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ब्रह्मपुत्र पर बांध निर्माण तेज कर सकता है चीन!

ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध निर्माण के तमाम दावों और प्रतिदावों के बीच चीन यारलुंग-सांग्पो नदी परियोजना को आगे बढ़ाने में लगा हुआ है और तिब्बत स्थित गालुंग ला पहाड़ी से 2010 में सड़क मार्ग निर्माण पूरा हो जाने के बाद बांध बनाने का कार्य तेज किया जा सकता है.

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ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध निर्माण के तमाम दावों और प्रतिदावों के बीच चीन यारलुंग-सांग्पो नदी परियोजना को आगे बढ़ाने में लगा हुआ है और तिब्बत स्थित गालुंग ला पहाड़ी से 2010 में सड़क मार्ग निर्माण पूरा हो जाने के बाद बांध बनाने का कार्य तेज किया जा सकता है.

बढ़ती आबादी की जरूरतें पूरी करना चाहता है चीन
इंच्टीच्यूट ऑफ डिफेंस रिसर्च एंड एनालिसिस (आईडीएसए) ने अपने अध्ययन में कहा है कि भारतीय सीमा से महज 30 किलोमीटर दूर तिब्बत के मेदांग कस्बे में गालुंग ला पहाड़ी से सड़क निर्माण का कार्य ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन के बांध निर्माण परियोजना से जुड़ा हुआ है. आईडीएसए के विशेषज्ञ पी शतोब्दन ने कहा इस सड़क परियोजना के 2010 में पूरा हो जाने की बात कही गई है जो यारलुंग सांगपो परियोजना में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. आईडीएसए के अध्ययन के अनुसार चीन ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाने की परियोजना पर अमल करने को प्रतिबद्ध है, ताकि तेजी से बढ़ती आबादी, औद्योगिक विकास, शहरों के विस्तार और सिंचाई के लिए जल आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके.

जलवायु परिवर्तन के असर से जूझ रहा है चीन
अध्ययन में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण चीन को सूखे, रेगिस्तान के विस्तार, तूफान जैसे प्राकृतिक संकट का सामना करना पड़ रहा है और देश के उत्तरी क्षेत्र में सूखे की स्थिति गंभीर हो गई है. इस स्थिति के मद्देनजर चीन की नजर तिब्बत के जल संसाधनों पर है और वह ब्रह्मपुत्र नदी की धारा को मोड़कर समस्या का समाधान निकालना चाह रहा है. खुफिया विभाग के पूर्व अधिकारी एम के धर ने कहा, ब्रह्मपु़त्र नदी पर चीन की बांध निर्माण परियोजना से उत्तरी भारत के अलावा बांग्लादेश भी प्रभावित होगा. धर ने कहा कि हमें इस विषय पर बांग्लादेश को भी जागरूक करने की जरूरत है.

अंतरराष्ट्रीय सीमा से गुजरने वाली नदियों पर निर्माण के लिए संधि जरूरी
अंतरराष्ट्रीय सीमा से गुजरने वाली नदियों पर निर्माण कार्य के लिए संधि आवश्यक है. इस संबंध में अंतरराष्ट्रीय नियम हैं जिसके तहत पानी की हिस्सेदारी तय होती है. लेकिन दुर्भाग्य से चीन के साथ हमारा नदी जल बंटवारा समझौता नहीं है. धर ने कहा कि इस विषय पर अभी तक हम वस्तुस्थिति की ठोस जानकारी एकत्र नहीं कर पाये हैं. यह एक महत्वपूर्ण मसला है क्योंकि ग्वालपाड़ा पहाड़ी से पहले भारत में और उसके बाद बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र लोगों की जीवनरेखा है. आईडीएसए के अनुसार ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध के निर्माण का मुद्दा अंतरराष्ट्रीय सीमा से गुजरने वाली नदी से जुड़ा हुआ है लेकिन चीन ने बांध निर्माण के बारे में किसी भी पक्ष से चर्चा नहीं की.

चीन ने संयुक्‍त राष्‍ट्र की संधि का अनुमोदन भी नहीं किया
चीन ने 1997 में संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय जल संसाधनों के गैर नौवहन उपयोग संधि का भी अनुमोदन नहीं किया है. अध्ययन में 1998 में तत्कालीन चीनी राष्ट्रपति जियांग जेमिन द्वारा पेश उस मसौदे का भी उल्लेख किया गया है जिसमें इस परियोजना का विस्तृत प्रस्ताव है और 40 हजार मेगावाट क्षमता की जल विद्युत परियोजना स्‍थापित करने की बात कही गई है. इसमें चीन के पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के पूर्व अधिकारी ली लिंग की पुस्तक 'हाउ तिब्बत विल सेव चाइना' का भी जिक्र किया गया है. यह पहला मौका नहीं है जब चीन की ओर से ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाने और नदी की धारा को मोड़ने की बात सामने आई है. अलास्का में 1986 में जीआईएप के सम्मेलन में सबसे पहले इस परियोजना का जिक्र सामने आया था.

ब्रह्मपुत्र की धारा को गोबी के मरुस्‍थ्‍ल की ओर मोड़ना चाहता है चीन
बार्न इन सिन (द पंचशील एग्रीमेंट), द सैक्रीफाइस ऑफ तिब्बत पुस्तक में जून 1996 के सांइटिफिक अमेरिका पत्रिका का हवाला देते हुए कहा गया कि इस योजना के तहत ब्रह्मपुत्र नदी के मार्ग को मोड़ कर उसका रुख गोबी मरूस्थल वाले चीनी इलाके की ओर करने की संकल्पना व्यक्त की गई. लेखक क्लाऊडे आर्पी ने अपनी इस पुस्तक में कहा है कि भारतीय सीमा के पास माउंट नामचा बार्वा के पास नदी तीव्र यू टर्न लेती है. चीन की योजना यहीं से धारा को मोड़ कर बांध निर्माण की है. चीन ने हालांकि नदी की धारा मोड़ने से इनकार किया है लेकिन भारतीय रिमोट सेंसिंग एजेंसी द्वारा उपग्रह से लिये गए चित्रों में इस क्षेत्र में निर्माण से जुड़ी हलचल का पता चला है. हालांकि जल संसाधन मंत्री पवन कुमार बंसल ने कहा, वे लोग जिस बिन्दु पर बांध बना रहे हैं वह हमारी सीमा से 1100 किमी दूर है.

कई चीनी वैज्ञानिक योजना के खिलाफ
पुस्तक के अनुसार इस विषय पर बीजिंग स्थित चाइनीज अकादमी ऑफ इंजीनियरिंग फिजिक्स में चर्चा हुई थी और इसे नियंत्रित परमाणु विस्फोट के जरिये पूरा करने का सुझाव सामने आया था. इस परियोजना का उल्लेख चाइना डेली बिजनेस सप्ताहिक के सितंबर 1997 के अंक में भी आया था. चीन में कई वैज्ञानिकों ने हालांकि इस परियोजना पर प्रश्‍न खड़ा किया था. लेकिन 2000 में चीनी प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ ने घोषणा की 21वीं शताब्दी में देश के जल संसाधनों के दोहन, बाढ़ और सूखा नियंत्रण और चीन की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में बड़े बांधों का निर्माण महत्वपूर्ण भूमिका निभायेंगे.

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