब्जाने के लिए ललचा रही है. उसने यहां जीत की हैट्रिक लगाई थी. 1989 में यहां से गंगाचरण राजपूत सांसद बने थे जनता दल के टिकट पर. फिर वह जनता दल यूथ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने. 1991 में बीजेपी के विश्वनाथ शर्मा ने पार्टी का खाता खोला. फिर कुछ ही बरसों में गंगाचरण लोध बिरादरी में अपनी बैठ के दम पर वाया कल्याण सिंह बीजेपी में आ गए और 1996 में पार्टी का टिकट पा गए. वह 1996 और 1998 में जीते, मगर 1999 में अशोक चंदेल के हाथों हार गए. फिर गंगाचरण कभी कांग्रेस, तो कभी सपा में होते हुए बीएसपी में पहुंचे और राज्यसभा से सांसद बन गए.

उमा भारती यहीं से हैं विधायक
हमीरपुर सीट बीजेपी के लिए इसलिए भी खास है क्योंकि उमा भारती भी यही की एक सीट चरखारी से विधायक हैं. उनका लोधी वोटों में खासा असर है. कथावाचन के दिनों से ही वह इस इलाके में सक्रिय रही हैं. बीजेपी सोच रही है कि लोध, ठाकुर वोटों को वह इस रणनीति से साध लेगी और मोदी के नाम पर उसे मध्यवर्ग का और पार्टी का परंपरागत वोट मिल जाएगा.

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