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2019 नहीं, 2024 था मोदी के इस मंत्रिमंडल फेरबदल का असल मकसद?

देश में कैबिनेट विस्तार को बदलाव के तौर पर देखा जाता है. क्या मोदी वाकई अलग हैं? अब जबकि मोदी के 'मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस' का बयान न्यू इंडिया और 4पी की चमक में धूमिल हो गया है, रविवार को हुए कैबिनेट फेरबदल के कुछ बदलावों को समझना जरूरी है.

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मोदी कैबिनेट का यह तीसरा फेरबदल
मोदी कैबिनेट का यह तीसरा फेरबदल

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बात कैबिनेट फेरबदल की हो तो रोमांच क्रिकेट टीम की घोषणा से ज्यादा होता है. जाहिर है इससे राजनीति का नया खेल पता चलता है. हमें कई हफ्तों से पता था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी संसद के मानसून सत्र के तुरंत बाद कैबिनेट में फेरबदल करेंगे. शनिवार तक सभी को स्पष्ट हो चुका था कि किसे कैबिनेट में जगह मिलेगी और कौन अपनी कुर्सी गंवा बैठेगा. छह मंत्री पहले ही प्रधानमंत्री का काम आसान करने के लिए अपना इस्तीफा सौंप चुके थे. तीन रिक्तियां कैबिनेट में पहले से थीं- मनोहर पार्रिकर, वेंकय्या नायडु और अनिल दवे. लिहाजा, फेरबदल का गणित भी आसान था: इन रिक्तियों से पहले मोदी कैबिनेट में 75 सदस्य थे और रविवार को हुए विस्तार में नौ नए मंत्रियों के साथ भी कैबनेट में 75 सदस्य हैं. मोदी कैबिनेट के कार्यकाल में यह तीसरा फेरबदल है और अब इस नई टीम पर कार्यकाल के बचे हुए दिनों की जिम्मेदारी है.

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हालांकि राजनीति क्रिकेट नहीं है. एक अच्छी क्रिकेट टीम टेस्ट मैच के पांचों दिन एक साथ अच्छा खेलते हुए मैच जीत सकती हैं. लेकिन पांच साल तक अच्छी सरकार चलाने के बावजूद विपक्ष में बैठी पार्टी की जीत के ज्यादा आसार होते हैं. वोटर के बर्ताव का अनुमान हमेशा नहीं लगाया जा सकता है. 2009 में यूपीए सरकार भ्रष्टाचार और गठबंधन की खींचतान के दौर से गुजर रही थी. लगातार तीन साल तक 9 फीसदी से अधिक जीडीपी ग्रोथ के बावजूद 2008-09 में जीडीपी नाटकीय ढंग से 6.7 फीसदी पर सिमट जाती है. इसके बावजूद सत्तारूढ़ कांग्रेस 2009 चुनाव में 28.5 फीसदी वोट शेयर के साथ 61 अधिक सीट जीतकर 206 का आंकड़ा छू लेती है. वहीं 2004 के चुनावों में पार्टी को 26.5 फीसदी वोट शेयर के साथ महज 145 सीट पर जीत मिली थी. वहीं विपक्ष में बैठी बीजेपी को 2004 में 138 सीट मिली लेकिन 2009 में महज 116 सीट पर सिमट गई.

क्या ज्यादा सीट पाने का मतलब था कि यूपीए-2 ज्यादा स्थिर सरकार थी? एक शोध के मुताबिक 23 मई 2009 से लेकर 16 मई 2014 तक जब मोदी को विजयी घोषित किया गया, मनमोहन सिंह कैबिनेट में 16 बदलाव किए गए. मंत्रियों का आना और जाना हास्यास्पद भी रहा. यूपीए-2 के कार्यकाल में 7 रेल मंत्री रहे लिहाजा मोदी के तीन साल में तीन रेल मंत्री का आंकड़ा इतना खराब नहीं है. लेकिन, 8 साल में 10 रेल मंत्री?

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देश में कैबिनेट विस्तार को बदलाव के तौर पर देखा जाता है. क्या मोदी वाकई अलग हैं? अब जबकि मोदी के 'मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस' का बयान न्यू इंडिया और 4पी की चमक में धूमिल हो गया है, रविवार को हुए कैबिनेट फेरबदल के कुछ बदलावों को समझना जरूरी है.

-जिन चार राज्य मंत्रियों को कैबिनेट दर्जे के साथ प्रमोशन दिया गया- निर्मला सीतारमण, पियूष गोयल, धर्मेंद्र प्रधान और मुख्तार अब्बास नकवी- सभी राज्यसभा से हैं और उनकी अपनी कोई राजनीतिक जमीन नहीं है.

