आय के ज्ञात स्रोत से अधिक संपत्ति के मामले में राजद प्रमुख लालू प्रसाद और उनकी पत्नी राबड़ी देवी को बरी किए जाने को चुनौती देने की बिहार की नीतीश कुमार सरकार के फैसले का सीबीआई ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय में विरोध किया और उसने राजद प्रमुख लालू प्रसाद का पक्ष लिया.
गौरतलब है कि लालू प्रसाद ने संप्रग सरकार से अपने रास्ते अलग कर लिए हैं. प्रसाद और उनकी पत्नी ने कहा है कि उन्हें बरी किए जाने के फैसले के खिलाफ बिहार सरकार को अपील करने का अधिकार नहीं है. इसका सीबीआई ने भी समर्थन किया. उसने कहा कि अपील दायर करने का अधिकार जांच एजेंसी के पास है जिसने मामले की जांच की और जिसने इस मामले में अभियोग चलाया.
सीबीआई की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ए मरियापुथम ने प्रधान न्यायाधीश के जी बालकृष्णन की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष कहा, ‘इस मामले की जांच और अभियोग चलाने का काम सीबीआई ने किया और बरी किए जाने के फैसले के खिलाफ अपील करने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है, न कि राज्य सरकार के पास.’ बिहार सरकार के जवाब पर पीठ ने तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त की. उसने जानना चाहा कि किसी मामले में आरोपी को बरी किए जाने के खिलाफ अपील दायर करने के मामले में राज्य सरकार कैसे परिदृश्य में आ गई जबकि मामले की जांच सीबीआई ने की.
पीठ ने राजद प्रमुख और उनकी पत्नी की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. इस याचिका में लालू-राबड़ी ने पटना उच्च न्यायालय के उस फैसले को चुनौती दी गई है जिसमें उन्हें बरी किए जाने के खिलाफ राज्य सरकार की अपील को विचारार्थ स्वीकार कर लिया गया था. {mospagebreak}
लालू-राबड़ी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राम जेठमलानी ने आशंका जताई कि चूंकि प्रसाद ने संप्रग सरकार से किनारा कर लिया है इसलिए सीबीआई अपना रुख बदल सकती है. उन्होंने पीठ के समक्ष कहा, ‘अब लालू प्रसाद सत्ता से हट गए हैं, मुझे उम्मीद है कि केंद्र ने अपनी राय नहीं बदली है.’ जब लालू और राबड़ी ने उच्च न्यायालय में अपील दायर करने के नीतीश सरकार के फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी तो सीबीआई ने उनका पक्ष लिया था.
सीबीआई ने आरोपी को बरी किए जाने के आदेश के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 378 के तहत अपील दायर करने के राज्य सरकार के अधिकार को लेकर सवाल उठाया जबकि मामले की जांच उसने की. हालांकि, बिहार सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एल नागेश्वर राव ने दावा किया कि मामले की जांच और अभियोजन का काम सीबीआई के करने के बावजूद उसे बरी करने के फैसले के खिलाफ अपील दायर करने का अधिकार है क्योंकि अपराध बिहार में किया गया था.
राव ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 378(2) के तहत वैसे मामलों में अपील के सवाल पर फैसला करने के लिए केंद्र को अतिरिक्त शक्तियां दी गई हैं जिसकी सीबीआई ने जांच की है. उन्होंने लालू-राबड़ी को बरी किए जाने के फैसले के खिलाफ बिहार सरकार की अपील को विचारार्थ स्वीकार करने के उच्च न्यायालय के फैसले का समर्थन करते हुए कहा, ‘धारा 378 (2) के तहत केंद्र को अतिरिक्त शक्ति दी गई है और इसका मतलब यह नहीं है कि राज्य सरकार की अपील की आम शक्ति छीन ली गई है.’
इसपर न्यायालय ने कहा, ‘आपका (राज्य सरकार का) अभियोजक इस मामले का प्रभारी नहीं है. क्या कोई राज्य सरकार ऐसे मामलों में अपील कर सकती है.’ इसपर राव ने कहा कि यह ऐसा मामला है जिसे राज्य के बाहर स्थानांतरित नहीं किया गया है और उन्होंने दावा किया कि कैसे राज्य सरकार प्रासंगिकता खो सकती है या मामले में अभियोजन पर नियंत्रण खो सकती है.