चीनी प्रोपगेंडा मशीनरी ने एक तीर से दो निशाने लगाने की कोशिश की. एक तो चीन के लोगों को भरोसा दिया जाए कि चीन का हाथ ऊपर है, और दूसरा भारतीय लोगों को भ्रमित किया जाए.
भारतीय मीडिया को इतनी आसानी से नहीं लिया जा सकता, ये जानते हुए कि प्रोपगेंडा कैसे काम करता है. भारतीय लोगों के मन में डर बैठाने की कोशिश से जुड़ी चीनी रणनीति को कहीं से कोई भाव नहीं मिलने वाला.
इंडिया टुडे ने पुल बिछाने की प्रक्रिया वाली तस्वीर को जियो-लोकेट किया. सैटेलाइट तस्वीर की डिटेल से पाया कि ये पुल बिछाने की प्रक्रिया शांति-काल में की गई है.
तिब्बत मिलिट्री डिस्ट्रिक्ट की 15 इंजीनियरिंग रेजिमेंट
पुल बिछाने वाली यूनिट साफ तौर पर चीनी सेना की 85वीं इंजीनियरिंग ब्रिगेड की 15 इंजीनियरिंग रेजिमेंट है. ये ब्रिगेड तिब्बत मिलिट्री डिस्ट्रिक्ट के तहत आती है. पिछले तीन महीनों की सैटेलाइट तस्वीरों से पता चलता है कि यह यूनिट ल्हासा के पास ब्रह्मपुत्र नदी के साथ अपने निर्धारित ट्रेनिंग एरिया में है. ये ल्हासा-शिगात्से सड़क के साथ है. ये यूनिट वहां कम से कम 19 अप्रैल, 2020 से आज तक मौजूद है.
ये यूनिट ल्हासा आने के बाद से इस विशेष क्षेत्र में पुलों के बिछाने का काम कर रही है. इस प्रैक्टिस के दौरान कुछ भी नया या असाधारण नहीं ऑब्जर्व किया गया.
चाइना मिलिट्री ऑनलाइन साइट के मुताबिक ऐसी ही ड्रिल पहले भी, संभवत: 22 मई, 2020 को की गई थी.
सैटेलाइट तस्वीरों से खुली चीनी दावे की पोल
इसी निर्धारित ट्रेनिंग एरिया में सेंटिनेल के ओपन सोर्स की ओर से 8 जून 2020 की सैटेलाइट तस्वीरों में पॉन्टून पुल बिछाए जाने की प्रक्रिया को कैप्चर किया गया.
180 मीटर के पुल को नदी पर पांच रिग्स की मदद से बिछाते देखा गया. इन रिग्स को ट्रकों की मदद से नदी के किनारे तक पहुंचाते और पानी में खिसकाते देखा जा सकता है.
सैटेलाइट तस्वीर से संकेत मिलता है कि बड़ी संख्या मे सपोर्ट वाहन लगभग 1-2 किलोमीटर दूरी पर पार्क किए गए. बैंड्स 8, 4 और 3 का कॉम्बिनेशन कम रेजोल्यूशन पर भी पुल को बहुत साफ इंगित करता है.
हालांकि इससे पहले 3 जून और बाद में 13 जून की सैटेलाइट तस्वीरों में पुल नजर नहीं आता. इसके मायने हैं कि संभवत: पुल को उसी दिन नष्ट भी कर दिया गया.
ऐतिहासिक तस्वीरें
ऐतिहासिक (पुरानी) तस्वीरों के अध्ययन के लिए, समान साइट का कम से कम पिछले 20 वर्षों से लगातार इस्तेमाल किया जा रहा है.
बुनियादी जमीनी काम (Earth Work) की तैयारियां की जाती हैं और वो करीब करीब हमेशा एक जैसी ही रहती हैं. ये अर्थ वर्क लंबा वक्त लेता है और भारी पुल के लोड्स को ले जाने वाले ट्रकों को सुरक्षित नदी तक ले जाने के लिए जरूरी होता है.
संघर्ष के दौरान पुल बिछाना पूरी तरह से अलग ही मामला हो जाता है, जब दूसरे पक्ष की हर वक्त नजर रहती है.
PLA की ओर से घरेलू स्तर को टारगेट करके, छाती थपथपाने की कवायद वहां शायद देशप्रेम की भावना बढ़ा सकती हैं लेकिन ऐसी स्पष्ट क्षमता जाहिर नहीं करती जो भारतीय मीडिया को किसी भी सूरत में प्रभावित कर सके.
(कर्नल विनायक भट (रिटायर्ड) इंडिया टुडे के कंसल्टेंट हैं, वे सैटेलाइट तस्वीरों के विश्लेषक हैं और उन्होंने 33 वर्ष तक भारतीय सेना में सेवा की)