आम बजट आने के बाद इस साल सबसे ज्यादा नेशनल हेल्थ प्रोटेक्शन स्कीम की चर्चा हो रही है. वित्त मंत्री अरुण जेटली का दावा है कि ये दुनिया के किसी भी देश में सरकार द्वारा दी जाने वाली सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना है. बजट भाषण में वित्त मंत्री ने कहा था कि इस योजना का लाभ 10 करोड़ भारतीय परिवारों यानि 50 करोड़ लोगों को होगा. इन्हें साल भर में 5 लाख रुपए का स्वास्थ्य बीमा मिलेगा. बीमारी की स्थिति में अस्पताल में भर्ती होने पर लोग 5 लाख रुपए तक के स्वास्थ्य बीमा का लाभ उठा सकेंगे.
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बजट में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए क्या किया गया है, ये जानकारी देने के लिए स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्डा शुक्रवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में सामने आए. उन्होंने योजना को ऐतिहासिक और क्रांतिकारी बताया. लेकिन जब स्वास्थ्य मंत्री से ये पूछा गया कि इस योजना को अमल में लाने के लिए सरकार ने क्या तैयारी की है और इसका लाभ लोग कैसे उठा पाएंगे, तो उन्होंने चुप्पी साध ली.
स्वास्थ्य मंत्री नड्डा सिर्फ इतना ही कह पाए कि सरकार इस योजना को जमीन पर अमल में लाने के लिए तैयारी कर रही है और पूरी योजना का खाका बनते ही वह इसके बारे में बता पाने की स्थिति में होंगे. वैसे बजट को अगर गौर से पढ़ा जाए तो पता चलता है कि इस योजना के बारे में जवाब देना स्वास्थ्य मंत्री के लिए आसान नहीं होगा. दरअसल सुनने में यह योजना भले ही क्रांतिकारी लगती हो लेकिन असलियत यह है कि 50 करोड़ लोगों को 5 लाख का बीमा मुहैया कराने वाली इस योजना के लिए बजट में सिर्फ 2000 करोड़ रुपए का ही प्रावधान किया गया है. इतने रुपए से अगर सरकार सभी लोगों के लिए स्वास्थ्य बीमा खरीदना चाहेगी तो प्रति व्यक्ति प्रीमियम के लिए सिर्फ ₹40 रुपए ही बनेंगे. ₹40 रुपए के प्रीमियम पर 5 लाख रुपए की स्वास्थ्य बीमा कौन सी कंपनी कैसे देगी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है. विशेषज्ञों का अनुमान है कि अगर सचमुच इस योजना को लागू करना हो तो प्रीमियम के लिए ही एक लाख 20 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की जरूरत होगी. लेकिन यह धनराशि भारत के कुल स्वास्थ्य बजट का भी लगभग दोगुना है.
गौर से देखने पर पता चलता है कि जिस स्वास्थ्य बीमा योजना को सरकार नया और क्रांतिकारी स्कीम बता रही है वह दरअसल पहले से चली आ रही राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना का ही नया रूप है. राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत हर व्यक्ति को साल भर में ₹30000 तक का स्वास्थ्य बीमा देने की व्यवस्था थी. 2016 के बजट में राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना का दायरा बढ़ा कर इसे एक लाख रुपया करने की घोषणा की गई थी और इसका लाभ चार करोड़ लोगों को मिलना था. लेकिन दो साल बाद भी यह लागू नहीं हो सकी. कुछ समय पहले संसद में पूछे गए एक सवाल के जवाब में स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से कहा गया था कि सरकार अभी इस योजना को लागू करने की तैयारी कर रही है.
जब नड्डा से पूछा गया कि जब सरकार 4 करोड़ लोगों को 1 लाख रुपए के स्वास्थ्य बीमा योजना नहीं दे सकी तो फिर 50 करोड़ लोगों को 5 लाख रूपये का स्वास्थ्य बीमा देना कैसे संभव हो पाएगा. इस सवाल पर नड्डा के पसीने छूट गए. क्योंकि वह भी इस बात को अच्छी तरह समझते हैं कि महज दो हजार करोड़ रुपए के दम पर इतनी बड़ी योजना को लागू कर पाना असंभव है. लेकिन उन्होंने दावा किया कि सरकार इसे लागू करने के लिए धन की कमी नहीं होने देगी.
लेकिन अगर स्वास्थ्य बीमा का इंतजाम हो भी जाए तो स्वास्थ्य सेवाएं कैसी मिलेंगी यह कहना मुश्किल है. वजह है कि देश के दूरदराज इलाकों में ना तो इतने अस्पताल हैं और ना ही डॉक्टर, ना ही इलाज के लिए जरूरी साजो-सामान. सरकारी बीमा के दम पर प्राइवेट अस्पताल गरीबों का इलाज कैसे करेंगे इसका अंदाज लगाना मुश्किल नहीं है.
स्वास्थ्य के क्षेत्र में लंबे समय तक काम करने वाले विशेषज्ञ सी एम गुलाटी कहते हैं, ‘प्राइवेट अस्पतालों में सरकार के बीमा के दम पर गरीबों का इलाज नहीं हो सकता. इससे मरीजों के बजाय प्राइवेट अस्पतालों का ही फायदा होगा.’ गुलाटी कहते हैं कि यह योजना तभी कारगर रहेगी जब सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों को मजबूत किया जाएगा लेकिन मुश्किल ये है कि सरकार ने हेल्थ को पब्लिक सर्विस के बजाए इंडस्ट्री बना दिया है.
विपक्ष के नेता भी सरकार की स्कीम को हवा-हवाई बता रहे हैं जिसका मकसद सिर्फ 2019 के लोकसभा चुनाव में लोगों को बेवकूफ बनाना है. कांग्रेस के नेता राज बब्बर कहते हैं, ‘यह कैसा वादा है जो पूरा नहीं हो सकता. ऐसी घोषणा करके सरकार सिर्फ लोगों को बेवकूफ बना रही है.’
बजट में सरकार ने देशभर में हर तीन लोकसभा क्षेत्रों के बीच एक मेडिकल कॉलेज खोलने का ऐलान भी किया है. किस राज्य को कितने मेडिकल कॉलेज मिलेंगे इसका चुनाव हो चुका है लेकिन जिलों का फैसला होना अभी बाकी है.