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सोनिया के दरबार से खाली हाथ लौटे चौधरी, अब तक नहीं मिला कोई ठिकाना

सूत्रों की मानें तो चौधरी हर तरफ हाथ आजमा रहे हैं. जेडीयू के साथ ही बीजेपी के भी संपर्क में हैं तो कांग्रेस से भी बात कर रहे हैं. लेकिन अब कहीं भी बात अब तक बनी नहीं है.

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कभी नीतीश कुमार से मिलकर जेडीयू में अपनी पार्टी आरएलडी का विलय करने को तैयार चौधरी अजीत सिंह ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं कि वो 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में किधर खड़े होंगे. सूत्रों की मानें तो चौधरी हर तरफ हाथ आजमा रहे हैं. जेडीयू के साथ ही बीजेपी के भी संपर्क में हैं तो कांग्रेस से भी बात कर रहे हैं. लेकिन अब कहीं भी बात अब तक बनी नहीं है.

सूत्रों के मुताबिक, चौधरी ने पिछले हफ्ते 10 जनपथ जाकर सोनिया गांधी से मुलाकात की, लेकिन चौधरी को राज्यसभा सीट देने पर बात नहीं बन पाई. चौधरी ने सोनिया से राज्यसभा सीट चाही तो सोनिया ने सोचूंगी कहकर कोई आश्वासन नहीं दिया. इससे नाखुश चौधरी ने मुलाकात के बाद मीडिया को कोई बयान नहीं दिया, उलटे मुलाकात को गुप्त रखने का फैसला किया जिससे कहीं और डील करने का मौका बना रहे.

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बीजेपी से भी अब तक मिला झटका
उधर, चौधरी सोनिया से मिले और सोचा कि अब उनकी मोल-तोल की ताकत बढ़ जाएगी लेकिन सोनिया से मुलाकात की भनक लगते ही बीजेपी ने एक कदम आगे बढ़ाते हुए साफ कर दिया कि, चौधरी बीजेपी ज्वाइन करें, उनकी पार्टी से समझौते पर वो राजी नहीं. वैसे भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश से बीजेपी के संजीव बाल्यान सरीखे नेता चौधरी को साथ लेने का पुरजोर विरोध कर रहे हैं. उनका मानना है कि जाट हिन्दू के तौर पर बीजेपी के साथ हैं ही और अकेले होने पर चौधरी के पास मुस्लिम जाट समीकरण रहेगा नहीं. ऐसे में चौधरी अपने ही बुने जाल में उलझते दिख रहे हैं.

राज्यसभा सीट की दरकार और बेटे का भविष्य
दरअसल, लोकसभा चुनाव में चौधरी की पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई. खुद चौधरी और उनके बेटे जयंत भी चुनाव हार गए. अपने पिता चौधरी चरण सिंह के जमाने से लुटियन जोन में मिली कोठी भी खाली करनी पड़ गई. संसद की राजनीति से दूर हो गए. अब विधानसभा में इतनी सीटें नहीं कि राज्यसभा की एक सीट भी मिल सके, इसीलिए चौधरी दर-दर भटक रहे हैं. चौधरी की दूसरी मुश्किल है बेटे जयंत चौधरी का भविष्य. चौधरी के सलाहकारों का मानना है कि आज भले ही पश्चिमी यूपी में पार्टी के पक्ष में दंगों के चलते माहौल न हो, लेकिन पार्टी का बेस वोट जाट और मुस्लिम है, वही आने वाले वक्त में पार्टी को दोबारा खड़ा करेगा. ऐसे में भविष्य के मद्देनजर पार्टी को बीजेपी के साथ नहीं जाना चाहिए.

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सपा और बसपा से भी नहीं बनी बात
सपा को चौधरी ज्यादा मुफीद लगे नहीं क्योंकि उसको लगता है कि आज के वक्त जाट-मुस्लिम समीकरण चौधरी के हक में नहीं है और मुस्लिम ऐसे में मुस्लिम सपा के साथ रह सकता है, लेकिन चौधरी के साथ जाने पर मुस्लिम खिसक सकता है. इसीलिए उसने अपनी सभी राज्यसभा सीटों का ऐलान कर दिया. वहीं बसपा का भी मानना है कि, चौधरी के साथ जाने की बजाय वो दलित मुस्लिम समीकरण का फायदा ले सकती है. कुल मिलाकर चौधरी साहब फिलहाल तो मझधार में खड़े हैं. लेकिन किसी भी वक्त करवट बदलने में माहिर चौधरी की अगली करवट किस तरफ होगी, ये शायद खुद चौधरी भी नहीं जानते, क्योंकि इस बार वो अपने सबसे बुरे सियासी वक्त से गुजर रहे हैं.

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