रविवार की सुबह सूर्य को अर्ध्य देने के साथ ही सूर्योपासना का महापर्व छठ संपन्न हो गया. इस पूजा में लोग चार दिनों तक सूर्य देवता की भक्ति में लीन हो जाते है. पहले दिन नहाए खाए से पर्व की शुरूआत होती है, जिसमें व्रती स्नान कर शुद्ध होते हैं. फिर घर में पूजा कर कद्दू और चावल का प्रसाद ग्रहण किया जाता है.
साफ-सफाई का रखते हैं विशेष ध्यान
दूसरा दिन होता है खरना का. इस दिन भी पूरी साफ सफाई का ध्यान रखते हुए घर पर पूजा कर लोगों के बीच खीर-रोटी और गुड़ का प्रसाद बांटा जाता है. तीसरे दिन व्रती पूरे दिन का उपवास रखते है. पानी तक नहीं पीया जाता है. फिर शाम को नदी, तालाब के घाट पर जाकर लोग डूबते हुए सूर्य को दूध और जल से अर्घ्य देते है और छठ मैया जिन्हें सूर्य देवता की बहन माना जाता है, उनकी फल और प्रसाद से भरे सूप से पूजा करते हैं.
भगवान सूर्य से दुखों का अंत करने की करते हैं प्रार्थना
शाम के अर्ध्य के बाद लोग दोबारा से अगल सुबह घाट पर जाते है और पानी में खड़े होकर उगते हुए सूर्य की उपासना करते है और दूध और जल से अर्घ्य देते है और फिर मंदिर में जाकर सूर्य देवता की पूजा करते है. इस तरह से पूरा होता है चार दिनों का कठिन तप, जिसमें लोग भगवान सूर्य से अपने सारे दुखों का अंत करने की विनती करते हैं.