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किसानों की कर्ज माफी योजना में भारी धांधली: कैग

किसानों की ऋण माफी के लिए केंद्र की संप्रग सरकार की 52 हजार करोड़ रूपये की बहुचर्चित योजना में भारी गड़बड़ियों का खुलासा करते हुए नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में कहा गया है कि इसमें न केवल बड़े पैमाने पर पात्र किसानों को नजरअंदाज किया गया बल्कि बड़ी संख्या में ऐसे किसानों को योजना का लाभ दिया गया जो इसके पात्र ही नहीं थे.

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किसानों की ऋण माफी के लिए केंद्र की संप्रग सरकार की 52 हजार करोड़ रूपये की बहुचर्चित योजना में भारी गड़बड़ियों का खुलासा करते हुए नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में कहा गया है कि इसमें न केवल बड़े पैमाने पर पात्र किसानों को नजरअंदाज किया गया बल्कि बड़ी संख्या में ऐसे किसानों को योजना का लाभ दिया गया जो इसके पात्र ही नहीं थे.

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वर्ष 2008 में शुरू की गयी कृषि ऋण माफी तथा ऋण राहत योजना की लेखा परीक्षा संबंधी कैग की आज संसद में पेश की गई रिपोर्ट में बताया गया है कि नौ राज्यों में लेखा परीक्षा जांच में 9334 खातों में से 1257 (13. 46 प्रतिशत) खाते वे थे जो कि योजना के तहत लाभ के पात्र थे लेकिन जिनको ऋणदात्री संस्थाओं द्वारा पात्र किसानों की सूची तैयार करते समय शामिल नहीं किया गया.

रिपोर्ट में कहा गया है कि उसने जितने खातों की जांच की उनमें 22 प्रतिशत से अधिक मामलों में चूक या गड़बड़ी हुई जिससे इस योजना के क्रियान्वयन पर गंभीर चिंता होती है.

भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने पाया कि रिकॉर्ड से छेड़-छाड़ हुई है. उसने अरबों रुपए की इस योजना के क्रियान्वयन की निगरानी में खामी के लिए वित्त मंत्रालय के तहत आने वाले वित्तीय सेवा विभाग (डीएफएस) की खिंचाई की है.

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कैग की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘कार्य निष्पादन की लेखा परीक्षा से कुल मिला कर यह बात सामने आयी कि इस योजना के क्रियान्वयन में (जांच किए गए मामलों में 22.32 फीसद में) चूक या गड़बड़ी पाई गई जिससे इस योजना के क्रियान्वयन के बारे में गंभीर चिंता पैदा हो गई है.’

रिकॉर्डों से छेड़-छाड़ का हवाला देते हुए कैग ने सुझाव दिया है कि वित्तीय सेवा विभाग को ऐसे मामलों की समीक्षा करनी चाहिए और गलती करने वाले अधिकारियों और बैंको के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए. कैग की रिपोर्ट में कहा गया कि कई मामलों में जिन किसानों ने गैर कृषि उद्देश्य से ऋण लिया था या जिनका ऋण इस योजना के तहत लाभ प्राप्त करने योग्य नहीं था उन्हें लाभ पहुंचाया गया है.

इस रिपोर्ट में 2008 में घोषित कृषि ऋण माफी और ऋण राहत योजना के कार्य निष्पादन का ऑडिट किया गया है. इसके तहत 3.69 लधु एंव सीमांत कृषकों तथा 60 लाख अन्य कृषकों को कुल 52,516 करोड़ रुपए की माफी या राहत दी गयी.

रिपोर्ट में यह भी टिप्पणी की गयी है कि ऋण माफी दिशानिर्देश का उल्लंघन करते हुए सूक्ष्म वित्त संस्थानों (एमएफआई) को भी फायदा पहुंचाया गया. इसमें कहा गया कि बैंकों ने इस योजना के तहत बिना वजह सरकार से दंड ब्याज, कानूनी प्रक्रिया से जुड़ा शुल्क, विविध शुल्क वसूल किए हैं. इस योजना के तहत बैंक को स्वयं इन शुल्क का वहन करना था. इस योजना के तहत लाभ पहुंचाने के बाद बैंकों को किसानों को प्रमाणपत्र जारी कर इसकी पावती प्राप्त करनी थी. हालांकि कैग की रिपोर्ट में कहा गया कि कई मामलों में बैंकों ने किसानों से पावती प्राप्त नहीं की.

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रिपोर्ट तैयार करने की प्रक्रिया में वित्त मंत्रालय और कैग के अधिकारियों के बीच आखिरी बैठक (एक्जिट मीटिंग) तथा लेखा परीक्षा की मसौदा रिपोर्ट जारी होने के बाद वित्तीय सेवा विभाग ने इस योजना के कार्यान्वयन से जुड़ी प्रमुख संस्थाओं आरबीआई और नाबार्ड को जनवरी में सलाह दी थी और उनसे लेखा संबंधी टिप्पणियों के मद्देनजर तुरंत सुधारात्मक कदम उठाने के लिए बैंकों को दिशानिर्देश जारी करने के लिए कहा था.

डीएफएस ने निर्देश दिया था कि अयोग्य लाभार्थी को मिला धन वापस लेने, चूक करने वाले बैंकों के खिलाफ कार्रवाई, बैंक अधिकारियों और बैंक लेखा परीक्षकों की जिम्मेदारी तय की जाए. कैग ने बैंकों के अधिकारियों और आडिटरों की जिम्मेदारी सुनिश्चित किए जाने पर बल देते हुए सुझाव दिया है कि मंत्रालय को ज्यादा राशि वाले दावों पर किये गये भुगतानों, प्रशासनिक शुल्क जैसे चार्ज और नमूने के तौर पर कुछ दावों की खुद अपनी तरफ से जांच करानी चाहिए.

रिपोर्ट में कहा गया, ‘शिकायत या निरीक्षण के बाद आगे समुचित कार्रवाई की जानी चाहिए.’ निगरानी के सदर्भ में कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि सूत्रधार की जिम्मेदारी निभा रही संस्थाएं बिना स्वतंत्र जांच के केवल बैंकों द्वारा पेश प्रमाणपत्रों और आंकड़ों पर ही निर्भर कर रही थीं. रिपोर्ट में कहा गया कि इससे हितों के टकराव का सवाल उठता है क्योंकि बैंक दोहरी भूमिका निभा रहे थे जिसमें एक भूमिका कार्यान्वयन की थी और दूसरी अपने ही काम की निगरानी की भूमिका.

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कैग ने कहा कि वित्तीय सेवा विभाग और योजना के क्रियान्वयन के लिए नोडल (सूत्रधार) की भूमिका निभा रही एजेंसियां इस बात से वाकिफ थीं कि इस योजना के कार्यान्वयन में कई खामियां है फिर भी उन्होंने समय पर इसे ठीक करने के लिए पर्याप्त पहल नहीं की. इस योजना में चार वित्त वर्ष के दौरान करीब 3.45 करोड़ किसानों के 52,000 करोड़ रुपए के ऋण माफ किए गए हैं.

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