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रातोरात हटाए गए थे CBI डायरेक्टर आलोक वर्मा, 76 दिन बाद हुए बहाल

सीबीआई बनाम सीबीआई मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को झटका दिया है. आलोक वर्मा के छुट्टी पर जाने के आदेश को निरस्त करते हुए कोर्ट ने डायरेक्टर पद पर उनकी बहाली के आदेश दिए हैं. 

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सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बहाल हुए आलोक वर्मा
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बहाल हुए आलोक वर्मा

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केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) के निदेशक पद पर आलोक वर्मा को फिर से बहाल कर दिया गया है. देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) में काफी समय से चल रहे विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को तगड़ा झटका दिया है. कोर्ट ने सीवीसी के फैसले को पलटते हुए आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजने का फैसला रद्द कर दिया. इसके साथ ही अब 76 दिन बाद आलोक वर्मा फिर सीबीआई के चीफ बन गए हैं.

गौरतलब है कि पिछले साल 23 अक्तूबर को रातोरात रैपिड फायर एक्शन के तौर पर CVC और DoPT ने तीन आदेश जारी किए. आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना को छुट्टी पर भेजने के साथ सीबीआई के संयुक्त निदेशक एम. नागेश्वर राव को अंतरिम निदेशक नियुक्त किया गया था. छुट्टी पर भेजे गए सीबीआई निदेशक आलोक कुमार वर्मा ने केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी.

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सीबीआई के निदेशक आलोक कुमार वर्मा और ब्यूरो के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के बीच छिड़ी जंग सार्वजनिक होने के बाद केंद्र सरकार ने दोनों अधिकारियों को उनके अधिकारों से वंचित कर अवकाश पर भेजने का निर्णय किया था. दोनों अधिकारियों ने एक दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे.

आलोक वर्मा ने अपनी याचिका में कहा CVC और DoPT ने तीन आदेश मनमाने और गैरकानूनी हैं, इन्हें रद्द किया जाना चाहिए. याचिका में आलोक वर्मा ने था, 'सीवीसी, केंद्र ने मुझे सीबीआई निदेशक की भूमिका से हटाने के लिए रातोरात निर्णय' लिया. यह फैसला DSPE अधिनियम की धारा 4 बी के विपरीत है जो एजेंसी की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए सीबीआई प्रमुख को दो साल की सुरक्षित अवधि प्रदान करता है.

वर्मा ने कहा है कि अधिनियम के तहत PM, LoP और CJI के उच्चस्तरीय पैनल द्वारा सीबीआई निदेशक की नियुक्ति जरूरी है तो उसी तरह सीबीआई निदेशक को स्थानांतरित करने के लिए इस समिति की सहमति आवश्यक है. इस मामले में कानून से बाहर फैसला लिया गया है.

सुनवाई के दौरान सीजेआई के सवालों पर जवाब देते हुए सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था, 'सीवीसी ने यह निष्कर्ष निकाला था कि एक असाधारण परिस्थिति है और असाधारण परिस्थितियों से निपटने के लिए कभी-कभी असाधारण उपाय भी करने पड़ते हैं. सीवीसी का आदेश निष्पक्ष था, दो शीर्ष अधिकारी आपस में लड़ रहे थे और अहम मामलों को छोड़ एक दूसरे के खिलाफ मामलों की जांच कर रहे थे.' उन्होंने कहा था कि सीबीआई में जैसे हालात थे, उसमें सीवीसी मूकदर्शक बन कर नहीं बैठा रह सकता था. ऐसा करना अपने दायित्व को नजरअंदाज करना होता.

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वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि चूंकि निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना ने एक-दूसरे पर आरोप लगाए हैं. इसलिए निष्पक्ष जांच के लिए केंद्रीय सतर्कता आयोग की सलाह पर दोनों को छुट्टी पर भेजा गया है.

हालांकि जानकार यह कह रहे थे कि दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान (डीएसपीई) अधिनियम, 1946 की धारा 4अ(1) के तहत सीबीआई निदेशक को उस चयन समिति की सहमति के बिना नहीं हटाया जा सकता है, जिसने निदेशक की नियुक्ति की सिफारिश की थी.

इस चयन समिति में प्रधानमंत्री, संसद में विपक्ष के नेता और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश होते हैं. कानून के मुताबिक सीबीआई निदेशक का तबादला भी बिना चयन समिति की सहमति के नहीं किया जा सकता है.

सीबीआई ने मांस निर्यातक मोइन क़ुरैशी के खि‍लाफ़ जांच में रिश्वत लेने के आरोप में राकेश अस्थाना पर एफ़आईआर दर्ज की थी तो दूसरी तरफ अस्थाना ने भी आलोक वर्मा पर रिश्वत लेने के आरोप लगाए. इसके पहले आलोक वर्मा ने सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना से सारी ज़िम्मेदारियां वापस ले ली थीं.

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