आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और तेलगू देशम पार्टी के अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू जब एनडीए से अलग हुए तभी से कयास लगाए जा रहे थे कि वह कांग्रेस के साथ जा सकते हैं. लेकिन उनके इरादे कुछ और भी थे, कांग्रेस को तो उन्होंने साथ लिया ही दूसरे विपक्षी दलों को भी एकजुट करने में लगे हैं. राजनीतिक समीक्षकों का मानना है कि नायडू ने पहले ही भांप लिया था कि मोदी के खिलाफ एक मजबूत विकल्प बनकर उभरना है तो अलग राह चुननी ही होगी. नीतीश कुमार एक मजबूत विकल्प हो सकते थे, लेकिन फिलहाल वो एनडीए में हैं अगर नीतीश बाहर होते तो शायद नायडू से ज्यादा तवज्जो उन्हें मिलती. ऐसा भी कहा जा रहा है कि नायडू का असली निशाना आंध्र प्रदेश है जहां 2019 में लोकसभा के साथ विधानसभा के चुनाव होने हैं.
राहुल गांधी को सभी दल नेता मान लें यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता, मायावती अखिलेश के साथ चुनाव लड़ने को तैयार हैं, लेकिन कांग्रेस के साथ सपा-बसपा का गठबंधन हो पाएगा या नहीं यह नहीं कहा जा सकता. कांग्रेस को अगर सम्मानित सीटें नहीं मिलीं तो वह दोनों के साथ चुनाव में जाएगी या नहीं इस पर भी संशय है. ऐसे में चंद्रबाबू नायडू एक विकल्प बनना चाहते हैं.
तेलंगाना में चुनाव होने जा रहे हैं, वहां के लिए टीडीपी और कांग्रेस से गठबंधन की बात चल रही है, हालांकि कांग्रेस ने यहां पहले ही कह दिया है कि वह 95 सीटों पर लड़ेगी. राहुल से बात करने का एक मकसद यह भी हो सकता है कि वह तेलंगाना में ज्यादा प्रतिनिधित्व चाहते हों. 119 सीटों वाली तेलंगाना विधानसभा के लिए 2014 में चुनाव हुए थे जिसमें टीआरएस को 62, कांग्रेस को 24, टीडीपी-बीजेपी को 22 और अन्य को 11 सीटें मिली थीं.
कहीं आंध्र का चुनावी गणित तो नहीं असली वजह
समीक्षकों का मानना है कि टीडीपी का कांग्रेस के साथ आना और भाजपा से दूर जाने का असली मकसद है आंध्र का चुनावी गणित. चंद्रबाबू नायडू को लगता है कि भाजपा के साथ होने से मुस्लिम मतदाता उनसे दूर छिटक जाते हैं. आंध्र प्रदेश में मुस्लिमों की आबादी तकरीबन 9 फीसदी है. आंध्र प्रदेश विधानसभा में कुल 176 सीटें हैं पिछले चुनाव में भाजपा और टीडीपी साथ मिलकर चुनाव लड़ी थीं. इसमें टीडीपी को 103 और भाजपा को 4 सीटें मिल पाई थीं. युवजन श्रमिक रायथू कांग्रेस पार्टी (YSRCP) को 65 सीटें मिली थीं। टीडीपी को लगता है कि अगर भाजपा साथ में न होती तो भी उनकी सरकार आराम से बन जाती. भाजपा के साथ रहने से उन्हें दूसरे प्रदेशों में स्वीकृति नहीं मिल पाती. अगर उन्हें मजबूत विकल्प बनना है तो अपना रास्ता तय करना होगा.
क्या भाजपा के खिलाफ जाने का फायदा मिलेगा
बाजपेयी की एनडीए सरकार में भी नायडू साथ थे, लेकिन बाद में वह अलग हो गए थे. मोदी के साथ भी उन्होंने चुनाव लड़ा लेकिन फिर अलग हो गए. ऐेसे में उन्हें यह भी साबित करना है कि वह वाकई में भाजपा से दूर हैं और उसे अगली सरकार बनाने से रोकने के लिए वास्तव में प्रयास कर रहे हैं. यह धारणा जितनी मजूबत होगी मुस्लिम मतदाता उनके पक्ष में आएगा और उन्हें फायदा होगा.
नायडू गुरुवार को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से मिले और दोनों ने भाजपा को हराने का संकल्प लिया. इसके बाद वह रांकपा के शरद पवार, नेशनल कॉन्फ्रेंस के फारूख अब्दुल्ला, सीपीआई (एम) के सीताराम येचुरी, सपा के संरक्षक मुलायम सिंह यादव से मिले. इससे पहले वह बसपा सुप्रीमो मायावती से भी मिल चुके हैं. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से भी उनकी इस मुद्दे पर बात हो चुकी है.
लेकिन सबको साथ लेकर चलना इतना आसान भी नहीं है. उत्तर प्रदेश जहां लोकसभा की सबसे ज्यादा सीटें हैं सपा-बसपा और कांग्रेस के बीच बात फाइनल नहीं हो पाई है. ममता बनर्जी के बारे में भी यह नहीं कहा जा सकता कि वह कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने को तैयार होंगी या नहीं. नायडू सीपीआई (एम) के सीताराम येचुरी से मिले यह भी ममता बनर्जी को स्वीकार होगा या नहीं. फिर भी नायडू से मुलाकात के बाद नेताओं ने जिस तरह का रेस्पॉन्स दिया है उससे गैरबीजेपी दलों के एकजुट होने की आस दिखाई देने लगी है. यह देखना होगा कि इस मुलाकात कोई ठोस रूप निकलकर आता है या नहीं.