दागी सांसदों और विधायकों को बचाने के लिए सरकार ने एक नया पैंतरा अपनाया है. जब तक किसी दागी सांसद या विधायक पर आखिरी फैसला नहीं आ जाता, तब तक उन्हें जनता की नुमाइंदगी करने से नहीं रोका जाएगा. सरकार ने कैबिनेट में बड़ा फैसला करते हुए जनप्रतिनिधित्व कानून में संशोधन को मंजूरी दे दी है.
कैबिनेट की ये कवायद सुप्रीम कोर्ट के उस फैसला को बदलने के लिए हुई है, जिसमें दो साल या ज्यादा की सजा होते ही सांसद या विधायक की सदस्यता छीने जाने का आदेश दिया गया था. अब अगर किसी को सजा होती भी है कि तो ऊपरी कोर्ट में मामला लंबित रहने तक संबंधित सांसद या विधायक सदस्य बने रहेंगे, हालांकि उन्हें भत्ता नहीं मिलेगा और वोटिंग का अधिकार नहीं होगा.
इसी तरह दूसरे संशोधन में ये कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति पुलिस हिरासत में है तो भी वो वोटर बना रहेगा यानी चुनाव लड़ सकता है. पटना हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि अगर वो जेल में है तो मतदाता नहीं बना रह सकता है.
महात्मा गांधी ने इस बात पर जोर दिया था कि संसद की पवित्रता बनी रहनी चाहिए, लेकिन लगता है सरकार चलाना और बचाना ज्यादा जरूरी है. इसके अलावा सरकार ने न्यायपालिका पर भी नकेल कसने की तैयारी कर ली है.
कैबिनेट में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए एक राष्ट्रीय न्यायिक आयोग बनाने की मंजूरी दे दी. यानी अब जजों की नियुक्ति का फैसला सिर्फ जजों का कोलीजियम नहीं करेगा, बल्कि इसमें सरकार और विपक्ष का दोनों प्रतिनिधित्व होगा.
संसद में इस समय 151 से ज्यादा बिल लंबित हैं, लेकिन सरकार उस पर कोई हड़बड़ी नहीं दिखा रही, लेकिन दागी नेताओं पर गाज गिरने की बारी आई तो सारी पार्टियां एकजुट हो गईं.