पुलवामा आतंकी हमले के बाद जवाबी कार्रवाई के दबाव के बीच केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने गुरुवार को चेतावनी दी कि सिंधु और उसकी सहायक नदियों से पाकिस्तान को जाने वाले पानी में कटौती की जाएगी. हालांकि शुक्रवार को गडकरी ने सफाई देते हुए कहा कि भारत अभी अपने हिस्से वाला पानी पाकिस्तान जाने से रोक रहा है, लेकिन पाकिस्तान जाने वाली नदियों के पूरे पानी को रोकने पर भी विचार किया जा सकता है. आइए जानते हैं कि क्या है पूरा मामला.
गडकरी ने गुरुवार को ट्वीट कर कहा, ‘पीएम मोदी के नेतृत्व में हमारी सरकार ने यह निर्णय लिया है कि हम अपने साझेदारी वाले जल को पाकिस्तान जाने से रोक देंगे. हम इस जल को पूर्वी नदियों की तरफ भेज देंगे और इसे जम्मू-कश्मीर तथा पंजाब के लोगों को लाभ पहुंचाएंगे.’
Under the leadership of Hon'ble PM Sri @narendramodi ji, Our Govt. has decided to stop our share of water which used to flow to Pakistan. We will divert water from Eastern rivers and supply it to our people in Jammu and Kashmir and Punjab.
— Nitin Gadkari (@nitin_gadkari) February 21, 2019
उन्होंने कहा, ‘शाहपुर-कांडी में रावी नदी पर बांध बनाने का काम शुरू हो गया है. यूजेएच प्रोजेक्ट में हम अपने हिस्से के जल का संग्रहण करेंगे, जिसको जम्मू-कश्मीर में इस्तेमाल किया जा सकेगा. शेष जल रावी-ब्यास लिंक से बहते हुए अन्य राज्यों के लोगों तक पहुंचाया जाएगा.’
पीएम लेंगे निर्णय!
इसके बाद गडकरी ने सफाई देते हुए शुक्रवार को कहा, ‘निर्णय केवल मेरे डिपार्टमेंट का नहीं है. सरकार और पीएम के लेवल पर निर्णय होगा. मैंने अपने डिपार्टमेंट से कहा है कि पाकिस्तान को जो उनके अधिकार का पानी जा रहा है, उसे कहां-कहां रोका जा सकता है, उसका टेक्निकल डिजाइन बनाकर तैयारी करो.’
उन्होंने पाकिस्तान पर चोट करते हुए कहा, ‘अगर इसी तरह वो व्यवहार करेंगे और आतंकवाद का समर्थन करेंगे तो फिर उनके साथ मानवता का व्यवहार करने का क्या मतलब है?’
क्या अब शुरू होगा वाटर वॉर?
गडकरी ने कहा कि अभी भारत के अपने हिस्से का जो अतिरिक्त पानी बहकर पाकिस्तान चला जाता है उसे रोका जाएगा, लेकिन समूची नदियों का पानी रोकना है या नहीं इसके बारे में सरकार और पीएम निर्णय करेंगे. सिंधु और उसकी सहायक नदियां चार देशों से गुजरती हैं और 21 करोड़ से ज्यादा जनसंख्या की जल जरूरतों की पूर्ति करती हैं.
क्या है सिंधु जल समझौता
सिंधु जल समझौते के तहत सिंधु और उसकी सहायक नदियों के जल के ज्यादातर हिस्से पर अब भी पाकिस्तान का नियंत्रण है. अभी तक वास्तव में जल के मामले में भारत ने कुछ नहीं किया है और इस तरह के बयानों का इस्तेमाल पाकिस्तान को सिर्फ चेतावनी देने के लिए किया जाता रहा है.
सिंधु बेसिन की छह नदियां (सिंधु, चिनाब, किशनगंगा, रावी, सतलज, ब्यास) वास्तव में तिब्बत से निकलकर आती हैं और हिमालय की तलहटियों से होती हुई पाकिस्तानी शहर कराची के दक्षिाण में अरब सागर में जाकर मिलती हैं.
