पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश चीन में दिए गए विवादास्पद बयान के लिए जहां भारत में फटकार पड़ी है, वहीं चीनी मीडिया उनके समर्थन में खड़ा हो गया है और भारत में चीन के निवेश की राह में ‘अनावश्यक बाधाएं’ समाप्त करने की वकालत की है.
रमेश के रुख को ‘सूझबूझ भरा’ बताते अखबार ‘चाइना डेली’ ने अपने संपादकीय में लिखा है कि भारत को चीन के साथ व्यापारिक संबंधों को व्यापक संदर्भों में देखा जाना चाहिए. अखबार ने दोनों पड़ोसी देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापारिक संबंधों में आ रही बाधाओं को दूर करने पर बल दिया है. चीनी मीडिया ने भारत के पर्यावरण मंत्री के व्यापार और निवेश पर सुझाव का स्वागत किया है, पर ब्रह्मपुत्र के पानी को मोड़ने के संबंध में उनकी टिप्पणी को खारिज कर दिया है.
चाइना डेली अखबार की टिप्पणियों को आम तौर पर चीन सरकार का ही विचार माना जाता है. अखबार की राय में भारत को चाहिए कि वह चीन को एक भरोसेमंद सहयोगी के तौर पर देखे न कि संभावित प्रतिद्वंद्वी के रूप में नहीं. अखबार ने कहा, ‘मजबूत आर्थिक और व्यापारिक संबंधों के लिए उच्चस्तर का राजनीतिक विश्वास जरूरी है.’
रमेश ने बीजिंग में भारतीय मीडिया के साथ बातचीत में गृह मंत्रालय द्वारा चीन के साथ व्यापार और निवेश के मामलों में कथित रूप से अनावश्यक बाधाएं खड़ी किए जाने की आलोचना की थी. उनके इस बयान पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने रमेश को फटकार लगाई थी. {mospagebreak}
चीन में सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी के आधिकारिक मुखपत्र पीपुल्स डेली के सहायक अखबार ग्लोबल टाइम्स ने अपने पूरे लेख को रमेश के ब्रह्मपुत्र नदी के पानी के बयान पर केंद्रित रखा है. इस लेख का शीषर्क है- ‘भारत ने साझी नदी पर चीन की परियोजनाओं के विरुद्ध सवाल उठाया’. अखबार ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों का अध्ययन करने वाले चीन के एक संस्थान इंस्टिच्यूट आफ कंटेम्पोरेरी इंटरनेशनल रिलेशन्स के एक अनुसंधानकर्ता मा जियाली के हवाले से कहा है कि जल विवाद हल करने के लिए दोनों देशों के बीच सीमा विवाद का समाधान आवश्यक है. इस अनुसंधानकर्ता ने कहा कि यालरुंग जांगबो (ब्रह्मपुत्र) का पानी मोड़ने की चीन की कोई योजना नहीं है पर अंतरराष्ट्रीय जलधाराओं को लेकर भारत सरकार की आशंकाओं को भारतीय मीडिया बढाचढा कर पेश करता रहा है.
चाइना डेली ने अपने संपादकीय में लिखा है कि भारत और चीन को अपनी व्यापार संबंधी अड़चनों को सलीके से सुलझाना चाहिए. संपादकीय में कहा गया है कि भारत द्वारा सुरक्षा जोखिमों की वजह से चीन से दूरसंचार उपकरणों का आयात रोकने के बाद दोनों देशों के व्यापारिक रिश्ते खराब हुए हैं.