प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में वापसी करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अब तक का सबसे प्रचंड विरोझ झेलना पड़ रहा है. बीजेपी सरकार का ये विरोध CAA और NRC को लेकर हो रहा है. विपक्ष, छात्र और सिविल लिबर्टी पर काम करने वाली संस्थाओं ने नरेंद्र मोदी सरकार पर दो टूक आरोप लगाया है और कहा है कि सरकार संविधान के बुनियादी मूल्यों में हेर-फेर कर देश के सेकुलर ढांचे को नुकसान पहुंचाना चाहती है.
पिछले साढ़े 5 साल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगातार दो बार सत्ता में दमदार वापसी की है. अगर वोटों के लिहाज से बात करें तो पिछले बार के मुकाबले उनकी लोकप्रियता का ग्राफ भी बढ़ा है, लेकिन पीएम की लोकप्रियता के साथ एक और धारा समांतार चल रही है और ये है उनकी सरकार, उनकी पार्टी और उनकी विचारधारा के विरोध की धारा.
अखलाक और असहिष्णुता पर बवाल
2014 में जब मोदी लहर पर सवार होकर बीजेपी सत्ता में आई तो बीजेपी को पहली बार 2015 में लोगों के आक्रोश का सामना करना पड़ा. ये आक्रोश दिल्ली से सटे दादरी में एक मुस्लिम शख्स अखलाक की पीट-पीट कर हत्या के बाद पैदा हुई थी. दादरी के बिसाहड़ा गांव में सितंबर 2015 में भीड़ ने गौमांस खाने के अफवाह में अखलाक की हत्या कर दी थी. इस घटना के बाद देश भर में मोदी सरकार का विरोध होने लगा. विपक्षी दलों के नेताओं और कला जगत के दिग्गजों ने आरोप लगाया कि नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के बाद देश में असहिष्णुता बढ़ी है. इस मुद्दे को लेकर देश भर में प्रदर्शन हुआ है.
जाट आंदोलन
अखलाक और असहिष्णुता के मुद्दे पर सरकार अभी विरोधियों के हमले झेल ही रही थी कि सरकार का एक और मुद्दे पर विरोध शुरू हो गया. ये मुद्दा था जाटा आंदोलन. यूपीए सरकार ने 2 मार्च 2014 को केंद्र 9 राज्यों के जाटों को आरक्षण देने की घोषणा की थी. मई 2014 में केंद्र में बीजेपी की सरकार बनी. इसी दौरान जाटों के आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. मार्च 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने यूपीए सरकार के इस फैसले को खारिज कर दिया और आरक्षण पर रोक लगा दी.
इसके बाद दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, यूपी के जाट भड़क उठे. 13 फरवरी 2016 को जाटों ने आंदोलन की घोषणा कर दी. ये आंदोलन नौ दिनों तक चला. इस दौरान हरियाणा में भयानक तोड़-फोड़ की गई. रोहतक तो कई दिनों तक प्रदर्शनकारियों के हवाले रहा. रेलगाड़ियां ठप रही और सरकार को करोड़ों का नुकसान झेलना पड़ा. आंदोलनकारियों ने दिल्ली में हाईवे जाम कर दिया था और पानी की सप्लाई भी बंद कर दी थी. रोहतक, जींद, झज्जर, भिवानी, हिसार, कैथल, सोनीपत और पानीपत में हालात इतने बिगड़े की सेना बुलानी पड़ी. उत्पात मचा रहे लोगों को देखते ही गोली मारने का आदेश दिया गया.
रोहित वेमुला खुदकुशी
जाट आंदोलन के साथ-साथ देश में रोहित वेमुला की खुदकुशी पर भी नरेंद्र मोदी सरकार का देश भर में विरोध हुआ. रोहित वेमुला हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में पीएचडी का छात्र था. 17 जनवरी 2016 को विश्वविद्यालय में उसने खुदकुशी कर ली थी. रोहित वेमुला की मौत पर देश भर में नरेंद्र मोदी सरकार का विरोध हुआ. कहा गया है रोहित वेमुला दलितों के साथ हो रहे भेद-भाव से इतना तंग आ गया था कि उसने खुदकुशी कर ली थी.
