केंद्रीय जांच ब्यूरो की ओर से रेलवे बोर्ड के एक शीर्ष सदस्य के खिलाफ रिश्वत के आरोपों की जांच में प्रथम दृष्टया उनके खिलाफ कोई सबूत जुटाने में विफल रहने के बाद प्रारंभिक जांच को बंद किए जाने की संभावना है. नौ महीने तक चली इस मामले की जांच ने सदस्य के बोर्ड अध्यक्ष बनने की संभावनाओं में रोड़ा अटका दिया था.
पिछले माह जून में सीबीआई ने कथित रूप से रेलवे की एक जमीन के विकास का ठेका दिए जाने में एक निजी बिल्डर का पक्ष लिए जाने को लेकर रेलवे बोर्ड के सदस्य (इलेक्ट्रिकल) कुलभूषण के खिलाफ प्रारंभिक जांच शुरू
की थी. उन्होंने बताया कि भूषण ने कथित रूप से नियमों में छूट दी, जिससे बिल्डर को करोड़ों रुपये का ठेका हासिल करने में मदद मिली.
सूत्रों ने बताया कि नौ महीने की जांच के बावजूद सीबीआई ऐसा कोई ठोस सबूत जुटाने में विफल रही जो निजी
बिल्डर को ठेका देने में पक्षपात किए जाने में कुलभूषण की भूमिका को साबित कर पाता. एक वरिष्ठ सीबीआई अधिकारी ने बताया कि कुलभूषण के खिलाफ चूंकि कोई सबूत नहीं है इसलिए एजेंसी ने उनके खिलाफ प्रारंभिक जांच को बंद करने का फैसला किया है.
उन्होंने कहा कि सीबीआई अन्य लोगों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की सिफारिश करेगी. यह जांच कूलभूषण की तरक्की की राह में रोड़ा बन गई थी जो सबसे वरिष्ठ सदस्य होने के नाते रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष पद की दौड़ में शामिल थे. सूत्रों ने बताया कि दस करोड़ रुपये के नियुक्ति के बदले नकदी घोटाले की जांच के दौरान बिल्डर के पक्षपात का पहलू सामने आया था.
इस घोटाले में कथित रूप से तत्कालीन रेल मंत्री पवन कुमार बंसल का भांजा विजय सिंगला और तत्कालीन सदस्य (स्टाफ) महेश कुमार शामिल थे. कुमार कथित रूप से चाहते थे कि कुलभूषण को रेलवे बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त किए जाने के बाद रिक्त होने वाला उनका पद उन्हें दे दिया जाए. सीबीआई ने सिंगला के खिलाफ दर्ज मामले की प्राथमिकी में यह बात कही है.
सूत्रों ने बताया कि आरोपियों से पूछताछ और भूषण से संबंधित फाइलों की छानबीन करने पर एजेंसी को इस पक्षपात के बारे में पता चला जो अब बेबुनियाद पाया गया है.