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सिटिजनशिप बिल से धुले NRC के फायदे, पूर्वोत्तर में घिरी मोदी सरकार

राज्यसभा में लंबित नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 का विरोध कर रहे पूर्वोत्तर के क्षेत्रीय दलों की चिंता है कि यह बिल NRC द्वारा चिंहित अवैध रूप से रह रहे लोगों के अपडेट को शून्य कर देगा.

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पूर्वोत्तर के क्षेत्रीय दलों की बैठक (फोटो-ट्विटर)
पूर्वोत्तर के क्षेत्रीय दलों की बैठक (फोटो-ट्विटर)

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असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) को लेकर केंद्र में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के पक्ष में खास तौर पर पूर्वोत्तर के राज्यों में जो माहौल बना था, वो नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 के विरोध की आंच में खत्म होता दिख रहा है. देश में होने वाले आगामी चुनाव में नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (NEDA) के सहारे चुनावी नैया पार कराने की योजना बना रही बीजेपी के लिए यह विधेयक गले की हड्डी बनता जा रहा है. क्योंकि बिहार में बीजेपी की सहयोगी जेडीयू समेत पूर्वोत्तर के घटक दल इस बिल का एक स्वर में विरोध कर रहे हैं.

नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 को लेकर मंगलवार को गुवाहाटी में हुई बैठक में पूर्वोत्तर के 11 राजनीतिक दलों ने एकमत से इस बिल का विरोध किया है. इससे पहले असम में बीजेपी की अहम सहयोगी असम गण परिषद (AGP) पहले ही अपना समर्थन वापस ले चुकी है. विधेयक के विरोध में हुई इस बैठक में मेघालय के मुख्यमंत्री और नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP) के अध्यक्ष कोनराड संगमा और मिजोरम में मुख्यमंत्री और मिजो नेशनल फ्रंट (MNF) के नेता जोरमथांगा ने हिस्सा लिया. इनके अलावा इस बैठक में जेडीयू ने केसी त्यागी समेत नागालैंड की नेशनल डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (NDPP), त्रिपुरा की इंडीजीनस पिपुल्स फ्रंड ऑफ त्रिपुरा (IPFT), सिक्किम की सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट (SDF), के अलावा अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मणिपुर से NPP के नेता शामिल हुए.

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इन नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिलकर नागरिकता संशोधन विधेयक पर अपना विरोध दर्ज कराने की बात कही. इसके अलावा जेडीयू नेता केसी त्यागी ने कहा कि एनडीए की अन्य सहयोगी शिवसेना और आकाली दल भी इस विधेयक के खिलाफ हैं. यदि कांग्रेस राज्यसभा में इस विधेयक के विरोध में वोट करती है तो यह पास नहीं होगा.

बीजेपी के लिए भावनात्मक मुद्दा

गौरतलब है कि असम में NRC की मसौदा सूची जारी होने के बाद अवैध घुसपैठियों की समस्या से जूझ रहे पूर्वोत्तर के तमाम राज्यों द्वारा उनके राज्य में NRC लागू करने की मांग होने लगी थी. केंद्र की बीजेपी सरकार के इस कदम को जबरदस्त समर्थन हासिल हुआ. दरअसल बांग्लादेश से आए मुस्लिम घुसपैठियों को देश की सुरक्षा के लिए खतरा बता कर बीजेपी इस मुद्दे को भावनात्मक रूप देती रही है. वहीं बीजेपी ने इन चुनावों में पड़ोसी देशों में उत्पीड़न का शिकार होकर भारत आने वाले हिंदू शरणार्थियों को नागरिकता देने अपने घोषणापत्र में किया था. पूर्वोत्तर में लोकसभा की 25 सीटें आती हैं, जिसपर बीजेपी का खास फोकस है. दरअसल बीजेपी उत्तर और पश्चिम भारत में होने वाले संभावित नुकसान की भरपाई इन सीटों से करना चाहती है. लेकिन बीजेपी के इस प्लान को धक्का लग सकता है क्योंकि नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध कर रहे अधिकतर क्षेत्रीय दल अपने-अपने राज्यों में बीजेपी के साथ मिलकर सरकार चला रहे हैं.

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नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 क्या कहता है?

दरअसल, नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 के माध्यम से सरकार अवैध घुसपैठियों की परिभाषा फिर से गढ़ना चाहती है. इसके जरिए नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन कर पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई समुदाय के अवैध घुसपैठियों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है. हालांकि इस विधेयक में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में उत्पीड़न का शिकार मुस्लिम अल्पसंख्यकों (शिया और अहमदिया) को नागरिकता देने का प्रावधान नहीं है. इसके आलावा इस विधेयक में 11 साल तक लगातार भारत में रहने की शर्त को कम करते हुए 6 साल करने का भी प्रावधान है.  

नागरिकता अधिनियम, 1955 के मुताबिक वैध पासपोर्ट के बिना या फर्जी दस्तावेज के जरिए भारत में घुसने वाले लोग अवैध घुसपैठिए की श्रेणी में आते हैं.

पूर्वोत्तर में क्यों हो रहा है विरोध?

जहां नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 गैर मुस्लिमों को भारतीय नागरिकता देने की बात करता है, NRC के मामले में ऐसा नहीं है. NRC के तहत 24, मार्च 1971 से भारत में अवैध रूप से रह रहे सभी धर्म के लोगों को चिंहित कर इन्हें वापस भेजने की बात है. इस लिहाज से यह नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016, NRC के सिद्धांत को उलट देता है, क्योंकि यह सभी गैर-मुस्लिमों को नागरिकता देने के उद्देश्य से लाया गया है. पूर्वोत्तर में एनडीए के सहयोगी इस विधेयक का विरोध इस लिए कर रहे हैं क्योंकि वे इसे अपनी सांस्कृतिक, सामाजिक और भाषाई पहचान के साथ खिलवाड़ समझते हैं. जिसके लिए ये दल निरंतर संघर्ष करते आए हैं.

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इन दलों की दूसरी बड़ी चिंता यह भी है कि नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 लागू होने से NRC के तहत चिन्हित अवैध शरणार्थी या घुसपैठिओ संबंधी अपडेट कोई मायने नहीं रखेंगे. तीसरा बड़ा मुद्दा यहा है कि यह विधेयक धर्म के आधार पर नागरिकता प्रदान करने की बात करता है. जबकि NRC में एक निश्चित समय सीमा के बाद से भारत में अवैध तौर पर रह रहे सभी अवैध घुसपैठियों की पहचान कर वापस भेजने की बात है.

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