नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनसीआर) को लेकर देश भर में विरोध प्रदर्शन हुए हैं. दावा किया जा रहा है कि सीएए और एनआरसी के लागू होने से मुसलमानों की नागरिकता चली जाएगी. हालांकि मोदी सरकार इस दावे को सिरे से खारिज कर रही है.
इसके अलावा कानूनी विशेषज्ञों का भी कहना है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम किसी भी धर्म के खिलाफ नहीं है. इसमें किसी की नागरिकता छीनने का कोई प्रावधान नहीं किया गया है. लॉ प्रोफेसर डॉ राजेश दुबे और सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट जितेंद्र मोहन शर्मा के मुताबिक, नागरिकता संशोधन अधिनियम से किसी की नागरिकता नहीं जाएगी. यह नागरिकता देने के लिए बनाया गया है.
कोर्ट का खटखटा सकते हैं दरवाजा
सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट जितेंद्र मोहन शर्मा का यह भी कहना है कि अगर कोई भारत का नागरिक है और उसकी नागरिकता किसी भी वजह से चली जाती है, तो वह अनुच्छेद 32 के तहत सीधे सुप्रीम कोर्ट और अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है.
उन्होंने बताया कि किसी की नागरिकता कोई नहीं छीन सकता है. यह हर नागरिक का मौलिक अधिकार है. हालांकि जो भारत का नागरिक नहीं हैं और घुसपैठिया है, तो उसको नागरिकता देने या न देना केंद्र सरकार के विवेक और कानून की शर्तों पर निर्भर है. शर्मा ने यह भी बताया कि भारत में जन्म से नागरिकता मिलती है या फिर हासिल की जाती है.
लागू करने से इनकार नहीं कर सकती राज्य सरकारें
एक सवाल के जवाब में लॉ प्रोफेसर डॉ राजेश दुबे और सीनियर एडवोकेट शर्मा ने बताया कि नागरिकता केंद्रीय सूची का विषय है, जिस पर कानून बनाने का अधिकार सिर्फ संसद को है. इस पर राज्य सरकारों को कोई अधिकार नहीं हैं. लिहाजा नागरिकता संशोधन अधिनियम को लागू करने से कोई राज्य इनकार नहीं कर सकता है. ऐसा करना संविधान के खिलाफ है और केंद्र सरकार राज्यों को बर्खास्त कर सकती है.
मोदी सरकार की क्या है दलील?
इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह साफ कह चुके हैं कि सीएए नागरिकता देने वाला कानून है. इसको पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के अल्पसंख्यकों हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई और पारसियों को नागरिकता देने के लिए लाया गया है, जो अपने मुल्क में प्रताड़ना का शिकार हुए हैं.
पीएम मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का कहना है कि जहां तक एनआरसी का सवाल है, तो इस पर अभी चर्चा नहीं हुई है. हालांकि अमित शाह का यह भी कहना है कि एनआरसी को पूरे देश में लागू किया जाएगा. इसको लेकर मुसलमानों में डर फैलाया जा रहा है कि एनआरसी लागू होने से देश के मुसलमानों की नागरिकता चली जाएगी.
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नागरिकता वापस पाने के क्या हैं रास्ते
हालांकि प्रधानमंत्री मोदी का कहना है कि जो इस देश की मिट्टी के मुसलमान हैं, उनकी नागरिकता नहीं जाएगी. बीजेपी का कहना है कि एनआरसी से सिर्फ घुसपैठियों को बाहर किया जाएगा और उनको उनके मुल्क वापस भेजा जाएगा. इन सबके बीच नागरिकता को लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं.
संविधान ने किनको माना भारत का नागरिक?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 5 लेकर अनुच्छेद 11 तक नागरिकता का प्रावधान किया गया है. संविधान में जिनको नागरिकता दी गई है, उनकी नागरिकता कोई छीन नहीं सकता है. अगर किसी की नागरिकता को कोई छीनने की कोशिश करता है, तो वह न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकता है.
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संविधान में साफ लिखा है कि संविधान के 1950 में लागू होने पर भारत में निवास करने वाले वे सभी लोग भारत के नागरिक होंगे, जिनका जन्म भारत में हुआ था या जिसके माता-पिता में से कोई भारत में जन्मे थे या जो कम से कम पांच साल से भारत में मामूली तौर से निवास कर रहे थे.
पाकिस्तान-बांग्लादेश से आने वाले लोगों को नागरिकता
संविधान के लागू होने यानी 26 जनवरी 1950 से पहले पाकिस्तान (तब बांग्लादेश भी पाकिस्तान का हिस्सा था) से भारत आए उन सभी लोगों को भारत की नागरिकता दी गई, जिनके माता-पिता या दादा-दादी या नाना-नानी अविभाजित भारत (भारत और पाकिस्तान) में जन्मे थे. इसके अलावा संविधान में उन लोगों को भी नागरिकता दी गई, जो 19 जुलाई 1948 से पहले भारत आकर बस गए.