लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस में आत्ममंथन की प्रक्रिया शुरू हो गई है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि लोकसभा चुनाव में हार की बड़ी वजह थी कि पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने संगठन में बड़े बदलाव कर साफ छवि वाले युवाओं को बड़ी भूमिका देने की कोशिश की थी.
अंग्रेजी अखबार 'द इकोनॉमिक टाइम्स' में छपी खबर के मुताबिक चुनाव के बाद कांग्रेसशासित प्रदेशों में विरोध के स्वर बुलंद होने से ऐसा लग रहा है कि पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अब राहुल को कदम वापस खींचने का संकेत दिया है और वरिष्ठ नेताओं को संगठन पर अपने असर का इस्तेमाल जारी रखने की इजाजत दे दी है.
पार्टी में घटाया जाएगा राहुल का असर
पार्टी को उम्मीद है कि इससे हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में होने वाले चुनावों में पार्टी
की स्थिति में सुधार होगा. कांग्रेस में प्रियंका गांधी को औपचारिक तौर पर शामिल करने की
बढ़ती मांग को गांधी परिवार ने वरिष्ठ नेताओं की ओर से राहुल को किनारे करने और
उनके असर को जान-बूझकर कमजोर करने की एक कोशिश के तौर पर देखा है. प्रियंका ने
पार्टी में कोई बड़ी भूमिका निभाने से इनकार किया है, लेकिन इससे सोनिया को पार्टी में
राहुल की ओर से किए जा रहे नए प्रयोगों को रोकने के लिए मजबूर होना पड़ा है.
महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण को पार्टी ने चुनावी मैदान में कमान संभालने की छूट दी है, लेकिन उन्हें इसमें काफी मुश्किलें आ रही हैं. महाराष्ट्र में पार्टी अध्यक्ष मानिकराव ठाकरे कोई कद्दावर नेता नहीं हैं और न ही उनके पास कोई बड़ी योजनाएं हैं. लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से चव्हाण के ज्यादातर सहयोगी उनकी जगह लेने की असफल कोशिश की है.
क्या है तीनों राज्यों का हाल
महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस दो और एनसीपी चार सीटें ही जीत सकी और इसे देखते हुए इस
गठबंधन के 288 सीटों वाली विधानसभा में कोई बड़ी कामयाबी हासिल करने की उम्मीद
नहीं दिख रही. कुछ विधायक अपनी सीटें बचाने में जुटे हैं और महाराष्ट्र में तीन बार के
विजेताओं ने अपनी किस्मत चमकाने के लिए ज्यादा कुछ नहीं किया है.
हरियाणा में मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के रेडियो पर विज्ञापनों के अलावा कोई उत्साह नजर नहीं आ रहा. राज्य की 90 विधानसभा सीटों के लिए केवल 1,000 उम्मीदवारों ने ही आवेदन किया है. यह संख्या 2009 में 8,000 आवेदनों की एक-चौथाई से भी काफी कम है.
झारखंड में कांग्रेस झारखंड मुक्ति मोर्चा की पार्टनर है और इस आदिवासी बहुल राज्य में पार्टी के पास कोई भी बड़ा आदिवासी नेता नहीं है. राज्य के अध्यक्ष सुखदेव भगत और राज्यसभा सदस्य प्रदीप कुमार बालमुचु का कद शिबू सोरेन, बाबूलाल मरांडी या बीजेपी के अर्जुन मुंडा जितना बड़ा नहीं है.