कोयला ब्लॉक आवंटन में हुए कथित घोटाले पर बीजेपी के हंगामे की वजह से लगातार छठे दिन संसद की कार्यवाही ठप रही है. पीएम से इस्तीफे की मांग कर रही बीजेपी मुखर है. लेकिन, अब कांग्रेस भी चुप बैठने को तैयार नहीं. सोमवार को पीएम ने खामोशी तोड़ी तो मंगलवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी अपने नेताओं को आक्रमण करने का फरमान जारी कर दिया.
कांग्रेस संसदीय दल की बैठक में सोनिया का आक्रमण का आह्वान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के उस शायराना जवाब के बिल्कुल विपरीत है.
सोनिया गांधी समझ गईं कि अब बैकफुट पर खेलने से कोई फायदा नहीं. फ्रंटफुट पर आते हुए उन्होंने बीजेपी पर ब्लैकमेलिंग का इल्जाम जड़ दिया.
सिर्फ संसद में नहीं सोनिया अब इस सियासी संग्राम को सड़क तक ले जाना चाहती हैं. 2014 में लोकसभा चुनाव होना है, सोनिया ने फरमान सुनाया है नेता सड़कों पर उतरें और बीजेपी के इल्जामों का जवाब दें.
सोनिया ने बीजेपी पर हल्ला बोला तो बीजेपी ने भी तेवर आक्रामक कर लिए. बीजेपी ने साफ कर दिया है कि पीएम के इस्तीफे की मांग से वो रत्तीभर भी पीछे नहीं हटेगी.
कोयला पर संसद में कोहराम के बाद अब कांग्रेस और बीजेपी की लड़ाई सड़कों पर आ गई है. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने बीजेपी पर ब्लैकमेलिंग का आरोप लगाया तो बीजेपी ने पलटवार में जरा भी देरी नहीं की.
बीजेपी ने सोनिया के इस अपील की भी धज्जियां उड़ा दीं जिसमें उन्होंने अपने नेताओं से आक्रामक होने और सड़कों पर उतरने की अपील की थी. बीजेपी संसदीय दल की बैठक में पार्टी ने साफ कर दिया कि जनता के बीच जाकर भ्रष्टाचार के मुद्दों वो सरकार के खिलाफ देशव्यापी प्रदर्शन करेगी. इसी कड़ी में मंगलवार को बीजेपी ने कुछ दस्तावेजों के जरिये कांग्रेस पर हमला बोला. ये और बात है कि कांग्रेस नेता कोल ब्लॉक आवंटन में बीजेपी को भी कटघरे में खड़ा कर रहे हैं.
जहां एक तरफ जाहिर है सरकार को संकट से निकालने के लिए सोनिया ने अब कमान अपने हाथ में ले ली है. इस सिलसिले में वो संसद की कार्यवाही शुरू होने से पहले लोकसभा के भीतर समाजवादी सुप्रीमो मुलायम सिंह से बातचीत भी की.
संसद के मानसून सत्र में ये दूसरा मौका है जब सरकार को संकट से बचाने के लिए सोनिया ने आक्रमण का आह्वान किया है. सोनिया के बदले तेवर की झलक पहली बार 8 अगस्त को मिली थी, जब बीजेपी के सीनियर नेता लालकृष्ण आडवाणी के खिलाफ खुद मोर्चा खोल दिया था. उनके आक्रामक तेवर को देखते ही दूसरे कांग्रेसी सांसदों ने भी हमलावर तेवर अपना लिए थे.
लेकिन, सवाल उठता है कि इस वार और पलटवार से देश को क्या मिलेगा? जो बहस संसद में होनी चाहिए, वो संसद के बाहर क्यों? संसद की कार्यवाही जनता के पैसे से चलती है? ऐसे में कार्यवही रोककर कौन कर रहा है ब्लैकमेल?
सुषमा स्वराज के मोटा माल वाले बयान पर कांग्रेस की तीखी प्रतिक्रिया का भी बीजेपी ने जवाब दिया है. भाजपा के हाथों लग गई है 5 फरवरी 2008 की वो चिट्ठी जिसमें केंद्र सरकार में मंत्री सुबोधकांत सहाय ने पीएमओ में सिफारिश करके अपने भाई को कोल ब्लॉक आवंटित करवाया था. सुबोधकांत सहाय ने पीएम को एक चिट्ठी लिखी और SKS इस्पात लिमिटेड को कोल ब्लॉक आवंटित करने की सिफारिश की. पीएमओ ने भी बिना देरी किए 6 फरवरी को कोयला मंत्रालय को ये सिफारिश बढ़ा दी. इसके अगले ही दिन SKS इस्पात लिमिटेड को कोल ब्लॉक आवंटित कर दिया गया.
कांग्रेस आरोपों से घिरी है और बीजेपी जरा भी नरमी के मूड में नहीं. लेकिन, ये विडंबना नहीं तो और क्या जिस बात पर बहस संसद में होनी चाहिए. उस मसले पर टीवी कैमरों के आगे संग्राम हो रहा है. क्या हमारे माननीय सांसद अहं की लड़ाई छोड़ बातचीत के मेज पर मसला नहीं सुलझा सकते? क्या इस शह मात के खेल में वो जनता के हितों की बलि नहीं दे रहे हैं? जवाब अगर बीजेपी को देना है तो सरकार भी इस सवाल से बच नहीं सकती. क्योंकि सरकार बीजेपी के आरोपों को तो खारिज कर सकती है सीएजी जैसी संवैधानिक संस्था की रिपोर्ट को कैसे झुठला सकती है?