भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) अपने चंद्रयान-2 मिशन की तैयारी में पूरे जोर-शोर से लगा है. लगातार सोशल मीडिया के जरिए हर डेवलपमेंट की जानकारी दे रहा है. भारत दुनिया का पहला देश है जो चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर-रोवर भेज रहा है. इसरो ने अपने इस मिशन की तुलना धरती के दक्षिणी ध्रुव पर गए पहले मानव मिशन से की है.
इसरो ने ट्वीट किया है कि मानव इतिहास के दो बड़े अभियान जो 110 साल के अंतराल पर हो रहे हैं. 1909 में धरती के दक्षिणी ध्रुव पर पहला मानव पहुंचा था. इस मिशन का नाम निमरॉड एक्सपेडिशन था. इसे अर्नस्ट शैकेल्टन के नेतृत्व में किया गया था. वहीं, चांद के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-2 मिशन का नेतृत्व इसरो कर रहा है.
जानिए...पृथ्वी और चांद के दक्षिणी ध्रुव के दोनों मिशन के बारे में
1909 - निमरॉड एक्सपेडिशन
निमरॉड एक्सपेडिशन 1909 में ब्रिटिश नागरिक अर्नस्ट शैकेल्टन के नेतृत्व में 16 लोगों की टीम ने पूरा किया था. दक्षिणी ध्रुव की यात्रा में 10 महीने लगे थे. अभियान में गए लोगों ने दक्षिणी ध्रुव पर 9 दिन बिताए थे. 16 लोगों ने दक्षिणी ध्रुव में माइनस 10 डिग्री सेल्सियस से लेकर माइनस 60 डिग्री सेल्सियस तक का सामना किया था. इस मिशन का लक्ष्य था अंटार्कटिका के भौगोलिक और वैज्ञानिक सरंचना का अध्ययन करना था.
2 Expeditions. 110 years Apart.
Read on to find out more... pic.twitter.com/e2CHWrYpxD
— ISRO (@isro) June 18, 2019
2019 - चंद्रयान-2 मिशन
15 जुलाई को चांद के दक्षिणी ध्रुव के लिए रवाना किया जाएगा. चंद्रयान-2 को चांद पर पहुंचने में करीब 2 महीने लगेंगे. चंद्रयान-2 चांद के दक्षिणी ध्रुव पर 14 दिन तक काम करेगा. इस दौरान चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान को माइनस 157 डिग्री सेल्सियस से लेकर 121 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान का सामना करना पड़ेगा. चंद्रयान-2 भी चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पानी, तापमान, वातावरण आदि का अध्ययन करेगा.
ऑर्बिटरः चांद से 100 किमी ऊपर इसरो का मोबाइल कमांड सेंटर
चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर चांद से 100 किमी ऊपर चक्कर लगाते हुए लैंडर और रोवर से प्राप्त जानकारी को इसरो सेंटर पर भेजेगा. इसमें 8 पेलोड हैं. साथ ही इसरो से भेजे गए कमांड को लैंडर और रोवर तक पहुंचाएगा. इसे हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड ने बनाकर 2015 में ही इसरो को सौंप दिया था.
विक्रम लैंडरः रूस के मना करने पर इसरो ने बनाया स्वदेशी लैंडर
लैंडर का नाम इसरो के संस्थापक और भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है. इसमें 4 पेलोड हैं. यह 15 दिनों तक वैज्ञानिक प्रयोग करेगा. इसकी शुरुआती डिजाइन इसरो के स्पेस एप्लीकेशन सेंटर अहमदाबाद ने बनाया था. बाद में इसे बेंगलुरु के यूआरएससी ने विकसित किया.
प्रज्ञान रोवरः इस रोबोट के कंधे पर पूरा मिशन, 15 मिनट में मिलेगा डाटा
27 किलो के इस रोबोट पर ही पूरे मिशन की जिम्मदारी है. इसमें 2 पेलोड हैं. चांद की सतह पर यह करीब 400 मीटर की दूरी तय करेगा. इस दौरान यह विभिन्न वैज्ञानिक प्रयोग करेगा. फिर चांद से प्राप्त जानकारी को विक्रम लैंडर पर भेजेगा. लैंडर वहां से ऑर्बिटर को डाटा भेजेगा. फिर ऑर्बिटर उसे इसरो सेंटर पर भेजेगा. इस पूरी प्रक्रिया में करीब 15 मिनट लगेंगे. यानी प्रज्ञान से भेजी गई जानकारी धरती तक आने में 15 मिनट लगेंगे.