चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के ड्रीम प्रोजेक्ट 'बेल्ट एंड रोड फोरम' (बीआरएफ) में भारत की गैर-मौजूदगी पर बीजिंग कोई खास खुश नहीं है. ड्रैगन की ये खीझ वहां की सरकार के इख्तियार वाली मीडिया में नजर आ रही है. चीन के अखबार ग्लोबल टाइम्स के संपादकीय लेख में कहा गया है कि मोदी सरकार ने घरेलू राजनीति के मद्देनजर बीआरएफ सम्मेलन में शिरकत नहीं की. ग्लोबल टाइम्स को चीन की कम्युनिस्ट सरकार की राय का आइना माना जाता है.
'चीन से खास तवज्जो चाहता है भारत'
ग्लोबल टाइम्स में लिखा गया है, 'भारत उम्मीद करता है कि वो आपसी रिश्तों को ज्यादा सक्रियता से शक्ल दे सकता है. वो चाहता है कि चीन उसके हितों का खास ध्यान रखे. लेकिन दो देशों के बीच बर्ताव का ये तरीका नहीं है.'
'घरेलू सियासत से तय रिश्तों की राजनीति'
संपादकीय में आगे कहा गया है, 'बीआरएफ पर भारत का ऐतराज आंशिक तौर पर घरेलू राजनीति का नतीजा है. इसकी एक वजह चीन पर दबाव की राजनीति भी है. लेकिन सम्मेलन में भारत की गैर-मौजूदगी का कोई असर नहीं पड़ा है. भारत के शामिल ना होने से इस प्रोजेक्ट के जरिये दुनिया भर में होने वाले विकास पर भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा.
'मतभेदों के साथ जीना सीखे भारत'
ग्लोबल टाइम्स ने नसीहत दी है कि अगर भारत खुद को बड़ी ताकत के तौर पर देखता है तो उसे चीन के साथ मतभेदों को स्वीकार करना चाहिए और उन्हें मैनेज करने की कोशिश करनी चाहिए. संपादकीय के मुताबिक, 'ये नामुमकिन है कि दो बड़े देश हर चीज पर राजी हों. अमेरिका और चीन के बीच के रिश्तों से ये बात साबित होती है. लेकिन मतभेदों के बावजूद दोनों देश मजबूत रिश्ते कायम रख पाए हैं. भारत को इससे सीखना चाहिए.'
'जरूरी नहीं भारत की सुने चीन'
संपादकीय में माना गया है कि भारत और चीन के संबंध इतने भी खराब नहीं हैं जितना मीडिया में बताया जाता है. अखबार की राय में दोस्ताना रिश्ते दोनों देशों के हित में हैं. लेकिन न्यूक्लियर्स सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) और मसूद अजहर जैसे मसलों पर मतभेदों को लेकर अखबार लिखता है, 'परस्पर संबंधों में ये मुश्किलें भारत की उम्मीदों से पैदा हुई हैं. लेकिन चीन भारत की मर्जी पर नहीं चलता.'