गैर-सरकारी संगठनों (NGO) को मिलने वाले चंदे के ऑडिट को लेकर केंद्र सरकार ने कुछ गाइडलाइंस बनाई है. केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में इन गाइडलाइंस को दाखिल कर दिया है. इसका मकसद गैर-सरकारी संगठनों में वित्तीय पारदर्शिता लाना है. सुप्रीम कोर्ट ने मामले में एमिकस क्यूरी यानी न्यायमित्र राकेश द्विवेदी को गाइडलाइंस की समीक्षा कर कोर्ट में जवाब दाखिल करने के लिए कहा है. अब मामले की अगली सुनवाई दो हफ्ते बाद होगी.
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को निर्देश दिया था कि वह देश भर के करीब 32 लाख गैर-सरकारी संगठनों के वित्तीय ऑडिट करे. सुप्रीम कोर्ट वकील एमएल शर्मा की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा है. इसमें शर्मा ने अन्ना हज़ारे की गैर-सरकारी संस्था के वित्तीय ऑडिट की मांग की है. याचिका के मुताबिक हज़ारे के एनजीओ में वित्तीय गड़बड़ियां हुई हैं और इसकी जांच कर उनके खिलाफ कार्यवाई की जानी चाहिए.
याचिका में शर्मा ने कहा कि गैर-सरकारी संगठनों को मिलने वाले धन का कोई लेखा-जोखा नहीं होता है. भारी मात्रा में कालाधन इन संस्थाओं को मिलता है. बुधवार को कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर ज़रूरत होगी, तो वह आदेश देगा कि हज़ारे के एनजीओ में संदिग्ध वित्तीय गड़बड़ियों की जांच की जाए.
एनजीओ नहीं तैयार करती हैं वित्तीय लेखा-जोखा
मामले में सीबीआई ने पूर्व में अपने जवाब में कहा था कि राज्यों में काम कर रहीं करीब 30 लाख एनजीओ में से सिर्फ 2 लाख 90 हज़ार 787 एनजीओ ही अपना सालाना वित्तीय लेखा-जोखा तैयार करती हैं, जबकि केंद्र शासित
प्रदेशों में काम कर रही संस्थाओं में से सिर्फ 50 अपना वित्तीय लेखा-जोखा तैयार करती हैं. मामले में कोर्ट ने सरकार को भी फटकार लगाई थी. अदालत ने कहा था कि सरकार इन संस्थाओं को अरबों रुपये देती है और
सरकार के पास पूरा लेखा-जोखा नहीं मौजूद है. आखिर इस तरह से सिस्टम कैसे चल सकता है?