एक लड़की के यौन उत्पीड़न केस में फंसे आसाराम की मुसीबत और बढ़ने वाली है. अब उन कोडवर्ड्स का खुलासा हो गया है, जिसे आसाराम लोगों के सामने बोलते थे, लेकिन कोई बाहरी शख्स समझ नहीं पाता था. आसाराम के कोडवर्ड्स और उसके मतलब पर डालिए एक नजर...
1. डायल 400:
पुलिस जांच में यह बात सामने आई है कि '400 लगाओ' का मतलब होता था आसाराम से मोबाइल पर बात करना. आसाराम के बारे में कहा जाता है कि वे मोबाइल नहीं रखते हैं, लेकिन हकीकत यह है कि वे मोबाइल रखते हैं. दरअसल, आसाराम के मोबाइल नंबर का आखिरी 3 अंक है '400'. यह मोबाइल आसाराम का रसोइया रखता था. रसोइया जब भी बदलता था, वो नए रसोइयों को '400' सौंप जाता था.
रसोइए को फोन उठाने की इजाजत थी, न कि बात करने की. इस फोन को आसाराम के आलावा कोई भी अपने कान से नहीं लगा सकता था. रसोइए की ड्यूटी थी कि फोन रिसीव कर आसाराम के कान पर लगा दे. शिवा, शिल्पी या शरतचंद को जब भी आसाराम से फोन पर बात करना होता था, वो बस यही कहते थे कि 400 लगाओ या 400 पर बात हो गई है और काम पूरा करने का निर्देश मिला है.
पुलिस की जांच में सामने आया है कि मामले के सभी आरोपी शिल्पी, शिवा और शरतचंद्र 400 पर ही बात कर रहे हैं. यानी आसाराम को हर नई जानकारी दी जा रही है.
6 अगस्त को शिल्पी ने पीड़िता को समझाया था कि उस पर भूत-प्रेत का साया है और आसाराम उसे ठीक कर सकते हैं. उसी दिन से 400 की घंटी घनघनानी शुरू हो गई. वारदात के आखिरी दिन यानी 16 अगस्त तक 400 पर मामले के दूसरे आरोपी किरदार शिल्पी, शिवा और शरतचंद्र आपस में बातचीत करते रहे. जांच में पुलिस ने मई, जून और जुलाई की 400 की कॉल डिटेल सबूत के तौर पर पेश की है, जिसमें बताया गया है कि इस नंबर पर तीनों आरोपियों की कभी बातचीत नहीं होती थी. लेकिन साजिश रचने के दिन से लेकर पीड़िता के मडई आश्रम से जाने तक 400 पर तीनों शिल्पी, शिवा और शरतचंद के फोन आते थे.
2. समर्पण:
जब भी कोई लड़की आसाराम को अच्छी लगती थी, सेवकों को समर्पण कराने का आदेश दिया जाता था. लड़की एक बार समर्पण के लिए तैयार हो जाए, तो उसे बापू के पास अकेले में मिलने के लिए भेजा जाता था. वहां लड़की के आसाराम के समर्पित होने के बाद उसे अहमदाबाद आश्रम में बुलाया जाता था. इस लड़की ने भी पुलिस और मजिस्ट्रेट को दिए बयान में कहा है कि उसके बीमार होने के तत्काल बाद छिंदवाड़ा आश्रम के निदेशक शरतचंद ने उसे अपने ऑफिस में बुलाया और समझाया कि साध्वी बन जाओ और बाबा के लिए खुद को समर्पित हो जाओ. इसके बाद रातभर उसे सोने नहीं दिया गया. एक लड़की के साथ बैठाकर अनुष्ठान कराया गया.
यही नहीं, पीड़िता ने बताया कि आसाराम ने उसे कुटिया में अंधेरे में बंदकर छेड़खानी करने से पहले भी यही कहा था, 'तू सीए बनकर क्या करेगी, समर्पण कर दे. पढ़ने-लिखने में अच्छी है. अच्छी वक्ता बनेगी, प्रवचन करना.' आसाराम समर्पण करानेवाली लड़की का चुनाव खुद करते थे और लगता था कि बात बन जाएगी, तो फिर जिम्मेदारी शिल्पी की होती थी कि वो समर्पण कराए. पीड़िता के बयानों के मुताबिक, उससे पहली बार आसाराम मई-जून 2012 में हरिद्वार के आश्रम में मिले थे और तब उन्होंने 'गलत जगहों पर' हाथ रखे थे. तब पीड़िता ने यह समझकर विरोध नहीं किया कि एक पिता अपने बेटी के शरीर पर हाथ रखा है. बस इसी इशारे को आसाराम ने सहमति समझने की भूल कर दी और जनवरी 2013 में छिंदवाड़ा पहुंच गए. वहां पर शरत चंद से बात की और मार्च 2013 में शिल्पी को छिंदवाड़ा आश्रम की वार्डन बनाकर भेज दिया, ताकि शिल्पी आसाराम के इरादों को अंजाम दिलवा सके.
आसाराम की दाल भले ही नहीं गली, लेकिन पीड़िता का परिवार जब कुटिया से जाने लगा, तो भी आसाराम माने नहीं और कहा कि पीड़िता को अहमदाबाद ले आना.
इसके बाद आसाराम के बेटे नारायण सामी पर आरोप लगाने वाली इंदौर की महिला ने भी आसाराम पर आरोप लगाया है कि जब वो 200 में आसाराम से अजमेर में मिली थी, तो शाम ने अकेले में उसे बुलाकर हाथ पकड़कर कहा था कि तू शादी करके क्या करेगी, समर्पण कर दे.
3. नया नाम:
आसाराम अपने पास आनेवाली लड़की को कभी भी उसके नाम से नहीं पुकारते थे. पीड़िता को भी उसने नया नाम दे रखा था 'जट्टी'. आसाराम पीड़िता को इसी नाम से बुलाता थे. इसके पहले आसाराम ने संचिता गुप्ता का नाम भी 'शिल्पी' रखा था और आश्रमों में वो 'शिल्पी' के नाम से जानी जाती थी.
4. टॉर्च की रोशनी:
आसाराम ध्यान की कुटिया में अकेले ही रहा करते हैं. वे अपने पास टॉर्च रखते हैं. ध्यान की कुटिया में आसाराम अंधेरा करके रखते हैं. किसी को भी बुलाना हो, तो आवाज देकर बुलाने की बजाए टॉर्च की रोशनी से ही बुलाते हैं. इस मड़ई कुटिया में भी पीड़िता ने कहा कि उन्होंने पिछले दरवाजे से जाकर आगे का दरवाजा बंद कर दिया, फिर कमरे में अंधेरा कर दिया. इसके बाद आसाराम अंदर जाकर टॉर्च की रोशनी से इशारा करके उसे अंदर बुलाया.