पूर्व गृह राज्य मंत्री स्वामी चिन्मयानंद पर लगे यौन उत्पीड़न मामले में 8 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी. दरअसल याचिकाकर्ता छात्रा ने हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.
सोमवार को याचिकाकर्ता क़ानून की छात्रा की ओर से पेश वकील ने कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट इस मामले में 11 दिसंबर को सुनवाई करेगा. जिसमें कोर्ट एक अन्य FIR दर्ज़ करने के आदेश पर विचार करेगा. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई 8 जनवरी तक के लिए स्थगित कर दिया है.
बता दें कि पीड़िता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा है कि सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज बयान की प्रमाणित प्रति चिन्मयानंद को देने का आदेश देकर हाई कोर्ट गलती की है.
अपनी याचिका में, छात्रा ने कहा है कि आरोप पत्र दाखिल करने से पहले पीड़िता के बयान की एक प्रति देने का हाई कोर्ट का आदेश कानून के विपरीत था और इसके दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं.
दरअसल, हाई कोर्ट ने सात नवंबर को निचली अदालत को आदेश दिया था कि वह पूर्व केंद्रीय मंत्री को महिला के बयान की प्रति मुहैया कराए, जिसमें उसने चिन्मयानंद पर दुष्कर्म के आरोप लगाए थे.
जिसके बाद 17 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी.
जाहिर है छात्रा ने चिन्यमयानंद के खिलाफ यौन उत्पीड़न और दुष्कर्म के आरोप लगाए हैं. कानून की छात्रा का बयान आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 164 के तहत दर्ज किया गया था.
रिपोर्ट के अनुसार, न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति विनीत सरन ने नोटिस जारी कर उत्तर प्रदेश सरकार और चिन्मयानंद से कानून की छात्रा की याचिका पर जवाब मांगा था.
क्या है मामाला?
चिन्मयानंद के संस्थान में पढ़ने वाली कानून की एक छात्रा ने उन पर यौन शोषण का आरोप लगाया है. शाहजहांपुर की कानून की छात्रा ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के सात नवंबर के उस आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत में अपील दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि चिन्मयानंद धारा 164 सीआरपीसी के तहत दर्ज पीड़िता के बयान की प्रमाणित प्रति पाने का हकदार था.
अपनी याचिका में, छात्रा ने कहा है कि आरोप पत्र दाखिल करने से पहले पीड़िता के बयान की एक प्रति देने का हाई कोर्ट का आदेश कानून के विपरीत था और इसके दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं.
याचिका में कहा गया है कि धारा 164 सीआरपीसी के तहत पीड़िता के बयान की प्रति प्राप्त करने के लिए एक पूर्व शर्त यह है कि आरोप पत्र दायर किया गया हो और मजिस्ट्रेट द्वारा उसे संज्ञान में ले लिया गया हो.