पांच ट्रिलियन डॉलर का सवाल है? क्या मोदी सरकार देश की इकोनॉमी को फिर से वापस खड़ा कर सकती है. दर्जनों प्रयास किए जा रहे हैं, क्या ये काफी है देश की इकोनॉमी को सुधारने में. क्या ये पर्याप्त है. आज इस विषय पर बिजनेस टुडे के माइंडरश कार्यक्रम में देश के विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने अपनी बात रखी.
माइंडरश कार्यक्रम में चल रहे इकोनॉमिक राउंडटेबल सेशन में प्रधानमंत्री के इकोनॉमिक एडवाइजरी काउंसिल की सदस्य आशिमा गोयल, सिटीबैंक इंडिया की चीफ इकोनॉमिस्ट समीरन चक्रवर्ती, सीएमआईई के सीईओ महेश व्यास, एसबीआई के ग्रुप चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर सौम्य कांति घोष और भाजपा नेता बैजयंत पांडा शामिल थे.
ग्रोथ रेट 12% हो तो 5 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी संभव हैः आशिमा गोयल
आशिमा गोयल ने कहा कि ये समय है हीलिंग का. समय है सुनने का. निर्मला सीतारमण भी यही करने का प्रयास कर रही हैं. महंगाई, मुद्रास्फीति, भ्रष्टाचार, अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं. ये काम काफी समय से चल रहा है. लेबर लॉ में बदलाव किए जा रहे हैं. इंडस्ट्री के लिए प्रयास किए जा रहे हैं. अब लोग सुन रहे हैं और इन प्रयासों की तरफ बढ़ रहे हैं. अर्थव्यवस्था एक ढांचागत बदलाव की तरफ जा रही है. इसलिए ऐसे में किसी भी तरह की भविष्यवाणी करना थोड़ा मुश्किल है.
उन्होंने कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था भी संस्कृति की तरह भिन्न है. मांग और सप्लाई के डेटा को देखना होगा. विभिन्नताएं इतनी ज्यादा हैं कि किसी भी बदलाव को एक पैमाने पर देखना बहुत मुश्किल है. मैक्रो-बिजनेस से फायदा होगा. बहुत ज्यादा प्रयास करने से बेहतर है कि सटीक प्रयास किए जाएं जो लंबे समय में फायदा दें. हम 5 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी बन सकते हैं. ग्रोथ रेट 12 फीसदी हो तो ये संभव है. अभी ये स्थिति नहीं बन रही लेकिन बन सकती है. समय है. मेहनत करनी होगी. सारे स्वदेशी या विदेशी इकोनॉमिस्ट को एक बकेट में नहीं रख सकते. हमें सबको सुनना होगा. रघुराम की बात भी सही है. लेकिन ये जरूरी नहीं है कि विदेशी अर्थव्यवस्था का फ्रेमवर्क देश में नहीं चलेगा. देश में बेहतरीन स्वदेशी इकोनॉमिस्ट हैं. टैक्स रेट में कमी का पूरी इंडस्ट्री स्वागत कर रही है. देश के आकार और विभिन्नता की वजह से ही यहां की अर्थव्यवस्था में सुधार आता है.
देश की इकोनॉमी में मंदी आई है पर आगे ठीक होगीः महेश व्यास
महेश व्यास ने कहा कि नीतिगत प्रयासों से सुधार आएगा लेकिन इसमें काफी समय लगेगा. तत्काल किसी भी प्रयास का असर देखने को नहीं मिलेगा. निजी सेक्टर के लिए किए गए प्रयासों के असर दिखने में थोड़ा समय लगेगा. जीडीपी ग्रोथ को लेकर कई कारण होते हैं. अचानक से ग्रोथ नहीं होगी. खराब दौर आया है लेकिन इतना खराब नहीं है कि हम दुखी हो जाएं. लोग निवेश नहीं कर रहे हैं. क्योंकि जरूरतें कम हुई हैं लेकिन ये आगे चलकर ठीक हो जाएगा.
उन्होंने कहा कि ये कहना गलत नहीं होगा कि देश की अर्थव्यवस्था में कमी आई है. लेकिन इस सरकार ने बहुत ज्यादा समय लिया है ये मानने में कि मंदी है. इससे फर्क नहीं पड़ता कि इकोनॉमिक एक्सपर्ट कहां से आया है. वो विदेशी हो या देसी. बोलेगा वहीं जो दिखाई पड़ेगा. 5 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी के लिए देश को जीडीपी ग्रोथ रेट बढ़ाना होगा. हम ये कर सकते हैं. हम इतनी बड़ी इकोनॉमी बन सकते हैं. हमें इसके लिए काफी ज्यादा मेहनत करनी होगी.
