चेन्नई में मौजूदा पानी के संकट को सही तरह से जानना है तो ये अंतरिक्ष में पृथ्वी की परिक्रमा करते सैटेलाइट की आंखों से देखा जा सकता है. चेन्नई में पानी की किल्लत से लोगों को निजात दिलाने के लिए महानगर के अधिकारियों को मॉनसून का इंतज़ार है. सैटेलाइट से ली तस्वीरों से पता चलता है कि चेन्नई के अहम जलाशय (झील आदि) बीते एक साल में पूरी तरह सूख गए हैं.
बता दें कि तमिलनाडु आपदाओं से अछूता नहीं है. सुनामी और बाढ़ से लेकर भीषण जल संकट, इस दक्षिणी राज्य को समय-समय पर इन सब का सामना करना पड़ता है.
चेन्नई का मौजूदा जल संकट महानगर में कई साल कम बारिश होने से जुड़ा है लेकिन एक अंतर के साथ- वो है अंतरिक्ष की चेतावनी की अनदेखी की गई.
विशेषज्ञों का मानना है कि चेन्नई की दो चरम स्थितियों- जल संकट और बाढ़ के लिए इनसानों की ओर से उत्पन्न वजहें ही ज़िम्मेदार हैं.
जल संग्रह एजेंसी ‘ग्लोबल सरफेस वाटर’ की मदद से इंडिया टुडे ग्रुप के डेटा इंटेलीजेंस यूनिट (DIU) ने चेन्नई के चार अहम जलाशयों- पूंडी, चोलावरम, रेड हिल्स और चेमारमबक्कम के पानी कवरेज से जुड़े 34 साल के ऐतिहासिक डेटा का विश्लेषण किया.
चेन्नई में 20 लाख से ज्यादा लोग दो या तीन साल की अवधि में कम से कम दो महीने तक ताज़ा पानी के संकट से जूझते हैं. चेन्नई में शहरी आबादी बढ़ने के साथ ये स्थिति और विकट होती जा रही है.
करीब 50 लाख आबादी वाला चेन्नई देश का छठा सबसे बड़ा शहर है. चेन्नई को हर दिन 80 करोड़ लीटर पानी की ज़रूरत है लेकिन उपलब्ध सिर्फ 52.5 करोड़ लीटर ही हो पा रहा है. और ये आपूर्ति भी तेज़ी से घटती जा रही है.
पानी के खराब प्रबंधन ने चेन्नई को पानी को लेकर सबसे ज्यादा दबाव वाले ना सिर्फ भारत बल्कि दुनिया के शहरों में शामिल करा दिया है.
पर्यावरण मानवविज्ञानी नूतन मौर्या शहरी-पानी से जुड़े मुद्दों पर काम करती हैं और शिकागो यूनिवर्सिटी सेंटर दिल्ली से जुड़ी हैं. उनका चेन्नई में पानी के मौजूदा संकट को लेकर कहना है, ‘ये संकट कुप्रबंधन की वजह से ज्यादा है. क्योंकि हमारा 80% से ज़्यादा सतही पानी प्रदूषित है.
शहरों में कंक्रीट का जंगल बढ़ने से हरियाली सिकुड़ती जा रही है. इससे ज़मीन के नीचे घटते जल-स्तर की भरपाई के विकल्प कम हो गए हैं. मानव की ओर से इस्तेमाल किए हुए पानी की री-साइक्लिंग एक स्रोत हो सकता है लेकिन इस्तेमाल किया हुआ पानी करीब 70% बिना शोधित (ट्रीट) किए नदियों और अन्य जल स्रोतों में जाकर मिलता है. ये उन्हें भी दूषित कर देता है और संसाधन की हानि होती है.’
चेन्नई के अहम जल स्रोत
चेन्नई के चार अहम जलाशय पूंडी, चोलावरम, पुझाल, मलायमबक्कम हैं. इनकी कुल क्षमता 11.5 हजार मिलियन क्यूबिक फीट (TMCft) है जो सर्वकालिक अपने सबसे निचले स्तर तक पहुंच चुकी है. तमिलनाडु के छह अहम टैंकों में शोलायार सबसे बड़े जलाशयों में से एक माना जाता रहा है जो पूरी तरह सूख चुका है.
