12 साल पहले ट्रेन लेट होने की जांच करने पर सेवा से जबरन रिटायर कर दिए गए रेलवे मजिस्ट्रेट को आखिरकार न्याय नसीब हुआ है. रेलवे के इतिहास में इस तरह की कार्रवाई का जहां अनूठा मामला रहा, वहीं पहली बार हाई कोर्ट ने अपने गलत फैसले को स्वीकार करते हुए इस मामले में खुद पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया.
अनुशासनहीनता के आरोप में रिटायर किए गए रेलवे मजिस्ट्रेट को कलकत्ता हाई कोर्ट ने नौकरी पर फिर से बहाल करने का आदेश दिया है. यह आदेश जस्टिस संजीव बनर्जी और सुर्वा घोष की बेंच ने हाई कोर्ट की सिंगल बेंच के पुराने आदेश को रद्द कर दिया. कलकत्ता हाई कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि एक तरफ कुछ लोग गलत होता देखकर ध्यान नहीं देते, ऐसे में एक मजिस्ट्रेट ने ट्रेनों के संचालन में देरी को अपने स्तर से कुछ दुरुस्त करने की कोशिश की तो उसे जबरन रिटायरमेंट दे दिया गया. कोर्ट ने सिस्टम पर तंज भी कसते हुए कहा," इस न्यायिक अफसर की सोच मूर्खतापूर्ण थी कि वह अकेले ही माफिया से लड़ लेगा. "
क्या था मामला
दरअसल रेलवे के मजिस्ट्रेट मिंटू मलिक की सियालदह में पोस्टिंग थी. उन्हें पांच मई 2007 को सियालदह जाना था. वह लेक गार्डन रेलवे स्टेशन पर खड़े होकर सियालदह लोकल ट्रेन का इंतजार कर रहे थे. ट्रेन 15 मिनट देरी से पहुंची. इस ट्रेन की पहले से शिकायतें मिलती थीं. यह भी सूचना मिली थी कि कुछ स्मगलर्स से सेटिंग के चलते लोको पायलट और गार्ड ट्रेन को रोकते हैं. इस पर मजिस्ट्रेट ने अपनी कोर्ट में लोकोपायलट(चालक) और गार्ड को तलब कर लिया.
इस घटना के बाद रेलवे यूनियन पदाधिकारियों ने मजिस्ट्रेट के खिलाफ प्रदर्शन किया. मामला गरमाने पर रेलवे प्रशासन ने जांच बैठा दी. अनुशासनात्मक कमेटी ने अधिकार क्षेत्र के बाहर जाकर कार्रवाई करने का मामला मानते रिपोर्ट पेश की. अनुशासनात्मक कमेटी की इस रिपोर्ट के आधार पर कलकत्ता हाई कोर्ट ने मजिस्ट्रेट मिंटू को जबरन रिटायर करने का आदेश दिया.
अपने खिलाफ आए फैसले को उन्होंने हाई कोर्ट की दो सदस्यीय बेंच के सामने चुनौती दी. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में हाई कोर्ट की सिंगल बेंच ने उनकी रिट खारिज कर दी तो उन्होंने डबल बेंच के सामने इसे चुनौती दी. डबल बेंच ने सिंगल बेंच के फैसले को गलत मानते हुए खुद पर यानी कलकत्ता हाई कोर्ट पर ही एक लाख रुपये का जुर्माना लगाते हुए मजिस्ट्रेट को नौकरी से बहाल करने का आदेश दिया.