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CBI चीफ लालू यादव के खिलाफ चारा घोटाले के आरोप हटाए जाने के पक्ष में

चौंकाने वाले कदम के तहत, केंद्रीय जांच ब्यूरो के निदेशक रंजीत सिन्हा ने कुख्यात चारा घोटाले के संबंध में तीन मामलों में आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव के खिलाफ आरोपों को हटाए जाने की वकालत की है. इनमें से एक मामले में राजद नेता को दोषी ठहराया जा चुका है.

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सीबीआई डायरेक्टर रंजीत सिन्हा
सीबीआई डायरेक्टर रंजीत सिन्हा

चौंकाने वाले कदम के तहत, केंद्रीय जांच ब्यूरो के निदेशक रंजीत सिन्हा ने कुख्यात चारा घोटाले के संबंध में तीन मामलों में आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव के खिलाफ आरोपों को हटाए जाने की वकालत की है. इनमें से एक मामले में राजद नेता को दोषी ठहराया जा चुका है.

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लालू यादव के खिलाफ आरोपों को हटाए जाने की सिफारिश करते हुए सिन्हा ने न केवल अभियोजन निदेशक (डीओपी) ओ पी वर्मा से बल्कि पटना जोन के प्रमुख समेत पटना शाखा के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों से भी असहमति जतायी.

अब मामले को सिन्हा की ‘विशेष’ अपील पर सोलिसिटर जनरल को भेज दिया गया है. हालांकि सीबीआई निदेशक और डीओपी के बीच वैचारिक मतभेद होने के मामले में उचित प्राधिकार अटार्नी जनरल हैं.

उन्होंने कहा, ‘मामले में अधिकतर सबूत और अधिकतर आरोपी व्यक्ति एक समान हैं जिसमें आरोपों की बारीकियां भी शामिल हैं.’ सिन्हा ने कहा, ‘मेरा यह विचार है कि किसी व्यक्ति पर उसी अपराध के लिए किसी अन्य मामले में फिर से मुकदमा नहीं चलाया जा सकता जिसके लिए उसे पहले ही दोषी ठहराया जा चुका हो जबकि सबूत एक समान हैं.’ उन्होंने 26 फरवरी को कहा था, ‘मैं शाखा, एचओजेड और डीओपी से असहमत हूं. चूंकि मैं डीओपी से सहमत नहीं हूं, इसलिए तीनों आरसी में, याचिकाओं में उठाए गए कानूनी मुद्दों पर राय जानने के लिए उन्हें सोलिसिटर जनरल को भेजा जाए.’

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बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद को चारा घोटाले से संबंधित मामलों में से एक मामले में पहले ही दोषी ठहराया जा चुका है.

सिन्हा ने जिन मामलों में लालू प्रसाद यादव के खिलाफ आरोपों को हटाने की सिफारिश की है वे दिसंबर 1995 से जनवरी 1996 की अवधि के दौरान दुमका ट्रेजरी से कथित रूप से गैर कानूनी तरीके से 3.13 करोड़ रुपये की राशि निकाले जाने, वर्ष 1990 से 94 के बीच देवघर ट्रेजरी से 84.53 लाख रुपये निकाले जाने और दिसंबर 1992 से 93 के बीच चाईंबासा ट्रेजरी से 33.13 करोड़ रुपये कथित रूप से गैर कानूनी तरीके से निकाले जाने से संबंधित हैं. सिन्हा ने कहा कि सीबीआई शाखा के अधिकारियों और जेडी के विचार झारखंड में वर्ष 2014 में आपराधिक अपील एसजे नंबर 50 (जगदीश शर्मा बनाम झारखंड राज्य) में की गयी टिप्पणियों से मेल नहीं खाते जहां अदालत कहती है, ‘ऐसा प्रतीत होता है कि आवेदक इस मामले में भी उन्हीं आरोपों को लेकर आगे बढ़े हैं और आरोपों की बारीकियां भी समान प्रतीत होती हैं.’

इस मामले की सीबीआई ने विभिन्न स्तरों पर पड़ताल की थी जिसमें अभियोजन निदेशक ओ पी वर्मा की राय थी कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 300(1) और संविधान का अनुच्छेद 20(2) मौजूदा मामले पर लागू नहीं होते हैं.

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धारा 300(1) कहती है कि एक व्यक्ति जिसके खिलाफ सक्षम न्यायिक क्षेत्राधिकार अदालत द्वारा किसी अपराध के लिए मामले की सुनवाई एक बार की जा चुकी है और ऐसे अपराध के लिए उसे दोषी या बरी किया जा चुका है, ऐसे में उस दोष सिद्धि या बरी किए जाने के फैसले के लागू रहते, उस पर उसी अपराध के लिए और न ही किसी अन्य अपराध के लिए समान तथ्यों के आधार पर फिर से मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है.

वर्मा ने यादव की संलिप्तता वाले एक मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया जो कहता है, ‘अलग अलग और विशेष अधिनियमों के संदर्भ में, प्रत्येक मामले में भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत मुख्य अपराध अलग अलग समय पर विभिन्न कोषागार से धन निकाले जाने का है. इसमें साजिश केवल एक संबद्ध अपराध है, यह नहीं कहा जा सकता कि कथित प्रत्यक्ष गतिविधि समान लेनदेन की प्रक्रिया में है.’

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