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नक्सली घटनाओं में कमी के दावे के बीच होती रहीं हत्याएं

छत्तीसगढ़ सरकार ने साल 2012 में नक्सली घटनाओं में कमी आने का दावा जरूर किया है लेकिन यह वर्ष नक्सलियों द्वारा सुकमा जिले के कलेक्टर का अपहरण किए जाने का गवाह भी रहा है. वहीं राज्य में इस वर्ष पुलिस पर मासूम ग्रामीणों की हत्याओं का भी आरोप लगा है.

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छत्तीसगढ़ सरकार ने साल 2012 में नक्सली घटनाओं में कमी आने का दावा जरूर किया है लेकिन यह वर्ष नक्सलियों द्वारा सुकमा जिले के कलेक्टर का अपहरण किए जाने का गवाह भी रहा है. वहीं राज्य में इस वर्ष पुलिस पर मासूम ग्रामीणों की हत्याओं का भी आरोप लगा है.

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छत्तीसगढ़ सरकार ने दावा किया है वर्ष 2012 में नक्सली घटनाएं कम हुई हैं और इसका कारण राज्य के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में पुलिस का बढ़ता दबाव है.

राज्य के गृह मंत्री ननकी राम कंवर के मुताबिक, वर्ष 2006 की तुलना में वर्ष 2012 में नक्सली घटनाएं लगभग आधी हो गई हैं और आम नागरिकों की हत्या की घटनाएं 20 फीसदी ही रह गई हैं.

उनके दावे की कलई खोलते हुए राज्य में नक्सलियों की ताकत में लगातार बढ़ोतरी होती रही और इसका नतीजा यह हुआ कि रमन सरकार द्वारा जारी ग्राम सुराज अभियान के दौरान सुकमा जिले के कलेक्टर एलेक्स पाल मेनन का अपहरण कर लिया गया.

राज्य के सुकमा जिले के केरलापाल क्षेत्र में अप्रैल महीने की 21 तारीख को नक्सलियों ने सुकमा जिले के कलेक्टर एलेक्स पाल मेनन का उस समय अपहरण कर लिया जब मेनन दोपहर की गर्मी में आदिवासियों की समस्याएं सुन रहे थे. इस घटना में माओवादियों ने मेनन के दो अंगरक्षकों की गोली मारकर हत्या कर दी थी.

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इस अप्रत्याशित घटना से हड़बड़ाई राज्य सरकार ने मेनन को छुड़ाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया और अंतत: 13 दिनों बाद तीन मई को माओवदियों ने मेनन को रिहा कर दिया.

मेनन भले ही रिहा कर दिए गए लेकिन इस घटनाक्रम के दौरान माओवादी देश और दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में जरूर कामयाब रहे. उन्होंने इस एक घटना के माध्यम से यह भी बता दिया कि वह वाकई इस सबसे बड़े लोकतंत्र की सबसे बड़ी चुनौती हैं. राज्य में माओवादियों ने कलेक्टर मेनन का अपहरण कर अपनी ताकत दिखाई. साथ ही पुलिस कर्मियों पर अपने हमले भी जारी रखे.

ऐसी ही एक घटना में मई महीने में राज्य के दंतेवाड़ा जिले में माओवादियों ने केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) के वाहन पर हमला कर दिया जिसमें छह पुलिसकर्मी समेत सात लोग मारे गए. जबकि इससे 10 दिनों पहले माओवादियों ने सुकमा जिले में दो पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी थी.

माओवादियों ने इस वर्ष मार्च महीने में राज्य के कांकेर जिले में विस्फोट कर सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) की गाड़ी को उड़ा दिया था. इस घटना में तीन जवान शहीद हो गए थे.

नक्सलियों के हमले, बारूदी सुरंग में विस्फोट, हत्याएं और अपहरण की घटनाओं के मध्य सुरक्षा बलों ने भी अपना काम जारी रखा और इस दौरान कई नक्सलियों को मार गिराया तथा कई गिरफ्तार कर लिए गए. वहीं कई नक्सलियों ने इस दौरान आत्मसमर्पण भी किया.

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राज्य में सुरक्षा बलों द्वारा की जा रही कार्रवाई को उस समय झटका लगा जब पुलिस पर नक्सलियों की आड़ में ग्रामीणों को मार गिराने आरोप लगाया गया.

छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के सारकेगुड़ा क्षेत्र में पुलिस ने 29 जून को मुठभेड़ में 19 नक्सलियों को मार गिराने का दावा किया था. पुलिस इस कामयाबी पर खुश हो पाती इससे पहले ही राज्य के मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने इस घटना में बड़ी संख्या में महिलाओं और बच्चों के मारे जाने का आरोप लगा दिया.

छत्तीसगढ़ सरकार के मुताबिक, पुलिस ने इस हमले में नक्सलियों को ही मार गिराया था जिसमें दंतेवाड़ा जेल ब्रेक मामले का मास्टर माइंड भी शामिल था. लेकिन कांग्रेस इस मामले की सीबीआई जांच के लिए अड़ी रही. बाद में इस घटना को लेकर विवाद बढ़ता देख राज्य सरकार ने इसकी न्यायिक जांच की घोषणा कर दी.

राज्य में इस वर्ष कई नक्सली कमांडरों और नक्सली सदस्यों ने पुलिस के दबाव में आत्मसमर्पण किया और इस दौरान नक्सलियों के कई करतूतों का खुलासा भी हुआ. ऐसी ही एक घटना में जनवरी माह में कांकेर जिले में डिविजन कमेटी के सदस्य समेत सात नक्सलियों ने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया था.

इस दौरान नक्सली कमांडर सुनील कुमार ने खुलासा किया कि नक्सली नेताओं के कहने पर दल में शामिल पुरुष नक्सलियों की जबरन नसबंदी कर दी जाती है. इस खुलासे ने नक्सलियों के अमानवीय चेहरे को एक बार फिर सबके सामने रख दिया था. इसके बावजूद नक्सली बस्तर में लोगों को निशाना बनाते रहे और इस बार उनके निशाने पर नक्सल विरोधी नेता पूर्व नेता प्रतिपक्ष महेंद्र कर्मा भी रहे. हांलकि आठ नवंबर को हुए इस घटना में महेंद्र कर्मा बाल बाल बच गए लेकिन इससे राज्य में जनप्रतिनिधियों की सुरक्षा पर भी सवालिया निशान लगा.

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राज्य में इस वर्ष नक्सली मामलों के जानकार रामनिवास नए पुलिस महानिदेशक बनाए गए. रामनिवास ने डीजीपी का पद ग्रहण करने के दौरान यह साफ कर दिया कि उनकी पहली प्राथमिकता नक्सली समस्या का निपटारा ही है.

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