इस बात को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है कि क्या सरकार खाद्य सुरक्षा पर अध्यादेश जारी करेगी क्योंकि इस सिलसिले में मंत्रिमंडल के अलावे विपक्षी दलों, कुछ सहयोगी दलों और अन्य पार्टियों में मतभेदों के चलते प्रतीत होता है कि सरकार इस रास्ते का इस्तेमाल करने को लेकर दुविधा में है.
सरकार इस महत्वपूर्ण कानून को जल्द लागू करना चाहती है लेकिन सरकार में ही ऐसे लोग हैं जो अध्यादेश का रास्ता अपनाने के खिलाफ हैं.
यह विधेयक कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी की महत्वाकांक्षी परियोजना है. इसके जरिये कोशिश है कि देश की 67 प्रतिशत आबादी को राशन की दुकानों के जरिये एकसमान मात्रा में पांच किलोग्राम अनाज एक से तीन रुपये प्रति किलोग्राम की दर से प्राप्त करने का कानूनी अधिकार मुहैया कराया जाए.
ऐसी अटकलें थीं कि मंगलवार शाम होने वाली केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में अध्यादेश जारी करने के प्रस्ताव पर चर्चा हो सकती है लेकिन ऐसी कोई चर्चा नहीं हुई.
बैठक के बाद खाद्य सुरक्षा विधेयक के बारे में बार-बार पूछे जाने पर वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा, ‘मैं उस विषय पर प्रश्नों के उत्तर नहीं दे सकता जिस पर मंत्रिमंडल की बैठक में चर्चा ही नहीं की गई.’
उन्होंने कहा, ‘खाद्य सुरक्षा विधेयक पर मंत्रिमंडल में चर्चा नहीं हुई. वह संसद में है.’ सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने कहा कि कांग्रेस 80 करोड़ भारतीयों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है.
उन्होंने कहा, ‘इसका स्वरूप और तौर तरीका क्या होगा उस पर निर्णय किया जा रहा है. यह प्रक्रिया में है. सरकार के पास इस मामले में सभी विकल्प खुले हैं.’ सूत्रों ने कहा कि कानून मंत्रालय ने अध्यादेश का रास्ता अपनाने को मंजूरी दी है लेकिन खाद्य मंत्रालय इसके पक्ष में नहीं है. खाद्य मंत्रालय इस विधेयक के लिए नोडल मंत्रालय है. कुछ और पक्ष भी इस विचार के समर्थन में नहीं हैं.
इसे स्पष्ट करते हुए ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने कहा, ‘अध्यादेश का रास्ता आखिरी विकल्प होना चाहिए.’ एनसीपी नेता एवं केंद्रीय मंत्री प्रफुल पटेल ने कहा कि उनकी पार्टी ‘101 प्रतिशत’ विधेयक के समर्थन में है और पार्टी के रुख को लेकर अनावश्यक विवाद खड़ा किया जा रहा है.
उन्होंने कहा कि एनसीपी चाहती है कि किसानों को उनकी उपज की अच्छी कीमत मिले और गरीबों को अनाज सस्ते में मिले.
पटेल ने कहा, ‘एनसीपी यह स्पष्ट करना चाहती है कि वह विधेयक का वर्तमान स्वरूप में पूर्ण समर्थन करती है.’ यह पूछे जाने पर कि क्या सरकार विधेयक पारित कराने के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाएगी या अगले महीने होने वाले मानसून सत्र को पहले बुलाएगी, चिदंबरम ने कहा, ‘इसमें से एक या दोनों...यह सब अटकलें हैं.’ अध्यादेश का रास्ता अख्तियार करने को लेकर सरकार की अप्रत्यक्ष दुविधा यूपीए को बाहर से समर्थन देने वाली प्रमुख पार्टी सपा के विरोध की पृष्ठभूमि में आयी है.
एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने पूर्व में वाम दलों से कहा था कि उन्हें इस महत्वपूर्ण विधेयक पर चर्चा पर जोर देना चाहिए.
बीजेपी ने भी अध्यादेश जारी किए जाने का विरोध किया है. उसका कहना है कि इस रास्ते को असाधारण परिस्थितियों में ही अपनाया जा सकता है और सरकार को इस मसले पर हठधर्मिता नहीं अपनानी चाहिये.
बीजेपी ने कहा कि वह खाद्य सुरक्षा कानून का जरूर समर्थन करती है लेकिन इस लंबित विधेयक के कुछ निश्चित प्रावधानों को संशोधित किये जाने की आवश्यकता है. लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने ट्विटर पर लिखा, ‘सरकार को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक पर अध्यादेश जारी नहीं करना चाहिए. हम ऐसे महत्वपूर्ण विधेयक के लिए अध्यादेश के रास्ते का इस्तेमाल करने के खिलाफ हैं.’
जनता दल यूनाइटेड ने खाद्य सुरक्षा विधेयक को पारित कराने के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाने या अध्यादेश लाने के कांग्रेस के प्रयासों का विरोध किया और कहा कि इस तरह के महत्वपूर्ण मुद्दे पर आखिर इतनी जल्दबाजी क्यों की जा रही है.
जदयू अध्यक्ष शरद यादव ने कहा, ‘हम सरकार के इस प्रयास (अध्यादेश लाने का) को पूरी तरह खारिज करते हैं.’ उन्होंने कहा कि इस विधेयक पर गंभीर असहमति है और यह संसद और संसद से बाहर व्यापक चर्चा की मांग करता है.