दक्षिण अमेरिकी देश चिली में खदान में फंसे 33 लोगों को बचाने के लिए युद्धस्तर पर कोशिशें चल रही हैं. इनको बचाने के लिए सुरंग बनाने का काम किया जा रहा है. चिली के झंडे के साथ जैसे ही सुरंग खोदने वाली मशीनें पहुंची. आशा-निराशा के बीच झूल रहे खदान में फंसे कर्मचारियों के घरवालों में उम्मीद की नई रोशनी जगाई गई.
लोगों के निकालने के लिए 26 ईंच चौड़ी सुरंग बनाने की रणनीति तैयार की गई है. बेशक, इस मशीन के आने से बचाव का काम तेज होने की उम्मीद है लेकिन बचावकर्मियों का कहना है कि रेस्क्यू ऑपरेशन की राह में अभी ढेरों रोड़े हैं. सुरंग करीब आधा मील तक बनेगी, ऐसे में बचाव दल का मानना है कि इस काम में कई दिन लग जाएंगे.
यहां तक कि महीने भर का वक्त लग सकता है. बचाव दल की अगुवाई कर रहे एद्रेस सोगारेट का कहना है कि रेस्क्यू ऑपरेशन पूरा करने में तीन से चार महीने का वक्त लग सकता है. मौत से यह जंग बेहद लंबी है. बचाव कर्मी पहले ही कह चुके हैं कि रेस्क्यू ऑपरेशन चार महीने तक खिंच सकता है. यानी, खदान के भीतर एक छोटी-सी जगह में 33 लोगों को पूरे चार महीने तक खुद को बचाए रखना होगा. {mospagebreak}
5 अगस्त को चिली के 33 कामगार करीब आधा मील गरहाई में खदान से सोना और तांबा निकालने उतरे थे. यह उनका रोज का काम था. लेकिन, उस रोज होनी को कुछ और ही मंजूर था. जैसे ही वे 700 मीटर की गहराई में उतरे, एक भयंकर हादसा हो गया. मजदूर खदान में फंस गए. इस हादसे के 21 दिन बीत चुके हैं.
बस एक सुराख के सहारे 33 लोग किसी तरह जिंदा हैं. लेकिन, मौत से उनकी लड़ाई लंबी है. दरअसल, चिली के खदानों की खासियत है कि इनमें बने आपातकालीन शरणस्थल 20 से 40 फुट चौड़े और इतने ही ऊंचे होते हैं. आपात स्थिति के लिए यहां खाने-पीने का भी इंतजाम होता है. यही वजह है कामगार अब तक सुरक्षित हैं.
लेकिन, आपात भोजन के इंतजाम पर भला कब तक यह लोग जिंदा रह सकते हैं, लिहाजा एक सुराख के जरिए प्लास्टिक की ट्यूब में ग्लूकोज तथा अन्य तरल पदार्थ भेजा जा रहा है. ताकि फंसे हुए लोगों को जिंदा रहने के लिए पर्याप्त खुराक मिल सके. खाने के साथ इन लोगों के लिए ऑक्सीजन कैप्शूल भी भेजा गया है. लेकिन, लोगों को जिंदा रखने के लिए सिर्फ खाना ही काफी नहीं. इसके लिए पर्याप्त हवा भी चाहिए. मनोबल बनाए रखने के लिए बाहरी दुनिया से बातचीत भी चाहिए. इसके लिए दो और सुराख बनाए जा रहे हैं. एक सुराख से संवाद की व्यवस्था होगी और दूसरे से हवा की. दोनों सुराख का काम आखिरी चरण में पहुंच चुका है. {mospagebreak}
खदान में एस्प्रीन और डॉयबिटीज की दवा भी भेजी गई है क्योंकि कामगारों में डायबटीज और अस्थमा के मरीज भी हैं. बचाव की इन कोशिशों के बीच खदान के बाहर भावनाओं का समंदर भी हिलोरें ले रहा है. खाने के कैप्शूल के साथ खदानकर्मी के घरवाले उन्हें चिट्ठी भी भेज रहे हैं. अंदर से भी कामगार इसका जवाब भेज रहे हैं. इन्हीं चिट्ठियों में से एक चिट्ठी चिली के राष्ट्रपति सेबेस्टियन पिनेरा ने जब पढ़ा तो पूरा देश उम्मीद की रोशनी से झिलमिला उठा.
खदान के अंदर से आई पहली चिट्ठी में लिखा था, दिन निकलता जा रहा है. किसी का पिता खदान में बंद हैं तो किसी का पति. किसी के भाई की जान फंसी है तो किसी के प्रेमी की. चमत्कार का इंतजार कर रहा हर शख्स बेसब्री से रेस्क्यू ऑपरेशन खत्म होने का इंतजार कर रहा है.
दक्षिणी चीन में पिछले साल एक खदान से 25 दिन बाद तीन कामगारों को निकाला गया था. इससे ज्यादा दिन बाद खदान के अंदर से किसी को जिंदा निकालने जाने का कोई मामला नहीं है. गौरतलब है कि 2006 में तस्मानिया में एक सोने की खदान में फ़ंसे 16 कामगारों को 14 दिनों बाद जीवित निकाला गया था. बेहद छोटी जगह में इन कामगारों ने काफ़ी मुश्किल भरे हालात का सामना किया था. लेकिन, दिन के लिहाज से इतिहास का सबसे बड़ा खदान हादसा होने के बावजूद यहां उम्मीदें जिंदा हैं. {mospagebreak}
दरअसल, इसकी वजह यह है कि तांबा और सोना उत्पादन के मामले में चिली दुनिया का अग्रणी देश है. इस लिहाज से यहां खदानों के लिए बेहद आधुनिक उपकरण हैं. ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि ये लोग बचाए जा सकते हैं. दूसरी अहम बात यह है कि सोने और तांबे के खदान का मामला कोयला खदानों से अलग होता है.
कोयला खदान में मिथेन गैस के रिसाव की आशंका रहती है. मिथेन गैस वातावरण में फ़ैलकर वहां से ऑक्सीजन को विस्थापित कर देती है. कोयला खदानों में ब्लैक डैंप और कार्बन डाइऑक्साइड फ़ैलने का भी खतरा होता है. लेकिन, तांबे और सोने की खदानों में ऐसी समस्या नहीं होती. जाहिर है ये बातें उम्मीदें जगाती हैं. चिली के 33 परिवारों को इस वक्त उम्मीद के ऑक्सीजन की ही जरूरत है.