सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस आर एम लोढा ने बड़ा बयान दिया है. जस्टिस लोढा ने कहा कि जजों की नियुक्ति जजों को ही करनी चाहिए. उन्होंने रिटायरमेंट के बाद जजों के संवैधानिक पद लेने पर भी पाबंदी लगाने की मांग की है.
लोढा बतौर चीफ जस्टिस अपने आखिरी दिन शुक्रवार को पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे. लोढा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस और जजों को रिटायरमेंट के बाद दो साल तक किसी भी संवैधानिक पद पर कोई नियुक्ति स्वीकार नहीं करनी चाहिए.
पूर्व चीफ जस्टिस पी सदाशिवम के केरल का राज्यपाल बनने से जुड़े सवाल पर उन्होंने साफ किया, 'मैं किसी व्यक्तिगत मामले पर टिप्पणी नहीं करना चाहता, लेकिन मेरी निजी राय है कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और सभी जस्टिस को कोई संवैधानिक पद कबूल नहीं करना चाहिए. लेकिन कुछ ऐसे आयोग और न्यायाधिकरण हैं जिनके कानूनों में सभी पूर्व चीफ जस्टिस और जस्टिस को नियुक्त करने के प्रावधान हैं जिन्हें संशोधित किया जाना जरूरी है.'
यह पूछे जाने पर कि क्या वह देश के पहले लोकपाल बनने की दौड़ में शामिल हैं, चीफ जस्टिस ने कहा कि वह कोई भी संवैधानिक पद कबूल नहीं करेंगे. उन्होंने कहा, 'जज के रूप में अपने कार्यकाल में मैंने एक मिनट भी अपने लिए नहीं बिताया और अब मैं रिटायरमेंट के बाद कुछ समय अपने लिए बिताऊंगा.'
सालों पुराने कॉलेजियम सिस्टम को खत्म करने वाले राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के गठन के बारे में चीफ जस्टिस ने एक बार फिर कहा कि उनकी राय में जजों की नियुक्तियों में बाहरी दखल उचित नहीं है. उन्होंने कहा, 'मेरी निजी राय है कि कोई न्यायाधीश ही किसी सही न्यायाधीश की पहचान अच्छे तरीके से कर सकता है.' उन्होंने कहा कि किसी अन्य संस्था द्वारा उच्च न्यायपालिका में नियुक्तियां करने से न्यायपालिका की स्वतंत्रता प्रभावित हो सकती है.
हालांकि उन्होंने साफ किया कि लोकतंत्र में हर किसी को विरोध और समर्थन में अपनी राय जाहिर करने का हक है. और संभव है कि किसी और राय उनकी निजी राय से अलग हो और दूसरे व्यक्ति को न्यायिक नियुक्ति आयोग गठन करने का फैसला उचित लगे.
चीफ जस्टिस लोढ़ा ने कहा कि एक जज की नियुक्ति में कई पहलुओं पर ध्यान दिया जाता है. कोई वकील कितनी जानकारी रखता है. उसकी बहस करने की क्षमता कैसी है. उसका प्रेजेंटेशन कैसा है. कौन किस बिंदु से जज बनने लायक है, कौन नहीं. इन सारे पहलुओं पर एक जज ही बेहतर निर्णय ले सकता है.
एक अन्य सवाल के जवाब में लोढा ने कहा कि न्यायाधीश के रूप में 21 साल के कार्यकाल के दौरान उन पर कभी भी राजनीतिक दबाव नहीं पड़ा. उन्होंने कहा, 'विभिन्न अदालतों में जज के रूप में अपने करीब दो दशक से अधिक के करियर में उनके ऊपर कभी कोई प्रत्यक्ष या परोक्ष राजनीतिक दबाव नहीं डाला गया. उनके न्यायिक कामकाज में कभी किसी ने हस्तक्षेप नहीं किया.'
लोढा के रिटायरमेंट के बाद जस्टिस एचएल दत्तू भारत के अगले चीफ जस्टिस होंगे. चीफ जस्टिस बनने के बाद जस्टिस दत्तू का कार्यकाल एक साल से ज्यादा का तक होगा. वह दिसंबर 2015 में रिटायर होंगे.