न्यायपालिका में शीर्ष स्तर के न्यायाधीशों की नियुक्तियों के लिए आयोग गठित करने का रास्ता साफ किए जाने के बाद न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर छिड़ी बहस के बीच सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएम लोढ़ा ने शुक्रवार को कहा कि कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका में बैठे लोगों को एक-दूसरे के कार्य क्षेत्रों का अतिक्रमण नहीं करना चाहिए और उन्हें अपने निर्धारित क्षेत्र की सीमा में ही काम करना चाहिए.
देश के 68वें स्वतंत्रता दिवस पर सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की ओर से आयोजित समारोह में प्रधान न्यायाधीश ने कहा, 'मुझे भरोसा है कि न्यायपालिका, कार्यपालिका तथा संसद में बैठे लोग एक-दूसरे के प्रति सम्मान रखेंगे और उन्हें उनके निर्धारित कार्य क्षेत्र के अंतर्गत बिना किसी बाधा के काम करने देंगे.'
इससे पहले केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने वैधानिक समूह की इन आलोचनाओं पर कि सरकार ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक पारित करने से पहले उनसे मशविरा नहीं किया, कहा कि सरकार और उनकी नजर में न्यायपालिक की स्वतंत्रता पूर्ण है.
उन्होंने कहा कि उनके लिए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय मंत्रियों- अरुण जेटली और सुषमा स्वराज, जिन्होंने 1970 के दशक में आपातकाल के काले दिनों में लोकतंत्र बहाली के लिए लड़ाई लड़ी थी, के लिए 'न्यायपालिका की स्वतंत्रता विश्वास का मुद्दा है, जिसके लिए हमने संघर्ष किया है.'
विधेयक पारित कराने की जल्दबाजी पर हैरत जताते हुए सुप्रीम कोर्ट बार काउंसिल के उपाध्यक्ष वी. शेखर ने इस तथ्य पर नाराजगी जाहिर की कि संसद में न्यायिक नियुक्ति विधेयक रखने से पहले वैधानिक बिरादरी और वकीलों से मशविरा करना भी मुनासिब नहीं समझा गया.
यह कहते हुए कि विधेयक को अदालत की चुनौतियों से निपटने वाला होना चाहिए था, शेखर ने कहा, 'न्यायिक नियुक्ति पर नया विधेयक तैयार करते हुए हम भागीदारों को कभी भी पूछा नहीं गया.'
उन्होंने कहा, 'जिस तरह से विधेयक को लाया गया, वह चिंता का विषय है. आसमान नहीं टूटना चाहिए था, यहां तक कि अभी भी देरी नहीं हुई है.'
महान्यायवादी मुकुल रोहतगी ने इस मुद्दे को हल्का करने का प्रयास किया. उन्होंने कहा कि हमें कुछ विधेयकों के पारित होने या नहीं होने को लेकर हाय-तौबा नहीं मचाना चाहिए.
रोहतगी ने कहा कि विधि पेशा जड़तावाद का शिकार हो गया है और उन्हें ऐसा कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं हो रही है. उन्होंने कहा कि इस जड़ता को समाप्त करने के लिए सभी तरह के प्रयास आजमाए जाने की जरूरत है.
अपने संबोधन में प्रधान न्यायाधीश ने अधीनस्थ न्यायपालिका में नियुक्ति, सतही जांच, कमजोर सबूत और ढीले अभियोजन के कारण बड़ी संख्या में आरोपियों के बरी हो जाने पर सरकार को आइना दिखाने की कोशिश की.