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वर्ष के दौरान काजल की कोठरी बन गया कोयला उत्खनन क्षेत्र

कोयले की खान से निकले विवादों ने इस साल सरकार और उद्योगजगत को परेशान रखा. उद्योग घरानों को बगैर नीलामी के कोयला खानें आबंटित किए जाने से सरकार को 1.86 लाख करोड़ रुपये के नुकसान के कैग के अनुमानों ने राजनीतिक और उद्योग गलियारों में सनसनी पैदा कर दी.

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कोयले की खान से निकले विवादों ने इस साल सरकार और उद्योगजगत को परेशान रखा. उद्योग घरानों को बगैर नीलामी के कोयला खानें आबंटित किए जाने से सरकार को 1.86 लाख करोड़ रुपये के नुकसान के कैग के अनुमानों ने राजनीतिक और उद्योग गलियारों में सनसनी पैदा कर दी.

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नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट का मसौदा लीक होने के बाद यह विवाद शुरू हुआ. मसौदे में शुरुआत में सरकार को 10.6 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होने का अनुमान लगाया गया था. कोयला आबंटन से जुड़े इस विवाद ने संसद का मानसून सत्र लगभग बेकार कर दिया.

विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री पर सीधा निशाना साधा क्योंकि 2005 और 2009 के बीच कोयला मंत्रालय उनके पास था और उस दौरान बिना नीलामी के कोयला खानों का आबंटन किया गया. विपक्ष के दबाव में आकर सरकार को 24 खानों का लाइसेंस रद्द करना पड़ा और बैंक गारंटी घटाकर अन्य पर जुर्माना लगाना पड़ा. अंतर-मंत्रालयी समूह की सिफारिशों पर ये कार्रवाई की गईं.

जेएसपीएल, आर्सेलरमित्तल, जीवीके पावर, जेएसडब्ल्यू स्टील, भूषण स्टील जैसी कई बड़ी कंपनियों को दंडात्मक कार्रवाई का सामना करना पड़ा जिसमें या तो उनका आबंटन रद्द कर दिया गया या बैंक गारंटी काट ली गई. कांग्रेस सांसद और उद्योगपति नवीन जिंदल की अगुवाई वाली जिंदल स्टील एंड पावर भी उन कंपनियों में से एक रही जिसे विवादों का सामना करना पड़ा.

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इस विवाद में पूर्व मंत्री सुबोधकांत सहाय, प्रेमचंद गुप्ता और विजय दर्डा जैसे बड़े नाम सामने आए. कोयला क्षेत्र में दूसरा मुद्दा जो सालभर तक छाया रहा वह है कि कोल इंडिया और बिजली कंपनियों के बीच ईंधन आपूर्ति को लेकर टकराव.

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