कोपेनहेगन सम्मेलन से पहले चीन ने आज भारत के इस रूख का समर्थन किया कि विकासशील देशों के लिये उत्सर्जन में कटौती के लक्ष्य बाध्यकारी नहीं हैं और कहा कि वह जलवायु परिवर्तन के ‘शिकार’ दोनों देशों के बीच ‘सहयोग और समन्वय’ को विस्तार देने को तैयार है.
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता शिन गैंग ने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘‘हम भारत के मौजूदा रूख को समझते हैं. हमें हमारी राष्ट्रीय स्थितियों और क्षमताओं के आधार पर अनुकूलन और कटौती करना होगी.’’ उन्होंने कहा कि चीन जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर भारत के साथ ‘संपर्क, समन्वय और सहयोग’ मजबूत करने को तैयार है.
गैंग ने कहा, ‘‘चीन और भारत विकासशील देश हैं और जलवायु परिवर्तन के शिकार हैं.’’ उन्होंने कहा कि दोनों पक्ष उत्सर्जन में कटौती के बाध्यकारी लक्ष्य तय करने के लिये बाध्य नहीं हैं. भारत ने उत्सर्जन में बाध्यकारी कटौती करने से इनकार कर कहा है कि ऐसा करने से उसकी आर्थिक प्रगति धीमी हो जायेगी. इसके बजाय उसने उत्सर्जन में कटौती के लिये स्वेच्छा से उठाये जाने वाले कदमों को तवज्जो दी है.
पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने कल नयी दिल्ली में कहा था कि विकासशील देशों के स्वेच्छा में उठाये गये कदम अंतरराष्ट्रीय निगरानी, रिपोर्ट और सत्यापन के दायरे में होंगे. यह सहमति बनी थी कि अंतरराष्ट्रीय मदद मिलने पर ये कदम उठाये जायेंगे. विश्व नेता सात से 18 दिसंबर के बीच कोपेनहेगन में जलवायु परिवर्तन पर बातचीत करने की तैयारी कर रहे हैं.
भारत के विपरीत चीन ने गत सप्ताह अपने लक्ष्यों की घोषणा करते हुए कहा कि वह 2005 के स्तर की तुलना में वर्ष 2020 तक सकल घरेलू उत्पाद की प्रति इकाई में उत्सर्जन में 40 से 45 फीसदी तक की कटौती कर लेगा. गैंग की यह टिप्पणी चीन, भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका के बीच बीजिंग में गत नवंबर हुई बैठक के बाद आयी है जिसमें कोपेनहेगन सम्मेलन में सहयोग करने और एक साझा रूख बनाने का फैसला किया गया था.
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि जलवायु परिवर्तन पश्चिम के विकसित देशों के औद्योगीकरण के बड़े पैमाने पर उत्सर्जन के कारण हुआ है. उन्होंने कहा, ‘‘लिहाजा, चीन और अन्य विकसित देशों के बीच हित, चिंताएं, अपीलें साझा हैं और जलवायु परिवर्तन पर उनका रूख समान है.’’