इस मामले पर नरेंद्र मोदी सरकार का जोरदार विरोध हुआ. बात यहां तक बढ़ी कि पीएम मोदी को भी सफाई देनी पड़ी. तब पीएम ने कहा था कि जब ये खबर मिलती है कि मेरे देश के एक नौजवान बेटे रोहित को आत्महत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ता है...उसके परिवार पर क्या बीती होगी. मां भारती ने अपना एक लाल खोया. कारण अपनी जगह पर होंगे. राजनीति अपनी जगह पर होगी, लेकिन सच्चाई ये है कि मां भारती ने अपना एक लाल खोया.' रोहित वेमुला की खुदकुशी के विरोध में कई लेखकों, कलाकारों ने अपने अवॉर्ड वापस कर दिए.
एससी/एसटी एक्ट
नरेंद्र मोदी सरकार को अपने कार्यकाल में दलित समाज का भी विरोध झेलना पड़ा. सितंबर 2018 में दलित समुदाय ने मोदी सरकार के खिलाफ विशाल देशव्यापी प्रदर्शन किया. ये विरोध एससी/एसटी एक्ट में किये गए बदलाव के खिलाफ किया गया था. दरअसल एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट के बदलाव करते हुए कहा था कि इससे जुड़े मामलों में तुरंत गिरफ्तारी नहीं की जाएगी.
अदालत ने कहा था कि शिकायत मिलने के बाद डीएसपी स्तर के पुलिस अफसर शुरुआती जांच करेंगे और जांच किसी भी सूरत में 7 दिन से ज्यादा समय तक नहीं होगी. डीएसपी शुरुआती जांच कर ये तय करेंगे कि शिकायत के मुताबिक क्या कोई मामला बनता है या फिर झूठा आरोप लगाकर फंसाया जा रहा है? दलित समुदाय ने इस बदलाव के खिलाफ तीव्र प्रतिक्रिया दी और 2 अप्रैल 2018 को भारत बंद का आह्नवान किया. इस बंद के दौरान पड़े पैमाने पर हिंसा हुई और 6 लोगों की मौत हो गई. कई ट्रक जला दिए गए. आखिर दलित समुदाय के विरोध के आगे सरकार को झुकना पड़ा और सरकार ने कानूनी प्रावधान कर एससीएसटी एक्ट के पुराने स्वरूप को बरकरार रखा.
किसान आंदोलन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने कार्यकाल में कई बार किसानों के गुस्से का सामना करना पड़ा. कर्ज के बोझ से जूझ रहे किसान सड़कों पर निकल आए और सरकार से MSP बढ़ाने समेत कई मांग को लेकर नारा बुलंद किया. 2014 लोकसभा चुनाव के बाद जब केंद्र सरकार ने भूमि अधिग्रहण बिल को संसद में पेश कर दिया था. इसके बाद किसानों में सरकार के प्रति निराशा का भाव पैदा हो गया. हालांकि कांग्रेस नेता राहुल गांधी के तीव्र विरोध के बाद सरकार को झुकना पड़ा. राहुल ने इस बिल को लेकर कहा कि सरकार ने किसानों के गले पर कुल्हाड़ी चलाई है.
महाराष्ट्र में पिछले पांच सालों में कई किसान आंदोलन हुए. एमपी का मंदसौर भी किसानों के आंदोलन का केंद्र रहा. यहां पुलिस की गोलीबारी में 6 किसानों की मौत हो गई. भारतीय किसान यूनियन ने 2018 में विशाल क्रांति पदयात्रा शुरू की. ये पदयात्रा सितंबर 2018 में हरिद्वार के टिकैत घाट से शुरू हुई थी. सितंबर 2019 में भारतीय किसान संगठन ने भी सरकार के खिलाफ पदयात्रा निकाली ये पदयात्रा 11 सितंबर को सहारनपुर से शुरू हुई थी. इसके अलावा भी किसानों ने मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले रखा.