प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को कैबिनेट का पहला विस्तार किया तो हर किसी की नजर मंत्रियों के पोर्टफोलियो पर थी. शाम ढलते-ढलते मंत्रियों को मंत्रालय मिला तो मंत्रिमंडल विस्तार में पीएम ने कमोबेश सभी राज्यों का खयाल भी रखा, लेकिन इन सब के बीच इस विस्तार में पीएम ने उस नीति पर भी काम किया, जिसका लाभ उन्हें आने वाले समय में मिलने वाला है. सरकार के नए 21 चेहरों में एक सीए, एक हार्वर्ड एमबीए और एक आईआईटीयन शामिल है तो महंगाई से लेकर खेती, इंस्फ्रास्ट्रक्चर से लेकर इंडस्ट्री ग्रोथ और चुनावी मौसम तक का दारोमदार इन्हीं के कंधों पर है.
चार नए कैबिनेट मंत्रियों की बात करें तो गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री और विस्तार की सबसे अहम कड़ी मनोहर पर्रिकर को रक्षा मंत्रालय सौंपा गया है. पर्रिकर आईआईटी बॉम्बे से ग्रेजुएट हैं. उन्हें ऐसे समय में रक्षा मंत्रालय मिला है जब सरकार ने हाल ही आकर्षक रक्षा क्षेत्र को निजी उद्योगों के लिए खुला छोड़ दिया और यही से प्रधानमंत्री के मेक इन इंडिया की शुरुआत भी होती है.
दिलचस्प यह है कि सभी चार कैबिनेट मंत्री राज्यसभा से होंगे. यानी सरकार सिर्फ लोकसभा के भरोसे आगे बढ़ने की नीति नहीं अपनाने वाली है. बताया जाता है कि सुरेश प्रभु हरियाणा से तो पर्रिकर यूपी से राज्यसभा में एंट्री लेंगे.
प्रभु भरोसे भारतीय रेल
रविवार को मंत्रिमंडल विस्तार में मनोहर पर्रिकर के बाद सबसे अधिक चर्चा सुरेश प्रभु की रही. जाहिर तौर पर इसका एक कारण बीजेपी-शिवसेना का हाई वॉल्टेज ड्रामा रहा, लेकिन पूर्व सीए प्रभु की काबिलियत पर मोदी सरकार को पूरा भरोसा है. वह वाजपेयी सरकार में ऊर्जा मंत्री रह चुके हैं, जबकि अब उन्हें रेल मंत्रालय का नया भारतीय रेल का नया पायलट बनाया गया है. रेलवे में घाटे की बात देश की अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी चिंता है. लेकिन इसे सुधारने के क्रम में यात्रियों की जेब पर बोझ नहीं बढ़ाने का दायित्व भी प्रभु के ही हाथ में है. यानी विकास के साथ ही वोट की जुगत भी जरूरी है क्योंकि बीजेपी 10 वर्षों तक सत्ता के केंद्र में रहना ही चाहेगी.
जूनियर जेटली की भूमिका
जयंत सिन्हा को वित्त राज्य मंत्रालय सौंपा गया है. उन्होंने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और आईआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों से पढ़ाई की है. 51 साल के सिन्हा को कॉरपोरेट गवर्नेंस और रणनीति बनाने में लंबा अनुभव है. जाहिर तौर पर वित्त मंत्री अरुण जेटली बजट बनाने से लेकर अन्य आर्थिक नीतियों में सिन्हा के अनुभव का लाभ लेना चाहेंगे.
यूपी वाया पंजाब की नीति
रामशंकर कठेरिया यूपी में बीजेपी का दलित चेहरा हैं. अक्टूबर 2014 में वह उत्तर प्रदेश बीजेपी के प्रभारी बनाए गए. वह आगरा से बीजेपी के सांसद हैं और उन्हें मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री बनाया गया है. लेकिन यूपी के बहाने यहां पंजाब को साधने की नीति है. कठेरिया के हाथों पंजाब में बीजेपी की कमान है. महाराष्ट्र में शिवसेना से अलगाव के बाद अब पंजाब में बीजेपी-अकाली दल गठबंधन को लेकर चर्चाओं का दौर शुरू हो चुका है. अगर बीजेपी 'एकला चलो' की राह पकड़ती है तो कठेरिया 'हुक्म का इक्का' साबित हो सकते हैं. वह दलित चेहरा हैं और पंजाब में 35 फीसदी वोटर दलित हैं. इसके अलावा पंजाब से विजय सांपला भी बीजेपी के विजय रथ में ध्वजवाहक की भूमिका निभा सकते हैं.
इसके अलावा सरकार ने बिहार से तीन मंत्री और यूपी से 4 को मंत्रालय में जगह दी है. यानी 2015 और 2017 के विधानसभा चुनाव पर नरेंद्र मोदी की पैनी नजर है. जयंत सिन्हा झारखंड से हैं और बीरेंद्र सिंह की जाट वोटरों में गहरी पैठ है. एनसीआर क्षेत्र से भी तीन मंत्री कैबिनेट में शामिल हुए हैं जो दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लिए विजय रथ आगे बढ़ाने का काम कर सकते हैं.