सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस एन संतोष हेगड़े ने कहा है कि तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे जयललिता और बॉलीवुड सुपरस्टार सलमान खान से जुड़े घटनाक्रमों से न्यायपालिका की छवि खराब हुई. इनमें अदालतों ने उन्हें जमानत दे दी और उनके मामलों की ‘बिना बारी के’ सुनवाई की.
अमीर और असरदार शख्स को जल्दी राहत
भारत के पूर्व सोलिसिटर जनरल ने कहा कि दो न्यायिक फैसलों से गलत संदेश गया कि ‘धनी और प्रभावशाली’ तुरंत जमानत हासिल कर सकते हैं. कर्नाटक के पूर्व लोकायुक्त ने कहा कि वह इस लोक धारणा से पूरी तरह से सहमत हैं कि कि धनी और प्रभावशाली कानून के चंगुल से बच जाते हैं.
जयलिलता को भी जल्दी में मिली जमानत
हेगड़े ने कहा कि मैं विभिन्न मंचों से कहता रहा हूं कि दो उदाहरणों से न्यायपालिका की छवि खराब हुई. पहला जयललिता का आय से अधिक संपत्ति का मामला है. इसमें 14 साल के बाद उनकी दोष साबित हुआ और कर्नाटक हाई कोर्ट ने अपील स्वीकार कर ली, लेकिन जमानत नहीं दी. वे लोग सुप्रीम कोर्ट गए.
सैकड़ों लोगों को सुनवाई के लिए सालों का इंतजार
उन्हें न सिर्फ कुछ दिनों के अंदर ही जमानत दे दी गई. मैं जमानत दिए जाने का विरोध नहीं कर रहा हूं, बल्कि हाई कोर्ट को निर्देश था कि तीन महीनों के अंदर मामले का निपटारा किया जाए. उन्होंने कहा कि इसके उलट जेल में सैकड़ों लोग पड़े हैं, जिन्हें जमानत नहीं मिली है. उनकी जमानत याचिका पर भी साढ़े साल बाद सुनवाई होती है.
दोनों मामलों में रिटायर होने वाले थे जज
उन्होंने कहा कि इसी प्रकार सलमान खान का मामला है. उनकी भी 14 साल बाद पहली अदालत में दोष साबित हुआ और हाई कोर्ट ने एक घंटे के अंदर जमानत दे दी. ठीक है. जमानत देने में कोई गलती नहीं है और न्यायाधीश ने दो महीनों में सुनवाई की. दोनों जयललिता और सलमान के मामलों में रिटायर होने वाले न्यायाधीश हैं.
बेहद जरूरी मामलों में फौरन सुनवाई से दिक्कत नहीं
हेगड़े ने कहा कि अदालत को ऐसे मामलों में त्वरित सुनवाई करने की जरूरत है. जैसे अगर किसी व्यक्ति को कल फांसी की सजा दी जानी है या अगले दिन परीक्षा है और छात्र को प्रवेश पत्र नहीं दिया गया हो. उन्होंने कहा कि लेकिन इन मामलों में क्या बेहद जरूरत थी. सिर्फ इसलिए कि धनी और प्रभावशाली होने के कारण उन्हें जमानत मिलती है.
ऐसे मामलों से गलत संदेश जाता है
वे चाहते हैं कि उनके मामले की सुनवाई बिना बारी की हो. मैं इसका पूरी तरह से विरोध करता हूं और इन दोनों उदाहरणों की निंदा करता हूं. उन्होंने कहा कि लोगों ने सवाल करने शुरू कर दिए हैं. हमें बताइए कि इन मामलों में क्या इतना महत्वपूर्ण था कि आपने बिना बारी के इसकी सुनवाई की. निश्चित रूप से इससे गलत संदेश जाएगा.