पिछले दिनों तमिलनाडु की सीएम जयललिता का निधन हुआ तो ऐसा लगा कि अन्नाद्रमुक के भीतर सत्ता के लिए जबरदस्त संघर्ष होगा. लेकिन शशिकला नटराजन बेहद आसानी से पार्टी सुप्रीमो बनने की राह पर हैं. अपोलो अस्पताल की ओर से 'अम्मा' के निधन की पुष्टि होने के दो घंटे के भीतर ही पनीरसेल्वम ने सीएम की कुर्सी संभाल ली. अब बारी जयललिता की बेहद करीबी रहीं शशिकला की है, जो अन्नाद्रमुक की महासचिव यानी अम्मा की उत्तराधिकारी बनने की तैयारी में हैं.
जयललिता जब बीमार होने के बाद अपोलो अस्पताल में भर्ती हुईं तो इस दौरान 74 दिनों तक शशिकला 'अम्मा' के साये की तरह रहीं. जयललिता के निधन के बाद उनकी अंतिम यात्रा में भी शशिकला हर जगह दिखीं. शशिकला ने 'अम्मा' का अंतिम संस्कार भी किया. आज पार्टी के तमाम कार्यकर्ता उसी तर्ज पर शशिकला के सामने नतमस्तक दिख रहे हैं जैसे ये जयललिता के सामने दिखते थे. शशिकला केवल जयललिता की सियासी वारिस बनने की ही राह पर नहीं हैं बल्कि जयललिता के पोएस गार्डन बंगले पर भी उनका अधिकार होने खबरें हैं.
अगर शशिकला के लिए पार्टी के भीतर इस तरह समर्थन उबल रहा है तो यह बेवजह नहीं है. पार्टी के पास बड़ा सवाल यह है कि दिवंगत जयललिता की अकूत दौलत का क्या होगा, क्योंकि अभी तक कोई वसीयत भी सार्वजनिक नहीं की गई है. पार्टी के पास ऐसा कोई चेहरा नहीं है जो तमाम स्तरों पर होने वाले झगड़े को सुलझाने का काम करे. अगर ये तत्व हावी हो गए तो सरकार गिर जाएगी और पार्टी के कार्यकर्ताओं को यह बात बखूबी पता है. इन तमाम चुनौतियों को संभालने के लिए शशिकला पर दांव खेला जा रहा है लेकिन उनकी राह भी इतनी आसान नहीं है. उनके सामने भी चुनौतियां आएंगी.
जनाधार वाले नेताओं का क्या?
जयललिता के निधन के बाद अन्नाद्रमुक के कार्यकर्ताओं ने तमाम जगहों पर शशिकला के पोस्टर लगाए और उन्हें 'चिनम्मा' यानी 'अम्मा की छोटी बहन' करार दिया. इससे पहले जयललिता से करीबी के चलते शशिकला को भले ही पार्टी में खूब महत्व दिया गया लेकिन शशिकला कभी न तो जयललिता की सरकार या पार्टी में किसी ओहदे पर रहीं. सार्वजनिक तौर पर कहीं कभी कोई भाषण नहीं दिया. वो कितनी पढ़ी लिखी हैं या उनकी दिलचस्पी किस चीज में है, कभी यह बात खुलकर सामने नहीं आई. ऐसे में अगर वो सीधे महासचिव बनती हैं तो पार्टी के उन धुरंधरों को खटक सकती हैं जिन्होंने जनता के बीच जाकर पार्टी के लिए वोट मांगे हैं.
'मन्नारगुडी माफिया' का दाग
1991 से 1996 के दौरान जयललिता के शासन के दौरान शशिकला और उनके कुनबे के लिए 'मन्नारगुडी माफिया' शब्द का इस्तेमाल किया गया. यह भी कहा गया कि शशिकला और उनके कुनबे पर समानांतर सत्ता चलाने के आरोप भी लगे. दिसंबर 2011 में ऐसा वक्त भी आया जब शशिकला और उनके पति सहित पूरे कुनबे को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. हालांकि शशिकला जल्द ही जयललिता के दिल में जगह बनाने में कामयाब रहीं लेकिन सूबे की जनता के दिल में शशिकला के लिए जगह बनाना आसान नहीं होगा.
सत्ता के दो केंद्र!
शशिकला के महासचिव बनने के बाद सत्ता के दो केंद्र बनेंगे. एक ओर सीएम पनीरसेल्वम तो दूसरी तरफ महासचिव शशिकला. वैसे तो दोनों ही नेता एक ही थेवर समुदाय से आते हैं और दोनों ही बिना जनाधार वाले नेता हैं, लेकिन सत्ता के दो केंद्र बनने से पार्टी के भीतर कलह मचने की आशंका है. क्योंकि दोनों सिरे अपना-अपना वर्चस्व कायम करने की कोशिश करेंगे. यह भी गौर करने वाली बात होगी कि शशिकला महासचिव बनकर ही संतुष्ट हो जाती हैं या फिर सूबे की सियासत में किसी बड़ी भूमिका में आने की योजना बना रही हैं. शशिकला की नेतृत्व क्षमता की परख अभी तक नहीं हुई है.
अम्मा की सीट पर कौन?
अन्नाद्रमुक के सामने बड़ा 'लिटमस टेस्ट' यह भी हो कि पार्टी चेन्नई की आरके नगर विधानसभा क्षेत्र से किसे टिकट देती है. बीते मई में जयललिता इसी सीट से चुनाव जीतीं थीं. पनीरसेल्मव के सामने चुनाव जीतने की कोई चुनौती नहीं है क्योंकि वो भी बीते चुनाव में जीतकर विधानसभा चुनाव पहुंचे. अगर शशिकला केवल महासचिव ही रहती हैं तो ऐसा पहली बार होगा जब अन्नाद्रमुख के सुप्रीमो का पद किसी एक शख्स के पास रहेगा और सीएम की कुर्सी पार्टी के किसी दूसरे नेता के पास. अगर ऐसा होता है कि सूबे में सियासी तौर पर मजबूत अन्य दो समुदायों - गौंडर और नादर के बीच इस बात को लेकर असंतोष पनप सकता है कि उन्हें सत्ता या संगठन में तवज्जो नहीं मिल रही है और ओबीसी थेवर समुदाय आगे बढ़ रहा है.