अधिकतर ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के लिए धनी राष्ट्रों को आड़े हाथों लेते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बुधवार को स्वच्छ उर्जा की वकालत की और कहा कि बाजार ताकतें अकेले इसका वित्त पोषण नहीं कर पायेंगी.
स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में भारत की ओर से उठाए गए कदमों का जिक्र करते हुए मनमोहन सिंह ने कहा, 'हम सौर तथा पवन ऊर्जा जैसे गैर-परंपरागत स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों के दोहन और बायो मास से भी ऊर्जा के लिए कदम उठा रहे हैं. वर्ष 2017 तक देश की नवीनीकरण ऊर्जा क्षमता बढ़ाकर 55,000 मेगावाट करनी है,जो 2012 में 25,000 मेगावाट थी.'
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जलवायु परिवर्तन से संबंधित समझौता वार्ता की धीमी प्रक्रिया पर चिंता जताते हुए बुधवार को कहा कि वैश्विक तापमान एक मान्य स्तर पर लाने का लक्ष्य कहीं नजर नहीं आ रहा. चौथे स्वच्छ ऊर्जा मंत्री स्तरीय सम्मेलन के उद्घाटन अवसर पर प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि विभिन्न देशों को स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाने चाहिए. भारत समग्र व टिकाऊ विकास के लिए कार्बन उर्त्सन कम करने की रणनीति बनाने के महत्व को समझता है और वर्ष 2017 तक अपनी नवीनीकरण ऊर्जा की क्षमता बढ़ाकर दोगुनी कर लेगा.
प्रधानमंत्री ने कहा, 'समानता के किसी भी सिद्धांत के आधार पर औद्योगिक रूप से विकसित देशों को अधिक बोझ उठाना चाहिए. ग्रीनहाउस गैस के अत्यधिक उत्सर्जन के लिए ये देश ऐतिहासिक रूप से जिम्मेदार हैं और इसलिए उन्हें बड़ी जिम्मेदारी भी निभानी चाहिए.'
उन्होंने कहा, 'जलवायु परिवर्तन के तहत संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में होने वाली विभिन्न चर्चाओं में इन मुद्दों पर जोर दिया गया. लेकिन इस दिशा में अब तक हुई धीमी प्रगति दुखद है. वैश्विक तापमान को एक मान्य स्तर पर लाने का लक्ष्य कहीं नजर नहीं आता.'
प्रधानमंत्री ने विभिन्न देशों से टिकाऊ विकास के लिए प्रयास करने का आह्वान किया. उन्होंने कहा, 'विभिन्न देशों के बीच बातचीत एवं चर्चा की आवश्यकता है, ताकि इससे संबंधित सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जा सके, सहयोग की संभावनाओं के क्षेत्र तलाशे जा सकें और एक-दूसरे की समस्याओं से अनुभव लिए जा सकें.'
प्रधानमंत्री ने कहा कि नवीन ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता बढ़ाने के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा इनका परंपरागत ऊर्जा के मुकाबले अधिक खर्चीला होना है, लेकिन इनकी कीमत कम होने की उम्मीद है. उन्होंने कहा, "उदाहरण के लिए, सौर ऊर्जा की कीमत पिछले दो साल में घटकर आधी हो गई है, हालांकि आज भी इसकी कीमत जीवाश्म ईंधन पर आधारित बिजली के मुकाबले अधिक है. यदि कार्बन उत्सर्जन का प्रभाव कम करने के लिए चलाई जा रही योजनाओं पर होने वाले खर्च को भी इसमें जोड़ लिया जाए तो यह अधिक खर्चीला है.
इस क्षेत्र में कीमतों में कमी की संभावना का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, 'हमने जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन शुरू किया है, जिसका उद्देश्य वर्ष 2022 तक फोटोवोल्टाइक तथा सौर थर्मल सहित 22,000 मेगावाट की सौर क्षमता का विकास करना है'.