कोर्ट के कामकाज के लिए अगर हिन्दी को आधिकारिक भाषा करार दिया जाए तो तमाम अदालती कार्यवाही प्रभावित होगी. केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि किसी भी भाषा को जजों पर नहीं थोपा जा सकता है.
हिंदी को हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के कामकाज की ऑफिशल लैंग्वेज बनाने को लेकर दायर एक याचिका पर केंद्र ने अपना पक्ष रखा. केंद्र सरकार ने एफिडेविट में कहा कि हर एक नागरिक और हर जज को कोर्ट के दिए गए फैसले जानने-समझने का अधिकार है और यह स्वीकार करना होगा कि अंग्रेजी ही अभी फिलहाल ऐसी भाषा है जिससे यह काम हो सकता है.
18वें लॉ कमीशन ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि शीर्ष अदालत में हिन्दी को अनिवार्य करना संभव नहीं है. कमीशन की सिफारिशों को मानते हुए केंद्र ने संविधान में संशोधन कर हिन्दी को कोर्ट के कामकाज के लिए ऑफिशियल लैंग्वेज बनाने से इंकार किया है.
केंद्र ने हायर जुडिशरी में हिंदी को ऑफिशल लैंग्वेज बनाने संबंधी पीआईएल पर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को अपना पक्ष रखा.