समाजवादी पार्टी के पूर्व महासचिव अमर सिंह, लालकृष्ण आडवाणी के पूर्व सहायक सुधीन्द्र कुलकर्णी, बीजेपी के दो सांसदों और दो अन्य को दिल्ली की एक अदालत ने साल 2008 के 'वोट के बदले नोट' मामले में आरोपमुक्त कर दिया. हालांकि कोर्ट ने अमर सिंह के पूर्व सहायक संजीव सक्सेना के खिलाफ आरोप तैयार करने का आदेश दिया है.
विशेष न्यायाधीश नरोत्तम कौशल ने अमर सिंह और कुलकर्णी, बीजेपी सांसदों- अशोक अर्गल और फगन सिंह कुलस्ते, पूर्व बीजेपी सांसद महाबीर सिंह भगोरा और बीजेपी कार्यकर्ता सुहेल हिन्दुस्तानी को वोट के बदले नोट मामले में आरोप मुक्त कर दिया. इन सभी पर भ्रष्टाचार निरोधक कानून की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था.
अदालत ने हालांकि अमर सिंह के पूर्व सहायक संजीव सक्सेना के खिलाफ आरोप तैयार करने का कहा. संजीव पर कथित रूप से भ्रष्टाचार को बढा़वा देने का अपराध करने का आरोप है.
दिल्ली पुलिस ने अगस्त 2011 में दायर अपने पहले आरोप पत्र में अमर सिंह और कुलकर्णी पर लोकसभा में 22 जुलाई, 2008 को पेश किये जाने वाले विश्वास मत से पूर्व कुछ सांसदों को रिश्वत देने के लिये ‘वोट के बदले नोट’ कांड की साजिश रचने का आरोप लगाया था.
अमर सिंह के बारे में अदालत ने कहा कि उनके खिलाफ परिस्थितिजन्य सबूत संदेह से आगे नहीं जाते हैं. कुलकर्णी की भूमिका के बारे में अदालत ने कहा कि उनकी भूमिका केवल अर्गल, कुलस्ते और भगोड़ा को टीवी चैनलों के सामने लाने की थी, ताकि दल-बदल से जुड़े सबूत की रिकॉर्डिंग की जा सके.
अदालत ने यह भी कहा कि आगे के घटनाक्रम में कुलकर्णी की कोई भूमिका नहीं थी और गलत रास्तों से अवैध काम करने के विचार से कोई बैठक नहीं की गई और इस संबंध में कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं हैं.
अदालत ने यह भी कहा टीवी चैनल के दल से मुलाकात करने का मकसद केवल संसद में दल-बदल का खुलासा करना था.
बीजेपी नेता अर्गल, कुलस्ते और भगोड़ा के बारे में अदालत ने कहा कि टीवी चैनल को आमंत्रित करने और कैमरा के सामने हाजिर होने को यह नहीं कहा जा सकता कि वे अवैध गतिविधियों में शामिल थे.
अदालत ने अभियोजन पक्ष की उन दलीलों को भी खारिज कर दिया कि संसद में दल-बदल का पर्दाफाश करने का काम केवल ड्रामा था.
न्यायाधीश ने कहा कि सुहेल हिन्दुस्तानी की ओर से किसी तरह के अवैध कार्यों के किए जाने को दिखाने करने के लिए साक्ष्य नहीं है.
आरोप तय किये जाने के समय अमर सिंह ने अपने आप को इस मामले से मुक्त किए जाने की मांग करते हुए कहा था कि ऐसा कोई सबूत नहीं है, जिससे यह नजर आता हो कि साल 2008 में लोकसभा में विश्वास मत के दौरान पैसे लेकर पाला बदलकर मतदान करने के लिए बीजेपी सांसदों को प्रेरित किया गया था. इस बारे में घोटाले की जांच करने वाली संसदीय समिति की सिफारिश पर साल 2009 में मामला दर्ज किया गया था.
भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम और भारतीय दंड संहिता के तहत आपराधिक साजिश रचने से जुड़े विभिन्न प्रावधानों के तहत सात लोगों पर मुकदमा चलाया गया था.
पुलिस ने पूर्व में आरोपियों के उन दावों को खारिज कर दिया था कि यह स्टिंग या भंडाफोड़ करने वाला अभियान था और कहा था कि इस दलील को संसदीय जांच समिति ने भी स्वीकार नहीं किया था.