आजादी के तुरंत बाद 4 मई, 1948 को एक समझौता हुआ था, जिसमें यह कहा गया था कि एक सालाना भुगतान के बदले भारत पर्याप्त जल पाकिस्तान को देगा. इस मामले का स्थायी समाधान तलाशने के लिए करीब नौ साल तक प्रयास के बाद 1960 में विश्व बैंक के हस्तक्षेप से दोनों देशों के बीच समझौता हुआ. इस समझौते पर 19 सितंबर, 1960 को भारत के तत्कालीन पीएम जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान ने दस्तखत किए थे.
इस समझौते के तहत सिंधु बेसिन से बहकर आने वाली सभी छह नदियों के जल वितरण के लिए दोनों देशों में समझौता किया गया. इन नदियों का जल भारत से पाकिस्तान में जाता है, इसलिए भारत का इस मामले में पलड़ा भारी है कि वह नदियों का जल रोक दे. इसको देखते हुए ही इन सभी नदियों के जल के वितरण के लिए सिंधु जल समझौता किया गया.
इसके तहत तीन नदियों (झेलम, चिनाब, सिंधु) के जल के ज्यादातर हिस्से का अधिकार पाकिस्तान को और भारत को पूर्वी हिस्से वाली तीन नदियों रावी, ब्यास और सतलज के ज्यादा जल का अधिकार दिया गया. पूर्वी तीन नदियों के जल का अबाध तरीके से पूरे इस्तेमाल का अधिकार भारत के पास रहेगा. इसी तरह, पश्चिमी तीन नदियों (झेलम, चिनाब, सिंधु) के जल के अबाध तरीके से पूरे इस्तेमाल का अधिकार पाकिस्तान के पास रहेगा.
समझौते में कहा गया है कि कुछ खास मामलों को छोड़कर भारत पश्चिम की तीन नदियों में जल संग्रहण यानी डैम बनाने या सिंचाई सिस्टम के निर्माण का काम नहीं कर सकता. इस बारे में कोई तकनीकी विवरण नहीं है कि वह खास परिस्थिंतियां क्या होंगी और यही दोनों देशों के बीच विवाद की जड़ है. भारत का कहना है कि कुछ खास मामलों में निर्माण की इजाजत है और पाकिस्तान अपनी दुश्मनी की वजह से जान बूझ कर भारत को रोकने की कोशिश कर रहा है.
सिंधु जल समझौते के तहत भारत को सिंधु बेसिन की नदियों का 20 फीसदी हिस्सा यानी करीब 33 मिलियन एकड़ फुट (MAF) जल मिलता है, जबकि पाकिस्तान को 80 फीसदी यानी 125 एमएएफ जल मिलता है. भारत सिंचाई कार्य के लिए अपने पश्चिमी नदियों के 7.01 लाख एकड़ जल का इस्तेमाल कर सकता है. इसके अलावा भारत 1.25 एमएफ जल का संग्रहण बांध आदि के द्वारा और बाढ़ के दौरान 0.75 एमएएफ का अतिरिक्त स्टोरेज कर सकता है.
समझौते के अनुसार, पूर्वी तीन नदियों ब्यास, रावी और सतलुज के मध्यम जल प्रवाह का इस्तेमाल करने की इजाजत भारत को दी गई है, जबकि पश्चिमी नदियों सिंधु, चिनाब और झेलम के 80 एमएएफ के इस्तेमाल की इजाजत पाकिस्तान को दी गई है. भारत को सिंचाई, बिजली उत्पादन , घरेलू और औद्योगिक आदि जरूरतों के लिए पश्चिमी तीन नदियों के सीमित इस्तेमाल की इजाजत दी गई है.
भारत सिंधु जल समझौते के तहत मिले अपने हिस्से का 93 से 94 फीसदी का इस्तेमाल कर लेता है और बाकी छोड़ देना पड़ता है, जो पाकिस्तान को मिल जाता है. इसी 6 से 7 फीसदी जल को रोकने की बात केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी कर रहे हैं.
