भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) का कहना है कि वह पश्चिम बंगाल में प्रमुख सामाजिक कल्याण योजनाओं का लेखा परीक्षण नहीं कर सका है, क्योंकि राज्य सरकार ने विभिन्न योजनाओं के बारे में जानकारी मांगने के लिए बार-बार किए गये अनुरोधों का जवाब नहीं दिया. इस बात का खुलासा सीएजी के समक्ष प्रस्तुत आरटीआई आवेदन के जवाब के द्वारा हुआ है.
सीएजी का कहना है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने लिखित में यह कभी नहीं कहा कि वह सीएजी को सरकार के काम का ऑडिट करने की इजाजत नहीं देंगी, लेकिन सरकारी विभागों के असहयोग और महत्वपूर्ण डेटा उपलब्ध न होने के कारण लेखा परीक्षण नहीं किया जा सका.
आरटीआई के जवाब में कहा गया है कि सीएजी ने पश्चिम बंगाल महिला एवं बाल विकास और सामाजिक कल्याण विभाग से कन्याश्री प्रकल्प योजना पर जानकारी मांगी थी. 13 फरवरी 2017 के एक पत्र में, विभाग के संयुक्त सचिव ने गोपनीयता और सुरक्षा के कारण प्रासंगिक रिकॉर्ड प्रस्तुत करने में असमर्थता व्यक्त की.
इसके बाद 30 मार्च 2017 को सीएजी ने पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव से पुनः डेटा प्रदान करने का अनुरोध किया. परंतु सीएजी को विभाग के द्वारा इस विषय में कोई जानकारी प्रदान नहीं की गई. नतीजतन, सीएजी इस योजना का लेखा परीक्षण नहीं कर सका.
दूसरे मामले में, सीएजी का कहना है कि ममता बनर्जी सरकार राशन कार्ड के डिजिटलीकरण के बारे में प्रासंगिक दस्तावेज/जानकारी प्रदान करने में नाकाम रही. आरटीआई के जवाब में कहा गया है कि 2 सितंबर 2016 को खाद्य और आपूर्ति विभाग के सचिव को लेखा परीक्षण का अनुरोध किया गया था.
तीन महीने बाद, 13 दिसंबर, 2016 को विभाग के मुख्य सचिव को एक अनुस्मारक भेजा गया था. लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. 30 मार्च 2017 को मुख्य सचिव को तीसरा अनुस्मारक भेजा गया था, लेकिन प्रासंगिक दस्तावेज फिर भी उपलब्ध नहीं कराए गए. सीएजी ने यह भी उल्लेख किया है कि राज्य सरकार से पत्राचार और अनुस्मारक के बावजूद विभिन्न सरकारी विभागों में ई-खरीद पर राज्य सरकार द्वारा जानकारी प्रदान नहीं की गई. इस वजह से, सीएजी योजनाओं का लेखा परीक्षा नहीं कर सका.
इसके अलावा, सीएजी ने यह भी कहा कि वह राज्य में कानून और व्यवस्था की स्थिति के कारण अपने विषयगत लेखापरीक्षा करने में असमर्थ रहा है. आरटीआई के अनुसार, सीएजी ने फरवरी में ममता बनर्जी सरकार को और फिर मार्च में लिखा था, लेकिन जवाब का इंतजार है.