अरुणाचल प्रदेश के एक कोने में स्थित देश के सबसे कम साक्षर गांव में एक कोचिंग सेंटर आदिवासी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दिलाने में जुटा हुआ है.
पासीघाट के मिसराम गांव में हरियाली के बीच स्थित इस कोचिंग सेंटर में नर्सरी से सातवीं कक्षा तक के 350 छात्र पढ़ते हैं.
सेंटर के चारों ओर से लीची के पेड़ों से घिरे होने के कारण बच्चों में यह ‘लीची’ स्कूल के नाम से मशहूर है. इस सेंटर को वर्ष 2000 में केरल के रहने वाले तीन लोगों ने मिलकर शुरू किया था. एक ही परिवार के ये तीन सदस्य हैं- लेखा रामचन्द्रन, उनके पति डी रामचन्द्रन और लेखा के भाई सी. के. बाबू.
महज 11 सालों में यह सेंटर इतना मशहूर हो गया है कि दूर-दूर के गांवों जैसे बालेक, जीटीसी, मिरबुक और दाइकिंग से भी बच्चे इसमें पढ़ने के लिए आते हैं.
सी. के. बाबू ने बताया, ‘यहां तक कि असम से आने वाले छात्र भी यहां पढ़ने के लिए पासीघाट में किराए पर रहते हैं.’ बाबू ने बताया कि सेंटर चलाने का विचार सबसे पहले लेखा रामचन्द्रन के दिमाग में आया क्योंकि उन्हें बच्चों से बेहद प्यार है.
उन्हें लगता है कि सेंटर ने लोगों की इस धारण को गलत साबित कर दिया है कि आदिवासी बच्चे पढ़ने में कमजोर होते हैं.
उन्होंने कहा, ‘मैं कहूंगा कि उन्हें सिर्फ उचित सलाह और थोड़ी मदद की जरूरत है. अब कई आदिवासी छात्र बड़े प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता पा रहे हैं.’
उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, ‘बच्चों को जब स्कूल से उनका रिजल्ट मिलता है उनके अभिभावक सबसे पहले हमें दिखाने आते हैं. इससे साबित होता है कि वह हमारे काम से संतुष्ट हैं.’
उन्होंने बताया कि उनके सेंटर से पढ़े हुए कई बच्चे इंजीनीयर, डॉक्टर और सरकारी कर्मचारी हैं.