सीमा पर सीजफायर का उल्लंघन और सुरक्षा में लगे जवानों के शहीदी की दास्तान से देश का खून खौल उठता है. आम जिंदगी की खुशी गम में बदल जाती है और नम आखों से जाबांजों को सलामी दी जाती है. लेकिन दूसरी ओर, बीते एक महीने में छत्तीसगढ़ में नक्सल मोर्चे पर डटे आठ जवानों के मौत की खबर पर शायद ही गौर किया जाता है. नक्सल मोर्चे से ताजा जानकारी यह है कि सुरक्षा बल के जवान इन दिनों दहशत में हैं.
यह दशहत न तो नक्सलियों की है और न ही उनकी बंदूकों से निकलने वाली गोलियों की. दरअसल, मोर्चा संभाल रहे अधिकतर जवान मलेरिया के शिकार हो गए हैं. बीमारी ने आठ जवानों की जान ले ली है. खौफ ऐसा कि दो हजार से ज्यादा जवानों ने छुट्टी की अर्जी आगे बढ़ा दी है. लेकिन कुव्यवस्था पैर पसारे बैठी है और अस्पताल में जवानों को न तो सही समय दवा मिल रही है और न ही अन्य सुविधाएं.
छत्तीसगढ़ में बस्तर से लेकर रायपुर तक सरकारी और गैर सरकारी अस्पताल में इन दिनों आम मरीजों की बजाय पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवानों की भर्तियां हो रही हैं. इनमें खासतौर पर मलेरिया ग्रस्त जवान भरे पड़े हैं. इन जवानों की तैनाती बस्तर, दंतेवाड़ा, बीजापुर, सुकमा और आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और ओडिसा की सरहद पर है. अधिकतर जवानों को मस्तिष्क ज्वर की शिकायत के बाद भर्ती कराया गया है. व्यवस्था खस्ता हालत में है और मलेरिया से पीड़ित जवानों की न तो समय पर खून जांच हुई है और न ही कोई दवा ही मिली है. जो जवान स्वस्थ हैं वो साथियों को अस्पताल पहुंचाने में व्यस्त हैं. डाक्टरों का कहना है कि समय पर जवानों को चिकित्सा सुविधा मुहैया हो जाए तो मलेरिया को मस्तिष्क ज्वर तक पहुंचने से पहले रोका जा सकता है.
महारानी अस्पताल के डॉ. संजय बसक कहते हैं, 'मेडिकल कॉलेज में जवानों को मलेरिया संबंधी ट्रीटमेंट और मेडिकल सुविधा देने का प्रयास रहता है. दक्षिण बस्तर नक्सली क्षेत्र है. ये दुर्गम इलाका है और वाहन से जवानों को निकालते-लाते काफी देर हो जाती है. इससे मस्तिष्क मलेरिया फैल जाता है.'
यहां गोलियों ने नहीं, बीमारी ने ली जान
जवानों के लिए सुरक्षा में शहीद होना गर्व की बात होती है, लेकिन छत्तीसगढ़ में नक्सल मोर्चे में डटे जवानों की जान बीमारी ले रही है. लगातार बुखार के कारण एक महीने में आठ जवानों की जान जा चुकी है. दो हजार से ज्यादा जवानों का इलाज किया जा रहा है. दुखद यह भी है कि मलेरिया पीड़ित जवानों की मौत कर कोई चर्चा तक करने वाला नहीं है. अफसर रातों-रात जवानों के शव को उनके गृह नगर रवाना कर देते हैं. दूसरी ओर, सुरक्षा बलों की चौकियों से लेकर बैरकों पर मच्छरों का जंगल राज कायम है. लगातार बारिश से मच्छरों की पैदावार भी खूब हो रही है.
ये कैसा अनुशासन
इसके अलावा जंगल के भीतर कई पेड़-पौधों की पत्तियों के संपर्क में आने से जवानों को एलर्जी की शिकायत भी हो रही है. अनुशासन के डंडे तले सहमे जवान, बीमारियों से लड़ने के मामले में अपना मुंह खोलने से बच रहे हैं. सूत्रों के मुताबिक, बैरकों मे मलेरिया किट का टोटा है. बारिश में मौसम की मार और खाने-पीने की वस्तुओं में गिरावट हाइपर एसिडिटी को निमंत्रण देती है. आलम यह है कि जवान डर के मारे में जंगल में गश्त लगाने से कतरा रहे हैं. 2000 जवानों ने छुट्टी की अर्जी दे रखी है, जिनपर सुनवाई न के बराबर है. हालांकि डॉक्टरों की सलाह के बाद कुछ आवेदनों पर विचार भी हो रहा है. जवानों के स्वास्थ्य का जायजा लेने के लिए न तो छत्तीसगढ़ पुलिस मुख्यालय में सक्रियता है और न ही केन्द्रीय सुरक्षा बलों के आला अफसर ही इस ओर कोई उत्सुकता दिखा रहे हैं.
अधिकारियों का तर्क
छत्तीसगढ़ CAF के ADG आरके विज कहते हैं, ' सभी जगह हमारे यूनिट थाना या पोस्ट हैं. वहां फर्स्टएड किट दी जाती है, लेकिन इसके अलावा यदि कहीं पर मलेरिया या दूसरी समस्या आती है तो डॉक्टरों की टीम भेज कर इलाज करवाया जाता है. जहां जैसी आवश्यकता होगी, जिला हेडक्वार्टर की टीम गठित कर इलाज करवाया जाएगा.'