चेन्नई के जल स्रोत अधिकतर इस बात पर निर्भर करते हैं कि कितनी बारिश होती है. चेन्नई का वार्षिक औसत वर्षा स्तर 1400 मिलीमीटर है और ये हर वर्ष काफी ऊपर-नीचे होता है. 2018 में ये 835 मिलीमीटर ही रहा.
चेन्नई को पानी से जुड़ी कठिनाइयों का सामना करते रहना पड़ता है. 2015 से 2019 के बीच चेन्नई ने विकराल सूखा और बाढ़. दोनों ही स्थितियों को देखा. 2004 में तमिलनाडु में सुनामी के बाद करीब 8,000 लोगों की मौत हुई और लगभग 9 लाख परिवार प्रभावित हुए.
2015 में चेन्नई में बाढ़ की वजह से हुई तबाही में करीब 300 लोग मारे गए. इस बाढ़ में हज़ार से ज्यादा लोग घायल हुए और 143 अरब रुपए की संपत्ति और रोज़गार का नुकसान हुआ. लेकिन आज चेम्बारामबक्कम झील जो कभी ओवरफ्लो होने पर चेन्नई में बाढ़ की स्थिति लाती थी, अब 1 mcft के साथ करीब करीब सूखी पड़ी है.
ग्राफ दिखाता है कि बादलों को भेदने वाले रडार सैटेलाइट्स की मदद से विभिन्न समयावधि में तीन जिला क्षेत्रों में पानी की स्थिति को दिखाता है. सैटेलाइट तस्वीरों से पता चलता है कि पुझाल और चोलावरम जून 2019 तक पूरी तरह सूख जाएंगे. चेम्बरामबक्कम और पूंडी जलाशयों में नाममात्र का ही पानी बचा है.
जून 2019 और 2018 में पूंडी
Source: Copernicus Sentinel Data (2019); Processed by Raj Bhagat P, WRI India using SentinelHub
Source: Copernicus Sentinel Data (2019); Processed by Raj Bhagat P, WRI India using SentinelHub
जून 2019 और 2018 में पुझाल
Source: Copernicus Sentinel Data (2019); Processed by Raj Bhagat P, WRI India using SentinelHub.
Source: Copernicus Sentinel Data (2019); Processed by Raj Bhagat P, WRI India using SentinelHub.
जून 2019 में चेम्बारामबक्कम
Source: Copernicus Sentinel Data (2019); Processed by Raj Bhagat P, WRI India using SentinelHub.
जून 2018 में चेम्बारामबक्कम
Source: Copernicus Sentinel Data (2019); Processed by Raj Bhagat P, WRI India using SentinelHub.
जून 2019 में थेनरी
Source: Copernicus Sentinel Data (2019); Processed by Raj Bhagat P, WRI India using SentinelHub.
जून 2018 में थेनरी
Source: Copernicus Sentinel Data (2019); Processed by Raj Bhagat P, WRI India using SentinelHub.
बारहमासी कोई नदी नहीं होने की वजह से चेन्नई अधिकतर मौसमी बारिश के आसरे रहता है. चेन्नई के जल की आपूर्ति चार अहम झीलों, दो डीसैलिनेशन (विलवणीकरण) प्लांट और ज़मीन के नीचे के जल (ग्राउंड वाटर) पर निर्भर करती है. इसके अलावा एक नहर है जो कृष्णा बेसिन से अतिरिक्त पानी को लाती है जो तेलुगु गंगा प्रोजेक्ट का हिस्सा है. कृष्णा नदी से भी शहर को कोई मदद नहीं मिल रही. मौजूदा वक्त में शहर ज़मीन के नीचे के जल (जिसकी स्थिति खुद खराब है), वीरानम और डीसैलिनेशन प्लांट्स पर निर्भर है. ये पूरे शहर की ज़रूरतों को पूरा करने में पर्याप्त नहीं है.
पानी का संकट सिर्फ चेन्नई या अन्य शहरी इलाकों तक ही सीमित नहीं है. इसका दबाव उत्तर तटीय तमिलनाडु के ग्रामीण हिस्सों में भी देखा जा रहा है.
