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IAS परीक्षा के स्वरूप को लेकर छात्रों का प्रदर्शन

देश की प्रतिष्ठित सिविल सेवा परीक्षाओं में आईआईटी, आईआईएम और मेडिकल फेक्ल्टी के छात्रों के बढ़ते दबदबे तथा परीक्षा में अंग्रेजी को तरजीह देने के विरोध में बुधवार को काफी संख्या में छात्रों ने राष्ट्रीय राजधानी में विभिन्न स्थानों पर प्रदर्शन किया.

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देश की प्रतिष्ठित सिविल सेवा परीक्षाओं में आईआईटी, आईआईएम और मेडिकल फेक्ल्टी के छात्रों के बढ़ते दबदबे तथा परीक्षा में अंग्रेजी को तरजीह देने के विरोध में बुधवार को काफी संख्या में छात्रों ने राष्ट्रीय राजधानी में विभिन्न स्थानों पर प्रदर्शन किया. आंदोलनकारी छात्र प्रधानमंत्री आवास के सामने प्रदर्शन करके नरेंद्र मोदी को ज्ञापन देना चाहते थे, लेकिन उन्हें रेसकोर्स मेट्रो स्टेशन के पास रोक लिया गया. बाद में केंद्रीय मंत्री वेंकैया नायडू ने प्रदर्शनकारी छात्रों से मुलाकात की और इस विषय को आगे बढ़ाने का भरोसा दिया.

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प्रदर्शनकारियों ने कहा कि सिविल सेवा परीक्षा का प्रारूप ऐसा बना दिया गया है, जिससे ग्रामीण पृष्ठभूमि के छात्रों के लिए काफी कठिन हालात पैदा हो गई है. परीक्षा के सीसैट पत्र का प्रारूप हमारी चिंता का अहम विषय है. उन्होंने परीक्षा के प्रारूप को समावेशी बनाने की मांग की. उन्होंने कहा कि हमने इस विषय पर सरकार का ध्यान आकषिर्त करने के लिए विभिन्न स्थानों पर विरोध प्रदर्शन किए हैं.

सुबह आठ बजे से ही प्रदर्शन की तैयारी कर रहे छात्र विभिन्न स्थानों पर एकत्र हुए. उल्लेखनीय है कि 2013 की सिविल सेवा परीक्षा के परिणाम में शीर्ष 25 स्थान प्राप्त करने वालों में 24 अंग्रेजी मीडियम से परीक्षा देने वाले हैं. इसमें 9 इंजीनियरिंग, 3 मेडिकल और 4 विज्ञान फेकल्टी से हैं. इस प्रतिष्ठित परीक्षा में हिन्दी और ग्रामीण पृष्ठभूमि के छात्रों की उपेक्षा किए जाने का आरोप लगाते हुए पिछले कुछ समय से छात्र विभिन्न मंचों पर यह मांग उठाते रहे हैं.

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पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह का कहना है कि आईआईटी, आईआईएम, मेडिकल कॉलेजों में पढ़ाई करने वाले छात्रों के सिविल सेवा परीक्षा में बैठने से मानविकी एवं ग्रामीण पृष्ठभूमि के छात्रों की संभावना काफी प्रभावित हो रही है. इस परीक्षा में अंग्रेजी के महत्व को बढ़ाए जाने से भी ग्रामीण पृष्ठभूमि के छात्र पीछे छूट रहे हैं.

पूर्व सांसद शिवानंद तिवारी के अनुसार आईआईटी, आईआईएम, चिकित्सा संस्थाओं में छात्रों को पढ़ाने पर सरकार का लाखों रुपया खर्च होता है. सरकार की ओर से ऐसे क्षेत्र में विशेषज्ञ तैयार करने के लिए इतनी अधिक धनराशि खर्च करने के बाद उनका, इन्हें छोड़कर प्रशासनिक क्षेत्र में जाना देश के लिए अच्छी बात नहीं है.

इस विषय पर विरोध प्रदर्शन करने वाले छात्रों का कहना है कि प्रारंभिक परीक्षा का स्वरूप इस तरह से बदल गया है कि इस परीक्षा में पूरी तरह से इंजीनियरिंग के छात्रों का दबदबा हो गया है. प्रश्न इस तरह से तैयार नहीं हो रहे हैं जो व्यक्ति की प्रशासनिक क्षमता का आकलन कर सकें. इसके अलावा हिन्दी के प्रश्न पत्रों में अनुवाद संबंधी गलतियां भी सामने आ रही हैं.

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