केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में नागरिकता संशोधन बिल पर कहा कि इसका मकसद पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यकों को संकट की स्थिति से निकालना है. उन्होंने कहा कि संयुक्त जांच समिति (जेपीसी) ने इस बिल के संबंध में अपनी रिपोर्ट पेश कर दी है. जेपीसी ने विभिन्न स्टेक हॉल्डर्स के साथ बैठक कर अपनी रिपोर्ट सौंपी है. उन्होंने कहा कि पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों को संकट की स्थिति से निकालना और उनके हितों की रक्षा करना इस बिल का मकसद है, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में अल्संख्यक समुदाय के अधिकारों की रक्षा की जा सकती है. सरकार ने इन समुदायों के लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए पहले ही आदेश जारी कर दिए थे.
वहीं शिवसेना के सांसद अरविंद सावंत ने कहा कि हमारे ही खून के लोगों का उत्पीड़न हो रहा है और अब किस हद तक यह उत्पीड़न हो रहा है इसका भी पता लगाना चाहिए. उन्होंने कहा कि हमें इन धर्म के लोगों की रक्षा करनी चाहिए और अगर ऐसा भी नहीं कर पाए तो क्या फायदा. सावंत ने कहा कि असम के लोगों को भी आश्वस्त करना होगा और उनकी चिताएं दूर करनी पड़ेंगी क्योंकि असम के लोगों को अपने अधिकार छिनने का डर है.
बीजेडी के सांसद भर्तृहरि महताब ने कहा कि जेपीसी में इस बिल पर सहमति बनाने की कोशिश की गई. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को नागरिकता देने की बात 2009 में बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में की थी. लेकिन तब यूपीए की सरकार वापस सत्ता में आ गई. महताब ने कहा कि पड़ोसी देशों के हिन्दू और बौद्ध अल्पसंख्यकों के पास कोई विकल्प नहीं है जबकि ईसाई समुदाय के लोगों के लिए विकल्प है. भर्तृहरि महताब ने कहा कि नागरिकता देने में संविधान धार्मिक आधार पर किसी भी तरह का भेदभाव नहीं करता. बिल में शरणार्थी, प्रवासी शब्द का कहीं इस्तेमाल नहीं किया गया, लेकिन शरणार्थी देश के लिए समस्या हैं क्योंकि वह हमारा हक मार रहे हैं.
सौगत राय ने कहा कि इस बिल में हिन्दू, पारसी, बौद्ध, सिख का जिक्र है, इसके धर्मनिरपेक्ष बनाने की जरूरत है. हमारी मांग थी कि बांग्लादेश शरणार्थियों को इस बिल में शामिल न किया जाए लेकिन कमेटी ने हमारी मांग को ठुकरा दिया. बिल में सिर्फ पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान का नाम क्यों है. इसमें नेपाल और श्रीलंका का भी नाम हो क्योंकि अन्य मुल्कों से आने वाले हर धर्म के लोगों को अपने देश में पनाह देनी चाहिए.
क्या है नागरिकता विधेयक में
नागरिकता विधेयक 1955 में संशोधन करने के लिए नागरिकता विधेयक 2016 को लोकसभा में पेश किया गया है. संशोधित विधेयक पारित होने के बाद, बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से धार्मिक अत्याचार की वजह से भागकर 31 दिसंबर 2014 तक भारत में प्रवेश करने वाले हिन्दू, सिख, बौद्ध जैन, पारसी और ईसाई धर्म के लोगों को नागरिकता प्रदान करेगा.
क्यों हो रहा है विरोध
असम में बीजेपी की गठबंधन पार्टी असम गण परिषद बिल को स्वदेशी समुदाय के लोगों के सांस्कृतिक और भाषाई पहचान के खिलाफ बता रहा है. कृषक मुक्ति संग्राम समिति एनजीओ और ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन भी इस बिल के विरोध में सामने आए हैं. विपक्षी दल कांग्रेस और ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट ने भी किसी शख्स को धर्म के आधार पर नागरिकता देने का विरोध किया है.