DIU ने पाया कि चेन्नई के सबसे अहम जल स्रोत पूंडी ने इस अवधि में 31 फीसदी पानी के फिराव (पुनरावृत्ति) को बनाए रखा है. इसी तरह चोलावरम का जल फिराव 75% और पुझाल (रेड हिल्स लेक) का 89% है. पूंडी का जल इतिहास बताता है कि जलाशय हर तीन से चार साल के चक्र में पानी का दबाव झेलते हैं.
पूंडी: चेन्नई का सबसे बड़ा जलाशय
कैसे मौसमी जल स्रोत हुए गायब?
सैटेलाइट डेटा दिखाता है कि चेन्नई क्षेत्र में बहुत सारे ‘मौसमी’ जल स्रोत 1984 से 2018 के बीच गायब हो गए. गुलाबी रंग मौसमी सतह-जल के नुकसान को दिखाता है.
Source: Global Surface Water Explorer.
शहर में रहने वाले जल विशेषज्ञ और वर्ल्ड रिसोर्सेस इंस्टीट्यूट के भारत में स्थायी सिटीज़ मैनेजर राज भगत पी कहते हैं,‘चेन्नई की समस्या (सिर्फ 2019 की ही नहीं) पानी की कमी नहीं बल्कि उपलब्ध पानी का प्रबंधन है. चेन्नई की सूखे से तुलना नहीं की जानी चाहिए. इसके पास अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त पानी है.
इसे अपने पानी को प्रभावी और वैज्ञानिक तरीके से प्रबंधन पर सोचना चाहिए. जिम्मेदारी सभी स्टेकहोल्डर्स- नागरिकों, उद्योग, सरकार और किसानों पर आयत होती है.’
अगर घरेलू, कृषि, उद्योग सभी सेक्टरों में पानी की भारी मांग को देखा जाए तो उपलब्ध पानी चेन्नई के लिए पर्याप्त नहीं है. बरसों से इन सेक्टरों ने काफी तरक्की की है और बारिश के पैटर्न में जरा सा भी बदलाव शहर पर पानी को लेकर दबाव काफी बढ़ा देता है. आज चेन्नई जो पानी की भारी किल्लत का सामना कर रहा है वो मांग के कई गुणा बढ़ने और आपूर्ति की खामियों की वजह से है. कम बारिश, सूखते जा रहे भू-जल, जनसंख्या का दबाव और गलत जल प्रबंधन चेन्नई को हर 6-7 साल में ऐसी स्थिति में झोंक देता है
सरकार ने अगले छह महीने के लिए जोलारपेट्टाई से रेलवे टैंकर्स के जरिए पानी लाने का फैसला किया है. जोलारपेट्टाई की चेन्नई से दूरी 100 किलोमीटर है.
जल संकट सिर्फ तमिलनाडु तक ही सीमित नहीं है. भारत के दूसरे शहर भी पानी की किल्लत का सामना कर रहे हैं. हालांकि जून 2018 में नीति आयोग ने अपनी रिपोर्ट में आगाह किया ता कि 60 करोड़ लोग (देश की करीब आधी आबादी) पानी की भारी किल्लत का सामना कर रहे हैं और हर साल करीब 20 लाख लोग प्रदूषित पानी की वजह से दम तोड़ते हैं. रिपोर्ट में ये भी कहा गया ता कि नई दिल्ली समेत 21 अहम शहरों में 2020 तक ग्राउंडवाटर (भू-जल) सूख जाएगा जिससे 10 करोड़ लोग प्रभावित होंगे.
चेन्नई के जल संकट के लिए 5-सूत्री समाधान:
1 शहरी क्षेत्रों में बारिश के पानी के संग्रह का प्रभावी ढंग से अमल में लाना
2- इस्तेमाल किए पानी का दोबारा प्रयोग
3- जल स्रोत, झीलों का संरक्षण
4- शोधकर्ताओं और विज्ञानियों को प्रभावी दखल के लिए खुला डेटा
5- सावधानीपूर्ण इस्तेमाल की दक्षता बढ़ाना- घरेलू, औद्योगिक और सिंचाई ज़रूरतों के संदर्भ में