निवेश में कमी घोटालों की वजह से आई थी, अब निवेश बढ़ रहा हैः बैजयंत पांडा
बैजयंत पांडा ने कहा कि पिछले 18 महीने में पूरी दुनिया में कई देशों की इकोनॉमी कमजोर हुई है. इसका असर भारत पर भी पड़ा है. विदेशी निवेश आ रहे हैं. एपल फोन के यूनिट शुरू हुए हैं. सरकार के प्रयासों का असर हो रहा है. पिछले तीन महीने में काफी ज्यादा कदम उठाए गए हैं. जीएसटी कलेक्शन लगातार बढ़ा है. सिर्फ कुछ महीनों में ये कम आया. अगली चौथाई में ये फिर तेजी से बढ़कर सामने आएगा. दुनिया ये अंदाजा लगा रही कि भारत 7 फीसदी से ज्यादा ग्रोथ रेट लेकर आएगा. हमारे लेबर कानून की वजह से कई कंपनियां रोजगार नहीं देती. लेकिन अगर हम इन कानूनों में थोड़ा बदलाव करें तो शायद और फायदा हो.
निवेश 2011 से कम होता जा रहा है. ये क्यों हुआ, क्योंकि घोटाले थे. स्पेक्ट्रम, कोयला आदि. हमारे घोटालों की वजह से देश की अर्थव्यवस्था खराब हुई. लेकिन अब दुनिया निवेश कर रही है. पिछली तिमाही में देश के ग्रामीण इलाकों में घरेलू उत्पादों की मांग बढ़ी है. ये कहना गलता होगा कि मांग कम हो रही है. अगले कुछ सालों में भारत जापान को पीछे छोड़कर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी बन जाएगा. अगले दो-तीन तिमाही में हमारी अर्थव्यवस्था में सुधार आएगा.
रघुराम राजन ने ये कैसे सोच लिया कि देश में अर्थव्यवस्था के एक्सपर्ट नहीं है. पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आरबीआई से पांच साल तक मांग की कि रेट कम करो. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. देश में ज्यादा एक्सपर्ट होने से भी दिक्कत हो जाती है. लेकिन देश में अच्छे इकोनॉमिक एक्सपर्ट हैं. वित्त मंत्री ने काफी कदम उठाए हैं. सरकार उठा रही है. ये कहना गलत होगा कि सरकार प्रयास नहीं कर रही है. चुनाव के साथ इकोनॉमी पर फोकस करने में थोड़ी दिक्कत आती है.
आर्थिक मंदी से बाहर निकलेगा देश, थोड़ा धैर्य रखना होगाः समीरन चक्रबर्ती
समीरन चक्रबर्ती ने कहा कि अगर आप दुनिया के एक्सपोर्ट में भारत का हिस्सा देखेंगे तो यह बढ़ा है. भारतीय इकोनॉमी घरेलू है. यहां पर हम कमजोर हो रहे हैं. जब अर्थव्यवस्था लगातार आगे बढ़ रही हो, तो उसमें बदलाव धीमे-धीमे दिखते हैं. इंट्रेस्ट रेट का असर दिखने में तीन-चार तिमाही लग जाते हैं. इकोनॉमी को सपोर्ट किया गया है. असर दिखने में थोड़ा समय लगेगा. हमे धैर्य रखना होगा.
पिछले 20 साल में ये पहली बार ऐसा हुआ है कि हमने इतने कम ग्रोथ के बावजूद अच्छा परफॉर्म कर रहे हैं. ये मांग की मंदी है. सप्लाई तो हो ही जाएगी. फॉर्मल सेक्टर वापस लौटेंगे, लेकिन इनफॉर्मल इकोनॉमी के बारे में कहना मुश्किल है. क्योंकि इनका डेटा नहीं है. इनका विश्लेषण करना मुश्किल है.
सबकुछ सरकार के हाथ में नहीं होता. उनकी भी सीमाएं होती हैं. 5 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी को लेकर थोड़ी दुविधा है. आखिर ये इकोनॉमी कैसी दिखेगी? हमें इसपर ज्यादा रिसर्च करने की जरूरत है ताकि वैसे नियम बनाकर इसका स्वरूप तय कर सकें.
देश के छोटे शहर बनाएंगे 5 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमीः सौम्य कांति घोष
सौम्य कांति घोष ने कहा कि लंदन का चुनाव और अमेरिका-चीन डील विश्व और भारत की अर्थव्यवस्था के लिए बेहतर होगा. भारत और चीन मिलकर 19 फीसदी जीडीपी बनाते हैं पूरी दुनिया का. जो कुछ साल पहले 9 फीसदी था. डिमांड और सप्लाई फैक्टर की वजह से ऐसा हुआ है. कुछ मामलों में स्लोडाउन दिख रहा हो लेकिन बदलाव होगा. थोड़ा समय लगेगा. हमने उम्मीद की थी अर्थव्यवस्था में सुधार आएगा लेकिन इसमें समय लग रहा है.
अभी यह बता पाना मुश्किल है कितना समय लगेगा. लेकिन ग्लोबल ग्रोथ आएगा, उसके असर से भारत में भी सुधार आएगा. अलग-अलग अर्थव्यवस्थाएं अलग-अलग दिशाओं में चल रही है. ऐसे में फैसला करना मुश्किल होता है कि ग्रोथ कब और कितना होगा. भारत में 5 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी बनने की क्षमता है. क्योंकि देश के छोटे शहरों में इतनी ज्यादा क्षमता है कि ये ही देश को 5 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी बना देंगे.