समझौते के मुताबिक भारत और पाकिस्तान के जल आयुक्तों को हर दो साल में एक बैठक करनी होती है और अपने-अपने प्रोजेक्ट साइट और नदियों पर होने वाले अन्य महत्वपूर्ण कार्यों पर तकनीकी विशेषज्ञों के दौरे का इंतजाम करना पड़ता है. दोनों देश एक-दूसरे को जल प्रवाह का विवरण और जल की मात्रा के बारे में विवरण साझा करना होता है.
तोड़ा नहीं जा सकता समझौता!
सिंधु समझौता विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुआ एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है, इसलिए इसे एकतरफा तरीके से तोड़ा नहीं जा सकता. इसे तोड़ने या बदलने के लिए दोनों देशों को मिलकर बात करनी होगी.
भारत बना रहा ये बांध
भारत सरकार ने सिंधु की 900 किमी लंबी सहायक नदी चिनाब पर कुल सात बांध बनाने की मंजूरी दी है. भारत सरकार किशनगंगा नदी पर किशनगंगा और चिनाब नदी पर रताल पनबिजली संयंत्र का निर्माण कर रही है. चिनाब पर बनने वाले सलाल पनबिजली प्रोजेक्ट, तुलबुल प्रोजेक्ट, किशनगंगा और रताल प्रोजेक्ट पर पाकिस्तान सवाल उठाता रहा है. किशनगंगा परियोजना साल 2007 में शुरू की गई थी और इसके निर्माण पर करीब 86.4 करोड़ डॉलर की लागत आने वाली है. चिनाब नदी पर बने 450 मेगावॉट के बगलीहार डैम का उद्घाटन साल 2008 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने किया था. किशनगंगा-झेलम लिंक में में 330 मेगावाट के एक हाईड्रो इलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट (KHEP) का निर्माण किया जा रहा है, जिसे तुलबुल परियोजना कहते हैं. इसके द्वारा एक नहर बनाकर किशनगंगा का पानी वुलर झील यानी झेलम नदी की ओर मोड़ दिया जाएगा.
पाकिस्तान को समस्या
वुलर झील एशिया में ताजे पानी की सबसे बड़ी झील है. यह कश्मीर के बांदीपोरा जिले में है. पाकिस्तान को डर है कि भारतीय पनबिजली परियोजना से जो पानी डायवर्ट होने से उसके परियोजना के लिए पानी मिलना मुश्किल हो जाएगा. इसे लेकर पाकिस्तान साल 2010 में अंतरराष्ट्रीय आर्बिट्रेशन कोर्ट चला गया था, जिसके बाद साल 2013 में कोर्ट ने यह आदेश दिया कि भारत इस प्रोजेक्ट का निर्माण कर सकता है, लेकिन शर्त बस यह रखी गई कि पाकिस्तान को 9 क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड के न्यूनतम जल आपूर्ति के नियम का पालन करते रहना होगा. पाकिस्तान भी नीलम नदी पर 980 मेगावाट का नीलम झेलम एचईपी (NJHEP) बना रहा है, जिसके द्वारा इसके पानी को डायवर्ट कर झेलम में भेजा जाएगा.
सिंधु आयोग की बैठक पर विराम
850 मेगावाट की रताल पनबिजली परियोजना की शुरुआत जून 2013 में चिनाब नदी पर हुई थी. सितंबर 2013 में सिंधु आयोग की बैठक में पाकिस्तान ने इसके निर्माण पर भी आपत्ति शुरू की. सितंबर 2016 में उरी हमले के बाद भारत ने यह तय किया कि जब तक पाकिस्तान आतंकी गतिविधियों की फंडिंग बंद नहीं करता, सिंधु आयोग की स्थायी बैठक नहीं होगी. इसकी वजह से इस विवाद का अभी तक समाधान नहीं हो पाया है.