चीन ने सोमवार को कहा कि वह परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में सदस्यता के भारत के प्रयास को लेकर अपने पुराने रुख पर कायम है. चीन ने साथ ही संकेत दिया कि वह अगले महीने बर्न में होने वाले पूर्ण अधिवेशन में भारत की याचिका की राह में फिर से रोड़ा अटका सकता है.
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने सोमवार को कहा, "चीन ने एनएसजी में गैर-एनपीटी सदस्यों की भागीदारी को लेकर अपने रुख में कोई बदलाव नहीं किया है."
चीन पहले भी कर चुका है विरोध
उन्होंने कहा, "हम 2016 के पूर्ण अधिवेशन के आदेश के बाद और द्विस्तरीय दृष्टिकोण से संबंधित मुद्दों से निपटने के लिए खुली और पारदर्शी अंतर-सरकारी प्रक्रिया पर सहमति बनने के बाद एनएसजी समूह का समर्थन करते हैं."
सियोल में जून 2016 में एनएसजी के पूर्ण अधिवेशन में चीन ने समूह में सदस्यता के भारत के आवेदन का विरोध किया था. उसके बाद नवंबर में सलाहकार समूह की बैठक में फिर से चीन ने भारत के प्रयास में रोड़ा अटका दिया.
भारत की सदस्यता के समर्थन में अमेरिका
48 सदस्यीय समूह का आगामी पूर्ण अधिवेशन जून में स्विट्जरलैंड के बर्न में आयोजित किए जाने की संभावना है.
अमेरिका और समूह के अन्य देशों ने भारत की सदस्यता का समर्थन किया है, लेकिन चीन का कहना है कि भारत ने परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, इस लिहाज से उसे सदस्यता नहीं दी जा सकती.
पाकिस्तान को भी NSG की सदस्यता
बीजिंग का तर्क है कि अगर भारत को सदस्यता दी जा सकती है, तो पाकिस्तान को भी दी जानी चाहिए. वह भी एनपीटी हस्ताक्षरकर्ता नहीं है.
भारत एनपीटी को पक्षपातपूर्ण मानता है. हालांकि इस मामले में अमेरिका, स्विट्जरलैंड, मेक्सिको, इटली, रूस और ब्रिटेन भारत के समर्थन में हैं.
चीन और भारत के बीच बढ़ रहा तनाव
चीन के विरोध से दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ने की संभावना है. भारत ने हाल ही में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के विरोध में चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड पहल का बहिष्कार किया था.
सीपीईसी पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर से होकर गुजरता है, जिस पर भारत अपना दावा करता है. दलाई लामा के अरुणाचल प्रदेश दौरे से भी दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा है.