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अब चीनी सैनिकों ने लद्दाख में भारतीय जलक्षेत्र में घुसपैठ की कोशिश की

लद्दाख में सड़क रास्ते से घुसपैठ की कोशिशों के बाद अब चीन के सैनिकों ने खबरों के मुताबिक शुक्रवार को लद्दाख के ऊंचे इलाकों में स्थित पांगोंग झील के जरिए भारतीय जलक्षेत्र में घुसने की कई कोशिशें कीं.

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लद्दाख में सड़क रास्ते से घुसपैठ की कोशिशों के बाद अब चीन के सैनिकों ने खबरों के मुताबिक शुक्रवार को लद्दाख के ऊंचे इलाकों में स्थित पांगोंग झील के जरिए भारतीय जलक्षेत्र में घुसने की कई कोशिशें कीं. सरकारी एजेंसियों तक पहुंच रहीं खबरों के अनुसार गत 27 जून को झील क्षेत्र में सेना का चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के साथ आमना-सामना हुआ जहां चीनी जवानों ने भारतीय जलक्षेत्र में घुसने का प्रयास किया.

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उधमपुर स्थित सेना की उत्तरी कमान के प्रवक्ता कर्नल एस गोस्वामी ने घुसपैठ के ताजा प्रयासों के बारे में पूछे जाने पर कोई जवाब नहीं दिया और सेना के जनसंपर्क अधिकारी से इस बाबत संपर्क करने को कहा. हालांकि जब इस ओर इशारा किया गया कि वह सेना के प्रवक्ता हैं तो उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया.

जब संवाददाताओं ने शनिवार को विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता से लद्दाख क्षेत्र में चीनी सैनिकों की तरफ से घुसपैठ की ताजा घटनाओं के बारे में पूछा तो उन्होंने केवल इतना कहा कि देश की सीमा की रक्षा कर रहे भारतीय जवान सीमा पर किसी भी घटना की स्थिति में उचित कार्रवाई करने में सक्षम होंगे.

घटनाक्रम के जानकार सूत्रों के अनुसार चीनी सैनिकों को झील में काल्पनिक रेखा पर रोक लिया गया जिसे वास्तविक नियंत्रण रेखा माना जाता है. सेना से आमना-सामना होने के बाद चीनी सैनिकों को वापस भेज दिया गया. इस दौरान दोनों पक्षों के सैनिकों ने बैनर लहराकर क्षेत्र पर अपने कब्जे का दावा किया.

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सूत्रों ने बताया कि पूर्वी लद्दाख और लेह से 168 किलोमीटर दूर स्थित पांगोंग झील के उत्तरी किनारे की तरफ से घुसपैठ की कोशिशें हुईं. चीन के जवान इस झील के उत्तरी और दक्षिणी किनारों से लगातार आते रहते हैं. झील का 45 किलोमीटर क्षेत्र भारत की तरफ पड़ता है और शेष 90 किलोमीटर चीन की तरफ पड़ता है. हालांकि नई नौकाओं से युक्त सेना के जवानों ने चीन की हर कोशिश को नाकाम कर दिया. अमेरिका से खरीदी गयीं तेज गति वाली नौकाओं पर करीब 15 जवान सवार हो सकते हैं और ये राडार, इंफ्रारेड तकनीक और जीपीएस प्रणाली से युक्त होती हैं.

इन नौकाओं को चीनी पोतों की तरह ही अच्छा बताया जाता है और इनका इस्तेमाल इलाके की टोह लेने और गश्त करने के लिए किया जाता है.

सूत्रों ने कहा कि चीन की गश्ती नौकाओं को किनारों से पीएलए के जवानों ने मदद दी और उनका यह कदम जाहिर तौर पर इलाके में तैनात भारतीय जवानों पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने के लिए उठाया गया था. झील के किनारों पर स्थिति हमेशा ही अस्थिर रही है और पिछले साल मई में दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) के डेपसांग मैदानी क्षेत्रों में तीन सप्ताह तक चले गतिरोध के बाद भारतीय सेना के जवानों ने कई बार चीन के सैनिकों को रोका है. सूत्रों ने बताया कि जिन क्षेत्रों में लगातार टकराव की स्थिति पैदा होती है उसे सीरी जाप कहा जाता है जिसमें फिंगर-8 इलाका भी शामिल है. चीन ने फिंगर-4 इलाके तक सड़क का निर्माण कर लिया है. यह क्षेत्र भी सीरी जाप में आता है और एलएसी के 5 किलोमीटर अंदर है. चीन अपने नक्शे में यह क्षेत्र अपना होने का दावा करता है वहीं भारतीय सेना इसे लद्दाख का हिस्सा होने का दावा करती रही है.

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