- यह अच्छी बात है कि चार नौकरशाहों को मंत्री बनाया गया लेकिन उन्हें दिए गए कार्यभार का कोई अनुभव नहीं है.

- उप-राष्ट्रपति बनाए गए वेंकय्या नायडु मोदी के वरिष्ठतम मंत्रियों में शुमार थे. उनके जिम्मे हाउसिंग और शहरी विकास मंत्रालय को अब एक राज्य मंत्री संभालेंगे.

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- हरदीप सिंह पुरी विदेश सेवा के एक सफल अधिकारी थे. अब उनका परीक्षण तेज शहरीकरण और स्मार्ट सिटी की चुनौतियों पर किया जाएगा.

- इसी तरह सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय को भी कैबिनेट मंत्री की जगह राज्य मंत्री देखेंगे. गौरतलब है कि नोटबंदी के फैसले ने इस मंत्रालय के लिए कड़ी चुनौतियां पेश की हैं.

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- नायडु के एक अन्य मंत्रालय सूचना और प्रसारण (आईबी) को पहले अस्थाई रूप से स्मृति ईरानी के अधीन किया गया था, अब वह दोनों टेक्सटाइल और आईबी जैसे गैरसंबंधित मंत्रालयों की कमान संभालेंगी.

- इसी तरह वित्त मंत्रालय के दो राज्य मंत्रियों की जगह पर दो अन्य नए मंत्री दिए गए हैं जिन्हें मंत्रालय का कोई अनुभव नहीं है. यह कदम ऐसे समय पर उठाया गया जब अर्थव्यवस्था नाजुक दौर से गुजर रही है और उसे एक प्रोफेश्नल और एक्सपर्ट नेतृत्व की जरूरत है.

- नितिन गडकरी हाईवे, रोड ट्रांस्पोर्ट और शिपिंग मंत्रालय को सफलतापूर्वक चला रहे थे और अब उन्हें इसके साथ नमामि गंगे और जल-संसाधन मंत्रालय भी संभालना होगा. यह कार्यभार पहले उमा भारती के पास था और वह साफ तौर पर जिम्मेदारियों को निभाने में विफल पाई गईं. इसके बावजूद उनकी छुट्टी नहीं की गई और उन्हें पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय का जिम्मा दिया गया है.

- इसी तर्ज पर मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर सत्या पाल को राज्य मंत्री बनाते हुए ह्यूमन रिसोर्स और वॉटर रिसोर्स का कार्यभार दिया गया है. वहीं पेट्रोलियम और नैचुरल गैस मंत्रालय को बखूबी संभालने वाले राज्य मंत्री धर्मेंद्र प्रधान अब बतौर कैबिनेट मंत्री यह काम करेंगे. इसके अलावा उनके सुपुर्द केन्द्र सरकार की फ्लैगशिप योजना स्किल डेवलपमेंट को भी किया गया है.

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- वहीं पुरी और अलफोंस कन्ननथनम को सीधे राज्यमंत्री का दर्जा दिया गया है. राजनीति में उनकी पारी एक प्रयोग के तौर पर है.

- अंत में निर्मला सीतारमण को डिफेंस मंत्रालय की जिम्मेदारी मोदी सरकार में सबसे अहम बदलाव है. 2019 चुनावों के पहले यह महिला सशक्तीकरण का इशारा है और साफ संकेत देने की कोशिश है कि बीजेपी में सभी के लिए समान अवसर उपलब्ध है. राजनीति में अपनी जगह बनाने में सफल निर्मला को कॉमर्स और इंडस्ट्री मंत्रालय के कार्यकाल में कोई विशेष उपलब्धि हाथ नहीं लगी. यहां वह स्वतंत्र प्रभार वाली राज्य मंत्री थीं. वहीं बीते तीन साल तक कैबिनेट दर्जे के साथ रेल मंत्रालय चलाने वाले सुरेश प्रभु को अब निर्मला का मंत्रालय दिया गया है. प्रभु ने तीन साल के दौरान रेल को सुधारने की कवायद की लेकिन लगातार हो रहे रेल हादसों ने सरकार को इस बदलाव के लिए मजबूर कर दिया.

लिहाजा, एक बात साफ है कि अगले 20 महीनों तक मोदी सरकार के लिए मायने नहीं रखता कि कौन व्यक्ति किस मंत्रालय की कमान संभाल रहा है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह अपने मिशन 350 की शुरुआत कर चुके हैं. मोदी कैबिनेट में प्रमोशन पाए मंत्री धर्मेंद्र प्रधान(केरल), पुयूष गोयल (तमिलनाडु) और निर्मला सीतारमण (कर्नाटक) को पहले ही अमित शाह की तरफ से चुनाव की जिम्मेदारी सौंपी जा चुकी है.

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